सामयिक : कश्मीर हमारा, सारा का सारा
भारतीय जन संघ की स्थापना के दौरान से जम्मू एवं कश्मीर इसके लिए सबसे सबसे महत्त्वपूर्ण मुद्दा रहा।
सामयिक : कश्मीर हमारा, सारा का सारा |
डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी भारतीय जन संघ के संस्थापक थे, जम्मू एवं कश्मीर में एक विधान, एक निशान, एक संविधान के लिए उन्होंने बलिदान किया। डॉ. मुखर्जी के बलिदान के बाद से भारतीय जन संघ के कार्यकर्ता ‘जहां हुए बलिदान मुखर्जी वह कश्मीर हमारा है, जो कश्मीर हमारा है, वह सारा का सारा है’ का नारा लगाते थे कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर समेत पूरा कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, और जम्मू एवं कश्मीर में अनुच्छेद 370 के तहत जो उनको विशेषाधिकार प्राप्त हैं, विशेषकर 35 ए के तहत जो अधिकार थे, उन सारे अधिकारों को समाप्त किए जाना चाहिए।
जम्मू में सतत भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का समर्थन हुआ करता था। बावजूद उसके भाजपा वहां के स्थानीय दलों के सामने बहुत कामयाब पार्टी नहीं हुआ करती थी। भाजपा की स्थापना काल से तथा अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रीत्व काल में भी जम्मू से भाजपा का सांसद चुनकर आता था, लेकिन भाजपा को नेशनल कांफ्रेंस के भरोसे रहना पड़ता था। नेशनल कांफ्रेंस पार्टी उस समय भाजपा के सरकार में हिस्सेदार भी थी। फारूख अब्दुल्ला मंत्री थे, बाद में उमर अब्दुल्ला भी बहुत लंबे समय तक भाजपा के समर्थन से किसी ना किसी पद पर बने रहे। 2014 के पहले भाजपा की चुनावी स्थिति कभी सरकार बनानी वाली नहीं रही। जब 2014 के बाद जनवरी, 2015 पहली बार जम्मू एवं कश्मीर के चुनाव हुए, तो उसमें जम्मू में एक तरफ से भाजपा को समर्थन दिया। जम्मू में 25 विधानसभा सीटों को जीतने में भाजपा सफल रही। भाजपा 25 सीट, नेशनल कांफ्रेंस 15 सीट एवं पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) उस समय 28 सीटों पर जीतने में कामयाब हुई। ऐसी त्रिशंकु विधानसभा हुई, जिसमें बिना दो दलों के मिले सरकार बना पाना संभव नहीं था।
नेशनल कांफ्रेंस एवं पीडीपी चूंकि पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी थे, तो ऐसे में उन दोनों दलों का गठबंधन राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के कारण उस समय हो पाना असंभव था। तब जाकर एक विचारधारा से बिल्कुल विपरीत ध्रुव पर खड़े भाजपा और पीडीपी का गठबंधन हुआ। गठबंधन के बाद भी सरकार में मुख्यमंत्री के रूप में बैठने के बाद भी लगातार पीडीपी कश्मीर में हुर्यित कांफ्रेंस से वार्ता की शर्त, कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान से वार्ता होनी चाहिए, यह स्टैंड हमेशा महबूबा मुफ्ती का रहता था और महबूबा मुफ्ती यहां तक कहती थीं कि अनुच्छेद 370 हटाया गया तो कश्मीर में भारत का तिरंगा झंडा उठाने वाला कोई शेष नहीं बचेगा। उनका कहना था कि भारत और जम्मू-कश्मीर के बीच 370 का पुल टूट गया तो जम्मू एवं कश्मीर भारत से अलग हो जाएगा। ऐसी ही बातें पीडीपी किया करती थी।
