सामयिक : यह तो बस शुरुआत है

Last Updated 24 Mar 2020 01:35:29 AM IST

जनता कर्फ्यू के सफल होने को लेकर जिस किसी को भी थोड़ा संदेह रहा होगा उसे निश्चय ही भारत के आम लोगों की सोच और व्यवहार के बारे में अपना नजरिया बदलना होगा।


सामयिक : यह तो बस शुरुआत है

शहरों को तो छोड़िए, गांवों तक में लोगों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील पर स्वयं को घरों में कैद रखकर कोरोना वायरस से लड़ने के देश के संकल्प तथा संयम का परिचय दिया। किसी ने शायद कल्पना तक न की थी कि शहर-शहर गांव-गांव में लोग ऐसे कृतज्ञता ज्ञापित करेंगे। 
कारोना जैसी वैश्विक महामारी से लड़ने के लिए सबसे ज्यादा आवश्यकता संकल्प और संयम की है। प्रधानमंत्री मोदी ने यही बताने की कोशिश की थी। जनता कर्फ्यू की सफलता ने बता दिया है कि लोगों के अंदर संकल्प है कि हमें इस महामारी पर विजय पाना है। इसलिए अपने-आप पर नियंत्रण रखते हुए जब तक आवश्यकता हो घर में स्वयं को कैद रखना तथा स्वास्थ्य विभाग की एडवायजरी का पालन करते रहना है। देश के कुछ लोग ऐसा करें और कुछ न करें तो फिर खतरा दूर नहीं हो सकता। निस्संदेह, हमारे यहां अभी कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या अन्य कई देशों की तुलना में कम है, लेकिन इसकी गारंटी नहीं है कि यह विस्फोटित नहीं होगा। गारंटी के लिए हमें इसका इसके तरीके से सामना करना होगा। अपने को सबसे अलग कर लेना है। प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में यही अपील की थी। मीडिया ने इस मामले में जनजागरण की दृष्टि से सकारात्मक भूमिका निभाई है, लेकिन इसे कोरोना के खिलाफ भारत की पहली सफल सामूहिक एकजुटता के रूप में ही देखना होगा।

