मीडिया : साम्प्रदायिक विभाजन की फैक्टरी

Last Updated 01 Mar 2020 02:20:44 AM IST

ये गली हिंदू, वो गली मुसलमान! ये मुहल्ला हिंदू, वो मुहल्ला मुसलमान! ये मकान हिंदू, वो मकान मुसलमान! ये दुकान हिंदू, वो दुकान मुसलमान! ये गाड़ी हिंदू, वो गाड़ी मुसलमान! ये पत्थर हिंदू, वो पत्थर मुसलमान! ये गोली हिंदू, वो गोली मुसलमान!


मीडिया : साम्प्रदायिक विभाजन की फैक्टरी

पूर्वी दिल्ली के करावल नगर की एक लंबी और पतली गली के बीच लगे नये बेरीकेड के दोनों ओर लेग खड़े हैं। एक एंकर इधर वालों से पूछता है कि क्या हुआ तो जवाब आता है कि रात को भीड़ उधर से आ रही थी तो हमने आपस में बात की और तय किया कि यहां कुछ नहीं होने देंगे और कुछ नहीं हुआ। हमारे बीच चार-पांच घर मुसलमानों के हैं, जो सुरक्षित हैं।
जब एंकर ने बेरीकेड के उधर वालों से पूछा तो जवाब मिला कि हमारे बीच पंद्रह घर हिंदुओं के हैं। हमारे बीच भाईचारा है। जब उधर से दंगाइयों की भीड़ आई तो हमने आपस में सलाह की और उनको नहीं आने दिया। ये बेरीकेड कब हटेगा के जवाब में सब बोलने लगे कि हटने को जरा-सी देर में हट जाएगा लेकिन अभी नहीं हटेगा। अभी दहशत है। अचानक एक औरत ने इस ‘भाईचारावादी’ कहानी में फंसट डाली कि नहीं, ऐसा कुछ नहीं है..लेकिन जल्दी ही दूसरों ने संभाला कि हम लोग बीस साल से पड़ोसी हैं। हमारे बीच भाईचारा है..फिर भी कहानी में कुछ कसमसाता सा रह जाता है। एंकर बार-बार पूछता है कि बेरीकेड कब हटेगा और उसे वही जवाब मिलता है कि कभी भी हट सकता है..लेकिन हटता नहीं।

एक चैनल द्वारा लाइव प्रसारित यह सीन देर तक स्मृति में टंका रह जाता है। इस लंबी और पतली गली के एक ओर हिंदू खड़े हैं। दूसरी ओर मुसलमान। ऐन बीच में लोहे का पीला ट्रैफिक वाला बेरीकेड लगा है, जो गली को ऐन बीच से विभाजित करता है। यह दंगे की रात लगाया गया है। पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद, मौजपुर, खजूरीखास, चांदबाग, शिवपुरी, भजनपुरा, करावलनगर आदि तीन दिन तक सांप्रदायिक दंगों की चपेट में रहे। दंगों को कवर करते कई पत्रकार और कैमरामैन पिटे और जान बचाकर भागे। एक अंग्रेजी अखबार अपने पत्रकार की रिपोर्ट  छापकर बताता है कि पहले भीड़ के नायक ने पूछा कि तू हिंदू है कि मसुलमान? फिर रिपोर्टर का आई-कार्ड देखा तो कहा :‘अच्छा है। तू हिंदू है। बच गया’। लेकिन भाग जा नहीं तो उधर से आ रही भीड़ तुझे नहीं छोड़ेगी। वे उसका मोबाइल ले लेते हैं कि कहीं वीडियो तो नहीं बनाया। पत्रकार अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट कर जैसे-तैसे भागता है।
तीन दिन के इन भीषण दंगों के दौरान मीडिया के फोकस में कई नायक/खलनायक आए। एक भाजपा के नेता कपिल मिश्रा हैं, तो दूसरे आप पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन। तेईस फरवरी की दोपहर कपिल ‘जाफराबाद’ में ‘शाहीन बाग’ बनाने वालों को अल्टीमेटम देकर जाते हैं कि ट्रंप के जाने तक यह रास्ता खाली न किया तो हम कराएंगे। कुछ देर बाद खबर चैनल दंगों की खबरें लाइव देने लगते हैं। मौजपुर व जाफराबाद के बीच पत्थरबाजी करती भीड़ दिखने लगती है। आंसू-गैस के गोलों और गोलियों की आवाजें आने लगती हैं। पुलिस देर तक मूकदर्शक बनी रहती है। इसी बीच में एक युवक पिस्तौल से फायर करता आता है, एक सिपाही के चेहरे के सामने पिस्तौल तानता है, और कुछ पल बाद चला जाता है। पुलिस उसे जाने देती है। वह अब तक फरार है।
खबर चैनल उसे ‘मोहम्मद शाहरुख’ बताते हैं, लेकिन एक चैनल का एक कथित सेक्युलर एंकर उसे ‘अनुराग मिश्रा’ सिद्ध करने पर तुला रहता है। न गिरफ्तारी, न जांच लेकिन एंकर फैसला देने लगता है कि वो मुसलमान नहीं हिंदू हैं..कुछ एंकर मुसलमानों को खल बताते रहते हैं तो कुछ हिंदुओं को। लगता है कि दंगों ने एंकरों को भी हिंदू-मुसलमान बना डाला है। ऐसी विभक्ति सोशल मीडिया में सर्वाधिक मुखर है। दंगों के तीसरे दिन चैनल ताहिर हुसैन के मकान को ‘टेरर फैक्टरी’, ‘दंगा फैक्टरी’ बताने लगते हैं। हर चैनल उस पांच मजिला मकान की हर मजिल पर रखे पत्थरों, एसिड भरे प्लास्टिक पैक्स और पेट्रोल से भरी बोतले व गुलेलों का लाइव कवर करता है। हर चैनल पर बजते एक ‘अपुष्ट वीडियो’ में ताहिर स्वयं ‘एक्शन’ में दिखता है। लेकिन कथित सेक्युलर एंकर ताहिर के पत्थर, तेजाब, पेट्रोल के इस आर्काइव को औचित्य प्रदान करने लगते हैं। अब तक तो टीवी चर्चाएं ही हिंदू-मुसलमान होती थीं। इस दंगे में मुहल्ले-गलियां तक हिंदू-मुसलमान हो गए और अब एंकर हुए जा रहे हैं। और सोशल मीडिया! वो तो सांप्रदायिक विभाजन की पूरी फैक्टरी ही है।

सुधीश पचौरी


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