विश्लेषण : क्यों भटक रहे हैं जवान?
अनुशासनहीनता और अपने विभागीय दायित्वों के प्रति गैर-जिम्मेदराना रुख अपनाने की महामारी ने देश की सेना और अर्धसैनिक बलों को भी चपेट में ले लिया है.
विश्लेषण : क्यों भटक रहे हैं जवान? |
निश्चय ही अपने आप में यह बेहद गंभीर मसला है. एक ताजा मामले में नेवी के एक अधिकारी के साथ उसके अपने जहाज पर ही बदतमीजी और मारपीट की घटना प्रकाश में आई है. ओडिशा के पास तैनात नेवी के जहाज ‘आईएनएस संध्यायक’ के चार नाविकों ने अपने अफसर को पीटा. उसके निर्देशों को मानने से इंकार कर दिया और जब अफसर ने एक्शन की बात कही तो उसे पीटा गया. इससे मिलता-जुलता एक मामला कुछ समय पहले मेरठ में भी सामने आया था. वहां थल सेना के जवानों ने अपने अफसरों को पीटा था. इसकी वजह यह सामने आई कि एक मुक्केबाजी के मैच में पराजित होने के बाद अफसर ने अपने जवान को डांटा. इससे खफा उस जवान ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर अपने अफसर को ही पीटना चालू कर दिया.
मुझे याद आती है 1983 के अंत में हुई घटना जब बिहार (अब झारखंड) के रामगढ़ कैंट में सिख रेजिमेंटल सेंटर के कुछ जवानों ने ऑपरेशन ‘ब्लू स्टार’ के बाद बहकावे में उतेजित होकर सेंटर कमांडेंट ब्रिगेडियर एससी पुरी की गोली मारकर निर्मम हत्या कर दी थी और हथियारों सहित भाग निकले थे. यह बात अलग है कि ये सारे दिग्भ्रमित जवान पकड़े गए. कोर्ट माशर्ल हुआ और जेल गए. पर जो उत्पात उन्होंने मचाया वह सिख रेजिमेंट के स्वर्णिम इतिहास पर कालिख पोत गया. ये कुछ मामले हैं, जो इस ओर इशारा कर रहे हैं कि सेना में अनुशासनहीनता काफी अरसे से पैर पसार रही है. इस मानसिकता को सख्ती से खत्म करने की अविलंब आवश्यकता है. उन कारणों के गहन अध्ययन की भी आवश्यकता है, जिनके कारण सेना और अर्धसैनिक बलों में यह गंभीर समस्या पैदा हो रही है.
पिछले वर्ष 16 दिसम्बर को सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने सीआरपीएफ के एक जवान की अपने अधिकारियों से अभद्रता से लेकर ड्यूटी में कोताही बरतने के मामले की सुनवाई के दौरान साफ किया था कि सुरक्षा बलों में अनुशासनहीनता या अपने अफसर के निर्देशों की अवलेहना करने वाले जवानों पर सख्त कार्रवाई हो.
आखिर, देश के लिए अपने प्राणों की आहूति देने के लिए सदैव तत्पर जवानों में यह भटकाव क्यों दिखाई दे रहा है? वे आत्महत्या क्यों करने लगे हैं? तनाव में क्यों रहते हैं? कुछ वर्ष पहले आईआईएम, अहमदाबाद ने अपने शोध में तनाव को बड़ा कारण माना था जवानों में अनुशासनहीनता के लिए. शोध रिपोर्ट का निष्कर्ष था कि जवानों में तनाव के लिए कम नींद, लंबी ड्यूटी, कम छुट्टी, रैंक के अनुसार ड्यूटी न मिलना, हमले की स्थिति में भी फैसला लेने का कम अधिकार, वेतन में असमानता, शिकायतों पर गौर न करना, खराब वर्दी पहनने से आत्मविश्वास कम होना, मेस का खराब खाना, अफसरों का गाली-गलौज, परिवार के साथ वक्त गुजारने का कम मौका और अधिकारियों की गलत कारणों से प्रताड़ित किया जाना है. यह कोई नहीं कह सकता कि सेना या अर्धसैनिक बलों में जो कुछ हो रहा है, उसे लेकर सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है. कतई नहीं.
पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने अगस्त, 2015 में संसद में एक सवाल के जवाब में बताया था कि जवानों का तनाव कम करने के लिए योग, ध्यान, वरिष्ठों के साथ नियमित संपर्क, छुट्टियों को लेकर लचीली नीति और तनाव प्रबंधन जैसे उपाय किए जा रहे हैं. इससे पहले 2012 में सांबा में जवानों और अधिकारियों के बीच झड़प के बाद तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने भी जवानों की तनाव को ही इसकी वजह बताया था यानी जवानों में तनाव के उपाय तो खोजने होंगे. स्वतंत्र भारत के इतिहास में शायद पहली बार सैनिकों ने गड़बड़ 1984 में की थी. ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद 7-10 जून के दौरान देश के कई हिस्सों में सिख सैनिकों ने विद्रोह कर दिया था. सिख रेजीमेंट के करीब 500 सैनिकों ने राजस्थान के गंगानगर जिले में ऑपरेशन ब्लू स्टार की ख़्ाबरें सुनकर बगावत कर दी थी.
इसी तरह से अलवर, जम्मू, थाणो और पुणे में भी सिख सैनिकों ने विद्रोह किया था. निश्चित रूप से देश के लिए वह बेहद संकट का काल था. हालांकि उस विद्रोह को आजकल हो रही घटनाओं से सीधा जोड़कर तो नहीं देखा जा सकता क्योंकि दोनों के कारणों और चरित्र में मूलभूत अंतर है. पर किसी भी कारण से सुरक्षा बलों में विद्रोह और अनुशासनहीनता को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता. अब सेना और अर्धसैनिक बलों में घोर अनुशासनहीनता का एक और रूप सामने आ रहा है. बीते कुछ समय के दौरान कुछ जवानों ने वीडियो के जरिए अपनी परेशानी के बारे में बताया. क्या इन्हें यह सब शोभा देता है?
वीडियो वायरल होने के बाद सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने खुद इस मामले का संज्ञान लिया. कड़े शब्दों में कहा कि जवान सोशल मीडिया पर वीडियो न डालें. कोई शिकायत है तो वो सीधे उनसे कहें. दरअसल, पहले जवान मात्र ग्रामीण क्षेत्रों से और बहुत ही कम पढ़े-लिखे आते थे. नब्वे फीसदी से ज्यादा हाई स्कूल तक भी नहीं पढ़े होते थे. अब कम से कम हाई स्कूल और यूनिर्वसटिी ग्रेजुएट आ रहे हैं. उनका मूल चरित्र और महत्वाकांक्षाएं बढ़ गई हैं परंतु अफसरों का परंपरागत व्यव्हार जैसा बदलना चाहिए था, नहीं बदला है. वह बदलना होगा तभी बात बनेगी. सेना और अर्धसैनिक बलों की ही बात हो तो मान कर चलिए कि कुछ जवानों को अफसरों से शिकायतें होंगी ही. कुछ आपने काम से संतुष्ट भी नहीं होंगे. इसलिए छोटे-मोटे मसले तो कायम रहेंगे. अगर इनसे जुड़े लोगों के मसलों को हल करने का बेहतर सिस्टम तैयार हो जाए तो सब ठीक हो सकता है. अंत में मैं एक और पहलू पर अपनी बात रखूंगा.
दरअसल, भारत में सेना के तीनों अंगों में करप्शन और हथियारों की खरीद में जिस तरह बड़े अफसर फंस रहे हैं, उससे भी अफसरों को लेकर जवानों के मन में सम्मान का भाव घटा है. इसलिए सैन्य अफसरों को भी अपनी गिरेबान में झांक लेना चाहिए. रक्षा मंत्रालय को अफसरों पर भी सख्ती बरतनी होगी.
| Tweet |