यह नहीं मान लेना चाहिए कि हमने एक दिन अपने को बंद रखा और हमारी जिम्मेवार खत्म। आगे का समय ज्यादा परेशानियां उठाने का हो सकता है। मसलन, रेलवे ने 31 मार्च तक सभी गाड़ियां रद्द कर दी हैं। अनेक राज्यों ने दूसरे राज्यों से आने वाली बसों, तो कुछ ने अपने यहां के बसों तक के संचालन पर पाबंदियां लगा दी हैं, कई शहरों में मेट्रो का परिचालन बंद है। कई राज्य अपने यहां हवाई जहाजों का परिचालन बंद कर रहे हैं। कई राज्यों ने संपूर्ण लॉकडाउन घोषित किया है। इस तरह के कदम सरकारें लोगों को बचाने की चिंता में ही उठा रही हैं। आप कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के फैलाव और उसके भयावह प्रकोप का थोड़ी भी गहराई से अध्ययन करेंगे तो निष्कर्ष यही आएगा कि जिन देशों ने लोगों को मिलने-जुलने, आवागमन को रोकने के सख्त कदम नहीं उठाए, वे ज्यादा पीड़ित हैं। आरंभ में चीन ने यही किया था। उसने तो नवम्बर में कोरोना के मरीज सामने आने के बावजूद उसकी अनदेखी की और खतरे की घंटी बजाने वाले डॉक्टर तक को उत्पीड़ित किया। बाद में स्थिति नियंत्रण से बाहर निकल गई तो वुहान और आसपास के कई करोड़ लोगों को करीब डेढ़ महीने तक घरों में कैद रहने के लिए विवश कर दिया। आदेशों का पालन न करने पर सजा घोषित कर दी। बावजूद उसके अपने आंकड़ों में 3200 से ज्यादा लोग मारे गए।
इस समय यूरोप कोरोना का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है। इसका कारण क्या है? कोरोना का पहला मामला फ्रांस में जनवरी में सामने आया। फ्रांस में आए तीनों मामलों का यात्रा इतिहास वुहान से जुड़ा था। इसके बावजूद फ्रांस के साथ अन्य यूरोपीय देशों की नींद नहीं खुली। नतीजा हुआ कि इटली, स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड आदि देशों में हाहाकार बचा है। इटली में कोरोना से मरने वालों की संख्या छह हजार को छू रही है। शव दफनाने की जिम्मेवारी सेना को देनी पड़ी है। फ्रांस में कुल मृतकों की संख्या 600 पार कर रही है। स्पेन में मृतकों की संख्या 1200 के आसपास पहुंच गई है। ब्रिटेन में मृतकों का आंकड़ा 200 पार कर रहा है। नीदरलैंड जैसे छोटे देश में करीब सवा सौ लोग जान गंवा चुके हैं। जर्मनी तक में 75 से ज्यादा लोगों को इस बीमारी ने लील लिया है। कारण साफ है। जब जनवरी में यूरोप में पहला मामला सामने आया था, उसी समय आपातकाल मानकर कदम उठाए जाने चाहिए थे। यात्रियों की एयरपोर्ट पर न तो स्क्रीनिंग शुरू की गई और न ही यात्रा एडवाइजरी जारी की गई। इटली ही नहीं, यूरोप के मुख्य शहरों से वुहान के लिए सीधी हवाई सेवा है। इटली के फैशन उद्योग में एक लाख से अधिक चीनी नागरिक काम करते हैं, जिनमें से ज्यादातर वुहान से हैं। जब चीन कोरोना से जूझ रहा था, तब इनने चीनी नागरिकों की उड़ान पर रोक नहीं लगाई। फ्रांस, इटली, स्पेन, स्विटजरलैंड, ब्रिटेन आदि किसी देश में न तो स्कूल-कॉलेज बंद किए गए और न समूहों में जुटने को लेकर निर्देश जारी किया गया। आज ये देश संपूर्ण लॉकडाउन की स्थिति में हैं। अमेरिका को लीजिए। वह स्वयं को स्वास्थ्य के मामले में सुरक्षित देश मानता है। संक्रमित लोगों के मामले में उसका स्थान चीन और इटली के बाद तीसरे नम्बर पर आ गया है। मृतकों की संख्या 280 पार कर गई है। कैलिफोर्निया की दशा इतनी बिगड़ गई कि उसे संपूर्ण लॉकडाउन कर दिया गया। चार करोड़ से ज्यादा की आबादी घरों में रहने को मजबूर है। न्यूयॉर्क में करीब चार हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं। 
विदेश दौरे पर गए अमेरिकियों को चेतावनी दी गई है कि वे तत्काल नहीं लौटे तो अनिश्चितकाल के लिए बाहर ही रह जाएंगे। साफ है कि इन देशों ने समय पर सचेत होकर आवश्यक सुरक्षोपाय किए होते तो स्थिति इतनी भयावह नहीं होती। भारत पहले से सचेता हुआ। आज की तैयारियों और कदमों की सूचना हमारे पास हैं। लेकिन कम लोगों को पता होगा कि जनवरी के आखिरी सप्ताह तक भारत ने 96 विमानों के यात्रियों की जांच कर ली थी और 20,844 यात्री कोरोना वायरस से सुरक्षित पाए गए थे। वुहान से हम अपने लोगों को खतरे के बीच वापस लाए। भारत में कोरोना का तब तक पॉजिटिव केस नहीं आया था। बावजूद स्क्रीनिंग से लेकर, विदेश से आए लोगों के संपर्क में आने वालों की पहचान कर आइसोलशन में रखने आदि कार्य होते रहे। जैसे ही संक्रमित लोग सामने आने लगे, उपचार से बचाव तथा जागरूक करने का काम युद्धस्तर पर हुआ है। उन कदमों और तैयारियों का पूरा लाभ तभी मिलेगा जब हम कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के हरसंभव उपाय करते रहें। इस दृष्टि से जनता कर्फ्यू को सामूहिक प्रयास की शुरु आत कह सकते हैं। जब तक दुनिया से कोरोना वायरस का प्रकोप खत्म नहीं होता तब तक हमारे स्वयं को बंद रखने तथा निजी, पारिवारिक एवं सामुदायिक स्तर पर बचाव के सारे उपाय अपनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। हां, उन लोगों की मदद करनी होगी जो दैनिक कमाई पर निर्भर है। सरकार के साथ हमारी भी यह जिम्मेवारी है।

अवधेश कुमार


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