जब भाजपा ने अनुच्छेद 370 को 5 अगस्त, 2019 को संशोधित किया और महबूबा की सरकार उससे पहले ही बर्खास्त की जा चुकी थी और वहां पर राष्ट्रपति शासन चल रहा था, तो उस दौरान भी महबूबा ने कल्पना भी नहीं की होगी कि भाजपा आने वाले दिनों में जम्मू एवं कश्मीर की सबसे सशक्त पार्टी बन जाएगी। राष्ट्रपति शासन के दौरान ही पहली बार वहां पंचायत चुनाव कराए गए। तब भाजपा को छोड़कर नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी समेत कश्मीर के सारे प्रमुख दलों ने पंचायत चुनाव का बहिष्कार किया। आतंकवादियों ने भी लगातार पंचायत चुनाव के प्रत्याशियों को उत्पीड़ित किया। चुनाव के बाद कई सारे सरपंचों की हत्या कर दी गई। भाजपा के कई सरपंचों को बलिदान देना पड़ा। कालांतर में जब प्रक्रिया को और लोकतांत्रिक बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई और जो डीडीसी चुनाव हुए तो डीडीसी चुनाव में शुरू में नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी ने पंचायत चुनावों की तरह ही चुनाव के बहिष्कार का रवैया अपनाया। लेकिन चुनाव के बहिष्कार की स्थिति में वहां पर चुनाव में अन्य दलों के कार्यकर्ताओं के सत्ता पर काबिज होने की संभावनाओं को देखते हुए पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस को कालांतर में चुनाव में उतरना पड़ा और तब जाकर पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार का डिक्लेरेशन हुआ, जिसे गृह मंत्री अमित शाह ने गुपकार गैंग नाम दिया।
उस गुपकार गठबंधन के दोगुने प्रत्याशी डीडीसी के चुनाव लड़े। चुनाव परिणाम में भाजपा ने सबसे बड़े दल के रूप में और सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले दल के रूप में स्वयं को संस्थापित किया। जम्मू की अधिकांश जिला कौंसिलों को न केवल जीता, बल्कि जिस कश्मीर में कहा जाता था कि कोई झंडा उठाने वाला नहीं मिलेगा, उस कश्मीर में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन के नेतृत्व में अनंतनाग, जो आतंकवादियों के लिए गढ़ हुआ करता था, में तिरंगा झंडा लेकर लोगों ने न केवल रैलियां निकालीं, बल्कि भारत माता की जय के नारों की हुंकार लगाई और जिस तरह से कश्मीर की घाटी में भाजपा के तीन प्रत्याशियों को सफलता मिली, तो उसने सिद्ध कर दिया कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भाजपा अब वहां सबसे बड़ी पार्टी बन गई है।
भाजपा को इस चुनाव में 4 लाख 87 हजार मत प्राप्त हुए हैं तथा गुपकार एवं गुपकार के प्रति सद्भाव रखने वाली पार्टी कांग्रेस, इन सबको मिलकर 4 लाख 77 हजार मत प्राप्त हुए हैं। इस तरह भाजपा द्वारा धारा 370 हटाने को वहां की जनता ने अपार समर्थन दिया है। भाजपा को जम्मू एवं कश्मीर में जो सफलता मिली है और जिस तरह से गुपकार गठबंधन के जिन दलों की अकेले के बल पर सत्ता होती थी, नेशनल कांफ्रेंस या पीडीपी या कांग्रेस, इन तीनों दलों को जिस तरह से हाशिये पर फेंकने का काम हुआ है, जिस तरह से घाटी में पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस के जितने ही निर्दलीय भी जीते हैं और भाजपा समर्थित विजयी निर्दलियों की संख्या भी लगभग दो दर्जन है, ऐसे में यह संकेत साफ तौर पर जाता है कि जम्मू एवं कश्मीर में न केवल अनुच्छेद 370 के संशोधन का सफलतापूर्वक अमलीकरण करने में भाजपा सफल ही नहीं हुई है, बल्कि भाजपा ने अपना वहां चुनाव की दृष्टि से विस्तार करने में सफलता हासिल की है। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जो स्वप्न था, उस स्वप्न को साकार करते हुए ‘जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है’, इस नारे को भाजपा ने सिद्ध कर दिया। अब जो कश्मीर हमारा है, वह सारा का सारा है, इतना ही एजेंडा शेष बचा है।
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