वैश्विकी : अच्छा है, किवाड़ बंद नहीं हुए
तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश और विशेष कर तवांग की यात्रा को लेकर चीनी मीडिया राष्ट्रवादी भावनाओं का उफान पैदा कर के शांत हो गया.
वैश्विकी : अच्छा है, किवाड़ बंद नहीं हुए |
इस मसले पर दोनों देशों के राजनीतिक विश्लेषक और भारतीय मीडिया की ओर से संयम नहीं बरता गया. दोनों ओर से करीब एक सप्ताह तक चले वाक्-युद्धों से ऐसा माहौल बनता दिखाई दे रहा था, मानो भारत और चीन के राजनयिक-कूटनीतिक संबंधों के किवाड़ किसी भी पल बंद हो सकते हैं. लेकिन दलाई लामा के अपने तय कार्यक्रम के अनुसार तवांग पहुंचने के बाद दोनों देशों के रिश्तों के बीच पड़ी धुंध छंटने लगी है. दोनों शिखर नेतृत्व आपसी सहमति से विवाद को जिस तरह से सुलझा लिया, उससे लगता है कि यह विवाद न तो जमीनी स्तर और न सरकारी स्तर पर वैसा था.
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के कैलाश मानसरोवर यात्रा की घोषणा से यह समझा जा सकता है कि दलाई लामा की तवांग यात्रा से पैदा हुए विवाद के चलते भारत-चीन की सामान्य गतिविधियों में किसी तरह की अड़चन या रुकावट नहीं आ पाई. अस्वस्थ चल रहीं विदेश मंत्री की कैलाश मानसरोवर यात्रा के मसले पर पत्रकार वार्ता करने के सांस्कृतिक महत्त्व को बखूबी समझा जा सकता है. वास्तव में भारत और चीन दोनों का शिखर नेतृत्व सतर्कता बरत रहे हैं कि आपसी संबंध खराब न होने पाए. सीमा अशांत न हो. यह दोनों देशों की कूटनीतिक परिपक्वता का अनूठा उदाहरण है. चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा मानता है.
1949 में साम्यवादी सरकार बनने के बाद से ही अरुणाचल पर अपना दावा करता आया है. भारत ने 1971 में जब अरुणाचल को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया तो चीन ने इस पर विवाद खड़ा किया था. 1987 में जब इस प्रदेश को भारतीय संघ का 24वां राज्य घोषित किया तो चीनी विदेश मंत्रालय ने इसे चीन की अखंडता और सम्प्रभुता का गंभीर उल्लंघन बताया. भारत ने तब भी चीन के दावे और विरोध को खारिज किया था. दरअसल, चीन अपनी विस्तारवादी नीति के चलते अलग-अलग अवसरों पर अपना स्टैंड बदलता रहता है. कभी वह मैकमोहन रेखा को स्वीकार करने की बात करता है और फिर तुरंत इसे नकार भी देता है. दरअसल, वह किसी न किसी तरीके से दूसरे देशों में ऐसी स्थितियां पैदा करने की कोशिश करता रहा है, जिससे तनाव और मतभेद बना रहे. यह उसकी पारम्परिक नीति रही है.
लेकिन वर्तमान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग माओ की परम्परागत शैली से अलग राह पकड़ कर चल रहे हैं. विश्व की बदलती भू-राजनीतिक परिस्थिति अड़ियल और लचीला रुख दोनों की मांग करता है. चीन इस यथार्थ को समझता है कि भारत उभरती हुई विश्व शक्ति है. चीनी समानों का बहुत बड़ा बाजार है. भौगोलीकरण और वैीकरण के दौर में भारत के साथ संबंध तोड़कर वह अपना आर्थिक विकास नहीं कर सकता. इसलिए भी चीनी नेतृत्व ने वर्तमान विवाद में लचीला रुख अपनाते हुए मामले को शांत करने के लिए प्रति दिलचस्पी दिखाई है. यह चीन का समझदारी भरा कदम है. वैसे भी अनुमान किया जा रहा था कि चीन बिगाड़ की हद तक नहीं जाएगा.
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