बतंगड़ बेतुक : इंसान और इंसानियत की मौत पर
झल्लन मुंह लटकाये, उदास चेहरा लिये, हमेशा के विपरीत चुपचाप हमारे पास आकर खड़ा हो गया। हमने पूछा,‘क्या हुआ झल्लन..?’झल्लन बोला,‘ददाजू,अभी कुछ मत कहिए,बस दो मिनट मौन रहिए।’
बतंगड़ बेतुक : इंसान और इंसानियत की मौत पर |
हमने झल्लन का कहना मान लिया और दो मिनट का मौन धर लिया। मौन मिनट बीते तो झल्लन लंबी सांस लेकर बोला,‘देखिए ददाजू, कितने निदरेष लोग मर गये,दुष्ट दंगाई अपनी साजिश को फिर सफल कर गये।’ झल्लन ने हमें दंगों में मारे गये लोगों के लिए मौन रखवाया था, जो हमने अब तक नहीं किया वह हम से करवाया था।
हमारे भीतर गुस्से की एक लहर-सी फैलती चली गयी, हमारी नसों और शिराओं को कसती चली गयी। पर हम कर भी क्या सकते थे, सिर्फ मौन रह सकते थे और मौन ही रख सकते थे। झल्लन बोला,‘ददाजू, पता नहीं लगता इंसान के भीतर का जानवर कब कहां से छलांग मार डालेगा, कब किसको चीर-फाड़ डालेगा।’ हमने कहा,‘तू ठीक कहता है झल्लन। इंसान के भीतर का खूंखार जानवर रह-रहकर निकल ही आता है, न इसे कोई सत्ता रोक पाती है न कोई मजहब रोक पाता है।’ झल्लन बोला,‘देखिए, जानवर तो अपना खूनी खेल ख्ेालकर चले गये, न जाने कितनी जिंदगियां उजाड़ गये, न जाने कितने घरों का सुख-चैन निगल गये।’ हमने कहा,‘सियासत बहुत कमीनी चीज है झल्लन, यह कभी भी कुछ भी करा सकती है, इंसानियत के सारे तकाजों को कभी भी धूल चटा सकती है, इंसानों के दुख-दर्द को नहीं इंसानों को ही मिटा सकती है।’
झल्लन बोला,‘सच कहें ददाजू,जब से शाहीन बाग हो रहा था हमारा मन तो तभी से ऊभ-चुभ हो रहा था। हमें लग रह था कि कोई अनहोनी जरूर घटेगी, सियासत की जो काली चादर फैलायी जा रही थी, वह जिंदगियों को स्याह किये बगैर नहीं हटेगी।’ हमने कहा,‘यह तो सरकार की विफलता है जो दंगों पर रोक नहीं लगा पायी, लोगों को सही रास्ता नहीं दिखा पायी, उनमें इंसानियत का जज्बा नहीं जगा पायी।’ झल्लन बोला,‘जब कोई सरकार की जड़ों में पलीता लगाने आया हो, इरादा बनाकर आया हो, न सुनने आया हो न समझने आया हो बल्कि जो उसे करना है, सिर्फ वही करने आया हो तो सरकार कैसे लगाम लगा सकती है। सोये हुओं को तो जगाया जा सकता है पर जो अच्छी तरह जागे हुए हों उन्हें कैसे जगा सकती है।’
हमने कहा,‘सरकार को क्लीन चिट देना ठीक नहीं है झल्लन, सरकार की अपनी जिम्मेदारी होती है, जिसे उसको हर सूरत में निभानी होती है। सरकार ने अपना कर्त्तव्य नहीं निभाया, अपना कसबल नहीं दिखाया और देख इसका कितना डरावना परिणाम सामने आया।’ झल्लन बोला,‘ददाजू, यह परिणाम आया नहीं, लाया गया है। जो चाहते थे ट्रम्प के दौरे में सरकार की थू-थू हो जाये तो हो गयी, उनकी जो असली मंशा थी, वो पूरी हो गयी। अब देखिए, लंदन से वाशिंगटन तक क्या-क्या लिखा जा रहा है। दिमाग पर ढक्कन चढ़ाकर न जाने सरकार के बारे में क्या-क्या कहा जा रहा है।’ हमने कहा, ‘जो सरकार कानून-व्यवस्था के मामले में इस तरह विफल हो जाये, तो तू क्या चाहता है कि उसकी शान में कसीदा पढ़ा जाये। कम से कम अब तो सरकार को चेतना चाहिए और इतना सुनिश्चित करे कि जो हुआ है, वह दुहरना नहीं चाहिए।’
झल्लन बोला,‘चाहते तो हम भी हैं कि आपकी कामना पूरी हो और जो जहां हुआ है, वह वहीं तक होकर रह जाये, न कहीं और फैले न कहीं और पसर पाये। पर हम जानते हैं हमारा सोचा हुआ हो नहीं पाएगा, हमारा और आपका सद्भाव काम नहीं आएगा।’ हमने कहा,‘कैसी अपशकुनी बात करता है झल्लन, जिस दिन सरकार और सियासी जमातें सावधान हो जाएगीं तो सारी स्थितियां काबू में आ जाएंगी।’ झल्लन बोला,‘कैसी बातें करते हो ददाजू, हालात तब सुधरते हैं, जब सब अपने-अपने गिरेबान में झांकते हैं और प्रायश्चित के लिए खुद अपने पापों को आंकते हैं। पर यहां तो सब अपने-अपने गुनाह ढक रहे हैं और एक-दूसरे के लिए कहा-अनकहा सब बक रहे हैं। ये सियासी जमातें यहां नहीं रुकेंगी और इंसानियत के किसी भी तकाजे के सामने नहीं झुकेंगी।’ हमने कहा,‘तू तो डरा रहा है झल्लन। हम चाहते हैं कि सबको सद्बुद्धि आ जाये और जो हुआ है, वह आगे न हो और विराम पा जाये।’
झल्लन ने हमारी नजर से नजर मिलायी, अपनी पुतली ऊपर-नीचे नचाई और बोला,‘ददाजू, आप जो कहें वह कहें मगर जो हालात हैं, वे किसी और दिशा में बह रहे हैं, वे कुछ और कह रहे हैं। आप लिख लीजिए ददाजू, दिल्ली में जो हुआ है, वह दिल्ली तक नहीं रुकेगा, सिलसिला बनकर आगे और बढ़ेगा। लोगों के दिल-दिमाग पर नफरत का खूनी उन्माद और चढेगा। अभी और बुरे दिन आएंगे आपको और ज्यादा डराएंगे।’ हमने कहा,‘जब सियासत धर्म-मजहब की पट्टी आंख पर बांध लेती है, तब वह इंसानियत को मार देती है। नहीं मालूम इस जंग में कौन जीत रहा है पर इंसानियत हार रही है, इंसान मर रहा है।’ झल्लन बोला,‘आइए ददाजू, अब हम खामोश हो जायें, इंसान और इंसानियत की मौत पर फिर से मौन हो जायें।
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