महिला अपराध : चौतरफा सुधार की जरूरत
देश को आजाद हुए सत्तर साल से ज्यादा हो गए हैं। फिर भी देश की आधी आबादी को समानता के अधिकार हासिल करने और अपने ऊपर होने वाले अपराधोें को रोकने के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ रहा है।
महिला अपराध : चौतरफा सुधार की जरूरत |
और यह सब यह उस देश में हो रहा है, जहां कहा जाता है कि जिस घर में नारी की पूजा की जाती है। सबसे खराब स्थिति महिलाओं के प्रति यौन अपराधों को लेकर है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, वर्ष 2017 में देश में 32500 रेप के मामले दर्ज हुए। 2018 के लिए गृह मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश में हर 15 मिनट में एक रेप हुआ। 34000 महिलाओं ने रेप के मामले दर्ज कराए। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि रेप के ये सरकारी आंकड़े हैं। बहुत से मामले तो लोकलाज के भय और पुलिस की हीलाहवाली के चलते दर्ज ही नहीं हो पाते हैं। एनसीआरबी के मुताबिक पिछले 17 वर्षो में देश में रेप के मामलों की संख्या दोगुनी हो गई है। इनमें से 85 प्रतिशत मामलों में ही आरोप तय हुए जबकि सजा 27 प्रतिशत को हुई। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कानून में कितनी खामियां हैं। देश के सबसे चर्चित निर्भया रेपकांड में दोषियों को सजा मिलने में सात साल से अधिक लग गए। हालांकि यह तब संभव हो पाया जब सारे देश-दुनिया की नजरें इस पर टिकी हुई थीं। सबसे बड़ा सवाल यही है कि महिलाओं के प्रति अपराध आखिर, क्यों बढ़ रहे हैं। दरअसल, समाज में कुछ दूषित मानसिकता के लोग ही रेप जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देते हैं।
शायद इसलिए कि कानून से बचने के सारे हथकंडे उन्हें पता होते हैं। इसके अलावा, इन अपराधों के खिलाफ न तो तत्परता से कोई कदम उठाया जाता है और ना ही कड़ी कार्रवाई की जाती है। इसी का नतीजा है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के जो मामले अदालत तक पहुंचते भी हैं, उनमें हरेक चार में से एक में ही अपराधी को सजा मिल पाती है। कई बार रेप के केस अदालत में दर्ज तो हो जाते हैं, लेकिन मामले लंबित पड़े रहते हैं।
हालांकि लंबित होने का एक अहम कारण अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों की कमी भी है। अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों के 4,954 पद रिक्त पड़े हैं। इस समय देश में तकरीबन 95000 से अधिक रेप के मुकदमे अदालतों में लंबित हैं। वहीं कुछ लोग मानते हैं कि लड़कियों को पश्चिमी वेशभूषा नहीं पहननी चाहिए क्योंकि यह भड़काऊ होती है और सेक्स क्राइम के लिए उकसाती है। ऐसे लोगों से सवाल है कि गांव-देहात की लड़कियों, जो पश्चिमी वेशभूषा नहीं पहनती हैं, के साथ क्यों रेप होते हैं? अबोध बच्चियों, जिनका पश्चिमी वेशभूषा से कोई लेना देना नहीं है, के साथ रेप क्यों होते हैं? कुछ लोगों का यह भी कहना है कि लड़कियों को अकेले कहीं बाहर नहीं जाना चाहिए और रात होने से पहले घर आ जाना चाहिए। वे लोग इन बातों को भी रेप का कारण मानते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लड़कियों को सिर्फ लड़की होने के कारण ही ऐसा करने का अधिकार नहीं है? कामकाजी लड़कियों को तो रात के समय घर लौटना ही पड़ता है और ऑफिस भी जाना पड़ता है। लड़कियों के साथ रेप के लिए उनकी दिनचर्या नहीं, बल्कि हमारी दूषित सोच जिम्मेदार है। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि महिलाएं सिर्फ सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर ही असुरक्षित नहीं हैं, बल्कि अपने घर-परिवार और रिश्ते-नातेदारों के बीच भी असुरक्षित हैं।
एनसीआरबी के अनुसार रेप की घटनाओं में 95 फीसद मामलों में पीड़िता रेपिस्ट को अच्छी तरह जानती-पहचानती है। फिर भी उसके खिलाफ अपना मुंह नहीं खोलती। ऐसे में देश की स्थिति सुधारने और महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों को रोकने के लिए समाज की सोच बदलनी होगी। इस तरह के जुर्म को रोकने के लिए अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जरूरत है। महिलाओं के प्रति सम्मान जगाने की शुरुआत हमें अपने घर से ही करनी होगी। अपने बच्चों को ऐसे संस्कार देने होंगे कि घर की महिलाओं के साथ ही बाहर की महिलाओं का भी सम्मान करें। पोनरेग्राफी साइटों पर भी अंकुश लगाना होगा। चाइल्ड पोनरेग्राफी को तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दंडनीय अपराध बनाने के लिए सभी देशों को आगे आना होगा। महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए उन्हें खूब शिक्षित करना होगा, रोजगार के अधिकाधिक अवसर देकर उन्हें ज्यादा आत्मनिर्भर बनाना होगा। राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भागीदारी बढ़ानी होगी। मार्शल आर्ट और अन्य विधाओं के जरिए उन्हें शारीरिक रूप से भी मजबूत बनाना होगा ताकि विपत्ति के समय वे अपनी रक्षा खुद कर सकें।
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