सरोकार : जापान में सरनेम बना महिलाओं का संकट
सरनेम में भी क्या रखा है? बहुत कुछ, क्योंकि यह जातिसूचक होता है और अहं का सवाल भी। इसका एक फेमिनिस्ट पहलू भी है।
सरोकार : जापान में सरनेम बना महिलाओं का संकट |
शादी के बाद औरतों के साथ पति का सरनेम चस्पा होता है। और यह सिर्फ भारत ही नहीं, जापान जैसे देश की भी सच्चाई है। वहां प्रधानमंत्री योशीहिदे सूगा ने सितम्बर में कहा था कि जापान में शादीशुदा पति-पत्नी अपने-अपने सरनेम रख सकते हैं, लेकिन देश की बेसिक जेंडर इक्वालिटी प्रमोशन पॉलिसी में सरकार ने इस वादे को शामिल नहीं किया।
जापान के सिविल कोड में शादीशुदा जोड़ों से एक सरनेम रखने की अपेक्षा की जाती है, और परंपरागत रूप से पुरुष नहीं, महिलाएं ही शादी के बाद अपने नाम बदलती हैं। हर साल जापान के करीब छह लाख जोड़े शादियां करते हैं और व्यावहारिक रूप से सिर्फ 4 फीसद पुरु ष अपने सरनेम बदलते हैं। काफी समय से जापान की महिलाएं इस नियम का विरोध कर रही हैं। चूंकि शादीशुदा जोड़े अपने अलग-अलग सरनेम नहीं रख सकते, इसलिए प्रतिष्ठित कॅरियर वाली महिलाओं के लिए परेशानियां पैदा होती हैं। पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे इस नियम के समर्थक थे और लगातार कहते हैं कि यह स्त्री-पुरु ष समानता का नहीं, परंपरा का सवाल है, लेकिन जापानी परंपरा में लोग सरनेम का इस्तेमाल करते ही नहीं। यह कानून 1898 में बना था। 1948 में यह लीगलाइज किया गया था कि शादीशुदा जोड़े किसी भी स्पाउस का सरनेम रख सकते हैं, लेकिन फिर भी दोनों का सरनेम एक ही होना चाहिए।
वैसे, सरनेम का मुद्दा जापान की लिंग भेद का सिर्फ एक पहलू है। ओईसीडी देशों में जापान ऐसा तीसरा देश है, जहां महिलाओं और पुरु षों के वेतनों में जबरदस्त अंतर है। व्यापार और राजनीति के क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। महिलाएं प्रबंधकीय पदों पर 4 फीसद, बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में 2 फीसद और राष्ट्रीय डायट (वहां की संसद) के निचले सदन में 10 फीसद हैं। सरनेम में मामले में बहुत से जापानी एकमत ही हैं। वे बदलाव चाहते हैं। 2018 के सरकारी सर्वे में कहा गया था कि 42.5 फीसद वयस्कों ने सरनेम के कानून को बदलने का समर्थन किया था। संयुक्त राष्ट्र भी लगातार जापान पर दबाव बना रहा है कि वह इस नियम को बदले। इससे कई अजीबोगरीब वैवाहिक परिपाटियां बन रही हैं। कागजों पर तलाक हो रहे हैं पर मियां-बीवी साथ रह रहे हैं क्योंकि तभी वे दोनों अपने-अपने सरनेम का इस्तेमाल कर सकते हैं। कई शादियां नहीं कर रहे और डोमेस्टिक पार्टनरशिप के साथ जीवन बिता रहे हैं।
अब सूगा के नेतृत्व में सरकार ने नई बेसिक पॉलिसी में विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। 2025 तक राष्ट्रीय और स्थानीय चुनावों में महिलाओं की हिस्सेदारी को 35 फीसद, 2022 तक टोक्यो स्टॉक एक्सचेंज के फस्र्ट सेक्शन में सूचीबद्ध कंपनियों में 12 फीसद और 2025 तक स्कूल प्रिंसिपल्स में 20 फीसद किया जाएगा। प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर भी इस पॉलिसी में कुछ बदलाव किए जा रहे हैं। महिलाओं के लिए इमरजेंसी गर्भनिरोधक दवाओं को खरीदना आसान होगा। अब तक बिना डॉक्टरी नुस्खे के इसे खरीदने पर महिलाओं को इसे विशेष प्रशिक्षित फार्मासिस्ट की मौजूदगी में खाना होता था। सरकार इस नियम में भी ढिलाई कर रही है। वैसे, ये बदलाव कागजी ज्यादा लगते हैं। बाकी, सरनेम को लेकर जापानी महिलाओं को अभी भी लंबी लड़ाई लड़नी है।
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