मौद्रिक समीक्षा : नकदी और महंगाई का साया
छह अप्रैल को पेश की गई नये वित्त वर्ष की पहली द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा में केंद्रीय बैंक ने नीतिगत दर को यथावत रखा है.
मौद्रिक समीक्षा : नकदी और महंगाई का साया |
इस निर्णय के मुख्य कारक अलनीनो के कारण मॉनसून का खराब रहना, खाद्य पदार्थों की कीमत में तेजी रहने की संभावना, नकदी की अधिकता आदि हैं. प्रणाली में नकदी की अधिकता के कारण ही रिजर्व बैंक ने मार्जिनल स्टैंडिंग फैसेलिटी और बैंक दर को 6.50 प्रतिशत कर दिया है, ताकि नकदी का उचित प्रबंधन किया जा सके.
देखा जाए तो विमुद्रीकरण के कारण अभी भी बैंकों में सस्ती पूंजी की उपलब्धता बनी हुई है. जनवरी 2017 से मार्च 2017 के दौरान औसत निकासी के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है, जबकि 13 मार्च 2017 से नकदी की निकासी पर से सरकार ने पूरी तरह से प्रतिबंध हटा लिया था. फिर भी विमुद्रीकरण की अवधि में जमा किए गए 1729 अरब रुपये की निकासी अभी तक नहीं हुई है, जिसमें से 684 अरब रुपये बैंकों के पास ऐसी नकदी जमा है, जिनपर उन्हें ग्राहकों को महज 4 प्रतिशत ही ब्याज देना पड़ रहा है. हां, 1045 अरब रुपये पर कुछ ज्यादा ब्याज देना पड़ रहा है, लेकिन वह भी बीते दिनों के मुकाबले बहुत कम है. इसी वजह से स्टेट बैंक ने विलय के बाद अपने बेस रेट में 15 बेसिस प्वाइंट्स की कटौती की है. रिजर्व बैंक के मुताबिक वित्त वर्ष 2018 की पहली छमाही में मुद्रास्फीति 4.5 प्रतिशत रहेगी और दूसरी छमाही में 5.00 प्रतिशत. मौद्रिक नीति समिति के अनुसार मुद्रास्फीति के मामले में भी संतुलित जोखिम रहेगा. वैसे, इस संदर्भ में अलनीनो के कारण वर्ष 2017 में मॉनसून के अपेक्षा अनुसार नहीं रहने और इसके कारण खाद्य उत्पादों की कीमत में उछाल आने की संभावना है. स्काइमेट के अनुसार मॉनसून एलपीए का 95 प्रतिशत रह सकता है.
इधर, थोक महंगाई फरवरी 2017 में 39 महीने के उच्च स्तर 6.55 प्रतिशत पर पहुंच गई, वहीं खुदरा महंगाई भी बढ़कर 3.65 प्रतिशत के स्तर पर आ गई. महंगाई दर में बढ़ोतरी खाद्य पदार्थों और ईधन की कीमत में इजाफा होने से हुई है. विनिर्माण और अन्य औद्योगिक गतिविधियों में भी धीरे-धीरे तेजी आ रही है. पीएमआई के आंकड़े अर्थव्यवस्था में बेहतरी आने के संकेत हैं. निर्यात में बढ़ोतरी से अच्छे दिन आने की संभावना को बल मिला है. फिर भी अभी कर्ज की मांग कम है, जिसका सत्यापन बैंकों के कम क्रेडिट वृद्धि से होती है, जबकि बैंकों के पास पर्याप्त मात्रा में सस्ती पूंजी उपलब्ध है. अमेरिका में फेड दर में बढ़ोतरी के कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारत से अपनी पूंजी निकाल करके अमेरिका में निवेश की है. अगर, केंद्रीय बैंक तत्काल नीतिगत दर में कटौती करता तो विदेशी संस्थागत निवेशकों को उससे मिलने वाले फायदे अमेरिका में किए गए निवेश से कम होते, क्योंकि विमुद्रीकरण के नकारात्मक प्रभाव से अर्थव्यवस्था अभी उबर रही है, जबकि आने वाले दिनों में नीतिगत दर में कटौती करने से विदेशी संस्थागत निवेशकों को भारत में निवेश करने से ज्यादा फायदा मिल सकता है, जिसकी पुष्टि ‘दि निक्केई मार्केट मैन्युफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स’ (पीएमआई) के आंकड़ों से भी होती है. एक जुलाई से जीएसटी लागू होने का रास्ता भी साफ हो गया है.
अप्रत्यक्ष कर की इस नई व्यवस्था से सरकार रोजगार सृजन, आधारभूत संरचना का विकास, औद्योगिक विकास को गति, अर्थव्यवस्था को मजबूत आदि करने में समर्थ हो सकेगी. साथ-साथ इससे एकीकृत कर बाजार का लक्ष्य, कर संग्रह में सुधार, कर के दायरे में विस्तार एवं देश के विकास का रास्ता प्रशस्त हो सकेगा. कर के ऊपर कर नहीं लगने से मुद्रास्फीति भी काबू में रहेगी. अभी नीतिगत दर में कटौती करने का सही समय नहीं आया है. बैंकों में सस्ती पूंजी की उपलब्धता, महंगाई बढ़ने की आशंका आदि के कारण जून में पेश की जाने वाली मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत दर में कटौती करना अर्थव्यवस्था में मजबूती के लिए मुफीद हो सकता है. इधर, रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल द्वारा कर्ज माफी पर अपनी नाराजगी जताना वित्तीय सेहत को अक्षुण्ण रखने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को जताता है. इस तरह की सरकारी योजनाओं से कर्ज चुकाने की प्रवृत्ति पर नकारात्मक असर पड़ता है. इसके पहले भारतीय स्टेट बैंक की अध्यक्ष ने भी कहा था कि कर्ज माफी वित्तीय अनुशासन के मार्ग में सबसे बड़ा रोड़ा है. इसके पहले वर्ष 2008 में की गई कर्ज माफी के दुष्परिणामों को बैंकों को अभी भी झेलना पड़ रहा है.
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