आखिर किसके फायदे में

Last Updated 15 Apr 2017 05:36:56 AM IST

तेल विपणन कंपनियों ने एक मई से पेट्रोल और डीजल के दाम में रोजाना बदलाव करने का जो फैसला लिया है उसका ग्राहकों को कोई खास फायदा नहीं होगा.


पेट्रोल और डीजल के दाम में रोज बदलेंगे.

पायलट प्रोजेक्ट के तहत यह योजना चंडीगढ़, जमशेदपुर, विशाखापत्तनम, उदयपुर और पुडुचेरी में लागू होगी. इसके बाद चरणबद्ध तरीके इसे देशभर में लागू किया जाना है. इसमें कोई दोराय नहीं कि किसी भी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए व्यवस्था में सुधार जरूरी है. लेकिन पेट्रोल और डीजल के दाम रोजाना तय करने से आखिर किसको और कितना फायदा होगा इसके दूर-दूर तक कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं. इस योजना शुरुआत से पहले सरकार को योजना का मुख्य मकसद बताना चाहिए था. यह भी कि इसके लिए क्या खास तैयारियां की गई हैं? इस मुद्दे पर सवाल यह भी उठ सकता है कि यह तेल विपणन कंपनियों का फैसला है. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इंडियन ऑयल समेत सार्वजनिक क्षेत्र की चारों बड़ी तेल कंपनियों में सरकार की बहुलांश हिस्सेदारी है. इनका मालिकाना हक सरकार के पास ही है. जाहिर है इन कंपनियों के किसी भी बड़े फैसले में निश्चित तौर पर सरकार की भागीदारी रहती है.

यह बात सही है कि घरेलू बाजार में पेट्रोल व डीजल के दाम कच्चे तेल के भाव पर निर्भर करते हैं. हमारी दो तिहाई से ज्यादा मांग आयात से पूरी होती है. वैिक बाजार में कच्चे तेल के भाव रोजाना तय होते हैं. घरेलू बाजार में सोने-चांदी के भावों भी रोजाना वैिक बाजार के आधार पर बदलाव किया जाता है. ऐसे में पेट्रोल व डीजल के भाव रोजाना निर्धारित करने के पीछे यह मजबूत तर्क हो सकता है लेकिन इसका ग्राहकों पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. अपने बचाव के लिए सरकार इन दोनों पेट्रोलियम उत्पादों के दाम पहले ही नियंत्रणमुक्त कर चुकी है, जिनकी समीक्षा पखवाड़े के अंत में की जाती है. आंकड़ों पर गौर करें तो कच्चे तेल में एक साथ बड़ा उतार-चढ़ाव बहुत ही कम देखने को मिलता है. ऐसे में यदि पेट्रोल-डीजल के भाव में रोजाना का दो-चार पैसे का अंतर आ भी जाए तो ग्राहक उस पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं देंगे.

 हालांकि सोने-चांदी के भाव रोज तय होते हैं, लेकिन यह विलासिता की वस्तुएं हैं. इनके न होने पर दिनचर्या पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा. लेकिन पेट्रोल-डीजल रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुएं हैं. इस ईधन की कीमत भले ही कुछ भी हो, गाड़ी में खत्म होने पर गंतव्य तक पहुंचने के लिए इसे हर हाल में खरीदना ही पड़ेगा. फौरी तौर पर देखें से इस बदलाव से ग्राहकों को कोई विशेष फायदा होता नहीं दिख रहा है. हालांकि इस कदम से सार्वजनिक तेल कंपनियों की बाजार पर पकड़ जरूर मजबूत हो जाएगी. इसका कुछ न कुछ फायदा निजी क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनियों को भी मिलेगा.



प्राय: देखा गया है कि राज्य विधानसभा और लोक सभा के चुनावों के दौरान कच्चे तेल में उछाल के बावजूद तेल कंपनियां पेट्रोल व डीजल के दाम नहीं बढ़ा पाती थीं. वोट बैंक प्रभावित होने के डर से इसके पीछे निश्चित तौर पर केंद्र सरकार का दबाव रहता है. देश में हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते ही रहते हैं. यदि दैनिक आधार पर दाम तय होंगे तो इससे राजनीतिक हस्तक्षेप की गुंजाइश खत्म हो जाएगी. जाहिर कंपनियां बिना किसी दबाव के कीमतों से संबंधित फैसले ले सकेंगी. नई व्यवस्था से पेट्रोलियम कंपनियों को यही सबसे बड़ा फायदा होता दिख रहा है लेकिन उनकी यह राह कांटों भरी साबित हो सकती है. इस व्यवस्था के लागू होने में कई बड़े जोखिम मुंह बाये खड़े हैं.

पेट्रोल पंप संचालकों के लिए दाम में रोजाना मैन्युअल बदलाव करना आसान काम नहीं है. हर राज्य में ईधन पर वैट की दरें अलग-अलग होने से यह समस्या और बढ़ेगी. यदि इस काम को सॉफ्टवेयर के जरिए किया जाए तो इसके लिए मशीनों को अपग्रेड कराना होगा जिसके लिए बड़े निवेश की जरूरत होगी. इस खर्च को कौन वहन करेगा, इस मुद्दे पर तेल कंपनियों और पेट्रोल पंप संचालकों के बीच विवाद छिड़ना तय है. इससे भी बड़ी समस्या यह है कि पायलट प्रोजेक्ट के तहत एक मई से चंडीगढ़ में रोजाना भाव बदलेंगे जबकि कालका और पंचकूला में 15 दिनों के बाद बदलाव होगा. यदि इस दौरान पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बड़ा अंतर आ गया तो इससे बाजार में भारी उथल-पुथल मच सकता है. इस तरह मौजूदा स्थिति में यह योजना सिरे चढ़ पाएगी, इसमें संदेह है. इस व्यवस्था को सफल बनाने के लिए पेट्रोलियम कंपनियों को सबसे पहले बुनियादी सवालों का समाधान ढूंढ़ना होगा.

 

 

देवेन्द्र शर्मा


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