पोर्नोग्राफी : नैतिक शिक्षा ही कारगर

Last Updated 05 Mar 2020 05:11:38 AM IST

आज आप इंटरनेट पर बैठे हैं तो दुनियाभर की सूचनाओं की अंबार आपके सामने है। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है, जो सोचने को बाध्य कर रहा है कि इस पर कुछ क्षेत्रों में लगाम लगाने की जरूरत है-वह है पोर्नोग्राफी।


पोर्नोग्राफी : नैतिक शिक्षा ही कारगर

पोर्नोग्राफी ने इतना भयंकर प्रदूषण फैला दिया है, इसको देख कर लगता है कि आत्मीय संबंधों और भावनाओं की कोई कद्र नहीं रह गई। बच्चे इन वीडिओ को देख कर कैसे संस्कार अपने कोमल मस्तिष्क पर ढालेंगे? यह बहुत चिंतनीय विषय है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हम अपने आने वाली पीढ़ी को कैसे संस्कारों से भर रहे हैं? ऐसे-ऐसे विचित्र संभोग क्रियाओं को दिखाया जा रहा है, जिसमें उम्र की कोई सीमा नहीं, रिश्तों की कोई मर्यादा नहीं। रिश्ते मात्र स्त्री-पुरुष लैंगिक संबंध रह गए हैं, इस तरह के प्रदूषण से बचने की जरूरत है। पोर्नो के पक्ष में बातें कही जाती हैं कि इसको उपलब्ध होना चाहिए, ताकि समाज में अपराध न हों। एक सीमा तक तो यह ठीक था, पर अब जिस विकृत रूप में यह सामने आ रहा है। वह समाज को हिंसक और अपराधी बनाने की ओर ले जा रहा है। राजधानी दिल्ली में निर्भया कांड भी ऐसी ही मानसिक दशा का परिणाम है। देश में निर्भया जैसी घटनाएं आए दिन घट रही हैं, अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं, यह ऐसे वातावरण का परिणाम है, गलत सामाजिक शिक्षा नेट से मिल रही है। ऐसे बाल मन इन चित्रों और एक्टिंग को देखता है तो उसमें एक अपराधिक भावना का जन्म होना निश्चित है।

फ्रांस में यह 1800 में आया। पोर्नोग्राफी आज एक सेक्स उद्योग के रूप में उभर गया है। 1970 में अमेरिका के एक संघीय अध्ययन में पता चला था कि यह उद्योग उस वक्त 10 मिलियन डॉलर का था। 28 वर्ष बाद यही उद्योग 1998 में 750 मिलियन से एक अरब डॉलर प्रति वर्ष हुआ। अमेरिका में 2014 के आते-आते यह सेक्स पोनरे उद्योग प्रति वर्ष 13 अरब डॉलर का हुआ। सीएनबीसी ने अनुमान लगाया कि अमेरिका में हर सेकेंड में तीन हजार डॉलर खर्च किए जाते हैं और 39 मिनट में एक नई पोनरे वीडियो बन कर तैयार हो जाती है। यद्यपि देा में खजुराहो से लेकर मंदिरों में स्त्री-पुरुष के चित्रों को विभिन्न काम मुद्राओं में उकेरा गया है, पर वे ऐसा रूप प्रस्तुत नहीं करते-जैसा आज इंटरनेट विकृत रूप में कर रहा है। उन चित्रों में कला है, समर्पण है, जबकि दूसरी ओर इंटरनेट पर भौंडे ढंग से, बाकायदा कैपेंन के साथ रिश्तों को चीरा जा रहा है। पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका या अन्यत्र प्रेमालाप तो सह्य है। और उसकी चित्रकारी मनभावन भी है, लेकिन मर्यादित रिश्तों को बेहुदेपन से सेक्स व्यपार बनाना बहुत चिंतनीय विषय है। वेश्यालय हों, ठीक है; पर वह भी अनैतिक माने जाने चाहिए, क्योंकि जीने का अधिकार मात्र सेक्स वृत्ति से नहीं किया जाना चाहिए। राज्य का दायित्त्व है कि वह किसी को भूखा न मरने दे। लेकिन जिस तरीके से नेट पर वीडियो डालकर काम को उकसाया जा रहा है, वह उस काम को शांत करने के लिए अपराध की ओर बढ़ता है। इसके प्रत्यक्ष प्रमाण आए दिन सड़कों पर चीर हरण को जन्म दे रहे हैं। गौर से यदि इस पक्ष पर विचार करें तो महानगरीय जीवन सेक्स स्कैंडलों के जीते-जागते उदाहरण प्रस्तुत कर कर रहा है। इसमें सहायक सेक्स उत्तेजना को भड़काने वाले अश्लील वीडियो ही हैं। काम की उत्तेजना को रिलीज करने के लिए, ऐसा व्यक्ति किसी भी हद तक जा सकता है। छोटी-छोटी बच्चियों को भी कामांध छोड़ नहीं सकता है-जैसे मामले सामने आ रहे हैं। आए दिन अखबारों के पन्ने ऐसी आपराधिक घटनाओं से भरे पड़े हैं। कभी किसी ने इस महामारी की ओर सोचा है, जो हमारी जीवनशैली को प्रदूषित कर रही है। कम-से-कम उन मासूम बच्चों को इंटरनेट में आने वाले पोनरे से दूर रखने के प्रयास करने चाहिए। बाहरी देशों में इस ओर ध्यान तो गया, पर वे सिर्फ छोटे बच्चों में मोबाइल को रोकने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले वर्ष कुछ ऐसा कानून ब्रिटेन ने बनाया है, जो कुछ समय तक बच्चों से मोबाइल को दूर रखने का प्रयास कर रहा है। पर पोर्नोग्राफी में बच्चों को दुनियाभर के देशों के इंटरनेट काम कर रहे हैं, उनका सिर्फ एक ही मकसद है-सेक्स मनोरंजन दिखाना।
व्यवसायी अपने व्यवसाय में अंधाधुंध पैसा कमाने में लगे हैं, बच्चे और व्यक्ति में चरित्र निर्माण उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। इस स्थिति से सामाजिक संस्थाओं से लेकर स्कूलों को एक स्वस्थ वातावरण देने का प्रयास हर सरकार का होना चाहिए। चाहिए इसके लिए नैतिक शिक्षा की कक्षाएं क्यों न विश्वविद्यालय तक चलाई जाएं। सेक्स प्रदूषण से समाज को बचाना है तो इसमें अभियान छेड़ना जरूरी है। काम भावना व्यक्ति के मस्तिष्क पर चौबीसों घंटे चलती रहेगी तो वह कभी न कभी किसी अपराध को अंजाम देने में किसी को नहीं छोड़ेगा, उसकी पशु प्रवृत्ति को उकसाना, समाज को प्रभावित करना होगा। उस पर काबू करवाने का प्रयत्न नैतिक शिक्षा ही कर सकती है। साथ ही नेट को पोनरे से बचाना भी जरूरी है।

भगवती प्र. डोभाल


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