प. बंगाल : राज्यपाल बनाम मुख्यमंत्री

Last Updated 10 Sep 2020 01:50:24 AM IST

बनाम शब्द का इस्तेमाल खेल की दो टीमों या अलग-अलग राजनीतिक पार्टयिों या फिर भिन्न-भिन्न पार्टी के नेताओं के दरम्यान हो तो बात समझ में आती है।


प. बंगाल : राज्यपाल बनाम मुख्यमंत्री

मसलन, एक-दूसरे से प्रतिद्वंद्विता। अमुक टीम बनाम अमुक टीम, अमुक पार्टी बनाम अमुक पार्टी और अमुक नेता बनाम अमुक नेता। सही मायने में बनाम शब्द का इस्तेमाल लड़ाई (प्रतिद्वंद्विता) को रोचक बनाने के लिए किया जाता रहा है, किया जा रहा है और किया जाता रहेगा। इन परिस्थितियों में बनाम शब्द का प्रयोग न तो अरुचिकर है, न असंवैधानिक और न अव्यावहारिक। यही बनाम शब्द तब खटकने लगता है, जब यह किसी राज्य के शीर्ष पद पर बैठे (राज्यपाल) और उसी राज्य में चुनी हुई सरकार की मुखिया (मुख्यमंत्री) के बीच इस्तेमाल होने लगता है। जैसा कि बीते 12-14 महीनों से पश्चिम बंगाल में होता आ रहा है।
बीते साल जुलाई में जब से जगदीप धनखड़ ने सूबे के राज्यपाल का पदभार संभाला है, तब से लगभग रोजाना उनकी और राज्य सरकार या यूं कहें कि सीधी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से न केवल नोकझोंक की खबरें आती रही हैं, बल्कि कई मर्तबा तो दोनों ने एक-दूसरे पर संगीन और गंभीर आरोप भी लगाए हैं। आरोप सही थे या गलत?, आरोपों का कोई आधार था या नहीं?, आरोप लगाने की वजह क्या रही? और राजभवन से राज्य सरकार के बीच छत्तीस का आंकड़ा क्यूं बना हुआ है? ये सब जांच के विषय हो सकते हैं और एक आलेख में तकरीबन सवा साल के घटनाक्रम पर सटीक कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन प्रामाणिकता के तौर पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में जो चल रहा है, वह स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए कतई ठीक नहीं है।

चाहे राज्यपाल हो या मुख्यमंत्री, दोनों को अपने-अपने पदों और अपनी-अपनी मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए और निजी राग-द्वेष को दरकिनार कर राज्य और राज्य की जनता की भलाई पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। राज्यपाल के लिए कुछ भी अशोभनीय बोलने से पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सौ बार सोचना चाहिए कि केंद्र  सरकार द्वारा मनोनीत राज्यपाल सूबे के शीर्ष पद पर आसीन हैं। ठीक इसी तरह राज्यपाल को भी राज्य सरकार या उसकी मुखिया के खिलाफ कोई भी बयान जारी करने से पहले यह मनन करना चाहिए कि सरकार को राज्य की जनता ने मतदान के जरिए चुना है।
चाहे राज्यपाल द्वारा विधानसभा सत्र की अनुमति नहीं देने का मामला हो, चाहे विधानसभा भवन में राज्यपाल के प्रवेश के रोक का मामला हो, चाहे जिलाधिकारियों के साथ बैठक की बात हो, चाहे विश्वविद्यालयों के उपकुलपतियों से चर्चा की बात हो, ये तमाम ऐसे घटनाक्रम हैं, जो शायद केवल पश्चिम बंगाल में ही हुए हैं और मौजूदा राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान ही हुए हैं। इतना ही नहीं, राज्य सरकार ने भी दर्जनों बार राज्यपाल पर सरकारी काम में बेवजह दखल देने और भाजपा के एजेंट की तरह काम करने का आरोप लगाया। इस बीच, राज्यपाल ने अपने कार्यालय (राज भवन) से कागजात इधर-उधर होने, सूचनाएं बाहर जाने और राज भवन पर निगरानी रखने का आरोप लगाकर सबको चौंका दिया, लेकिन इस आरोप को लगाए दो सप्ताह से भी अधिक समय बीत गया और राज्यपाल ने इस बाबत फिर से कोई चर्चा नहीं की। अब आईएएस और आईपीएस को लेकर एक नया बयान जारी कर राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है।
राज्यपाल ने ममता बनर्जी और राज्य सरकार पर राज्यपाल पद की गरिमा कम करने, अपमानित करने जैसे आरोप लगाए हैं, तो ममता ने उनका नाम लिए बिना कहा है कि कुछ लोग समानांतर सरकार चलाने की कोशिश कर रहे हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राजभवन और राज्य सरकार के बीच लगातार चौड़ी होती खाई लोकतंत्र के हित में नहीं है। राजनीति के पंडित कहते हैं-अब राज्यपाल और राज्य सरकार के मंत्री और मुख्यमंत्री खुल कर एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं। इससे संवैधानिक संकट पैदा होने का खतरा बढ़ रहा है। ज्ञातव्य है कि राज्य में सौ से ज्यादा नगर निगमों की मियाद खत्म हो चुकी है। उनके चुनाव के अलावा अगले वर्ष यानी 2021 में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं।

शंकर जलान


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