मुद्दा : मॉरल पुलिसिंग बनाम एंटी रोमियो
पश्चिमी संस्कृति के असर के कारण हमारे देश के ज्यादातर हिस्सों में तमाम विरोधों के बीच पिछले कुछ अरसे से चोरी-छिपे ही सही, वैलेंटाइंस जैसा पर्व जोर-शोर से मनाया जाता रहा है.
मुद्दा : मॉरल पुलिसिंग बनाम एंटी रोमियो |
किशोरों और युवाओं में इसके प्रति बढ़ती ललक को बाजार ने अपने ढंग से भुनाने की कोशिश की है पर प्रेम के नाम पर जो विद्रूप हमारे समाज में दिखने लगा है, वह समाजशास्त्रीय चिंता की वजह बन गया है. सरकारें तक चिंतित हैं.
इसकी ताजा बानगी यूपी में ‘एंटी रोमियो स्क्वॉड’ के गठन के रूप में दिखी है. हालांकि, मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने आस्त किया है कि एंटी-रोमियो अभियान के नाम पर मॉरल पुलिसिंग कर रहे लोगों से सख्ती से निपटा जाएगा, पर इस अभियान से दुतरफा सवाल पैदा हो गए हैं. एक तो यह कि क्या लड़के-लड़की की दोस्ताना बातचीत भी एंटी रोमियो अभियान के नजर में गैरकानूनी मानी जाएगी, और दूसरा, क्या मॉरल पुलिसिंग का शोर मचाकर प्रेम के भदेस और सार्वजनिक प्रदर्शन को रोकने की कोई कोशिश जायज नहीं है. प्रेम के सार्वजनिक प्रदर्शन के ज्यादातर पक्षधरों की यह स्थापित दलील रही है कि हमारे समाज में मॉरल पुलिसिंग के नाम पर प्रेम करने वालों को जिस तरह खदेड़ा जाता रहा है, उस पर अंकुश तभी लगेगा जब देश में ‘किस ऑफ लव’ जैसे कुछ आयोजन होंगे.
पर ऐसे आयोजनों के समर्थक कम ही हैं, क्योंकि नारी स्वतंत्रता की वकालत करने वाले लोग व संगठन भी खुल्लम-खुल्ला ऐसी हरकतों का पक्ष नहीं लेते, जिनसे सामाजिक विचलन का खतरा बढ़ता है और देश में आधुनिकता के नाम पर असल में अपसंस्कृति के प्रचार-प्रसार की कोशिश होती है. एंटी रोमियो जैसी पहलकदमियों के विरोध में खड़ी फेसबुक और ट्विटर पर सक्रिय रहने वाली और ऐसे आयोजनों की समर्थक पीढ़ी से पूछा जा सकता है कि क्या वह उस प्रेम के बारे में जरा भी जानती है? चूंकि, इस युवा पीढ़ी के सामने दैहिक प्रेम को लेकर सबसे ज्यादा द्वंद्व हैं, इसलिए उसे ही यह समझने की जरूरत है कि प्रेम के इजहार की आजादी का मतलब प्यार नहीं होता.
ऐसी छूट मांगने और चाहने वालों की नजर में महज शरीर का आकषर्ण ही प्रेम होता है और ऐसे ही लोग प्राय: यह गलती करते हैं कि जिसे चाहा गया, यदि वह नहीं मिला तो दोनों में किसी के जीवन का कोई मतलब ही नहीं रह जाए. प्रेम के सार्वजनिक इजहार की स्वतंत्रता चाहने वाली पीढ़ी की इसी मानसिकता के कारण देश और समाज को वे प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं, जब एकतरफा प्रेम में पड़कर कोई लड़का किसी लड़की के चेहरे पर तेजाब फेंक देता है या उसका बलात्कार कर डालता है.
ऐसे ही सवाल अब यूपी के एंटी रोमियो अभियान को लेकर हैं क्योंकि इसमें ज्यादा खतरा मॉरल पुलिसिंग का ही है. सबसे अहम जिज्ञासा इसे लेकर है कि क्या ऐसे अभियान चलाने से पहले यह नहीं देखा जाना चाहिए कि कहीं इससे स्त्री-स्वतंत्रता में तो कोई विघ्न नहीं पड़ेगा. इसलिए पहली जिस चीज पर हमारी नजर जानी चाहिए वह यह है कि देश में ऐसी कम ही सार्वजनिक जगहें हैं, जहां महिलाएं अपनी सुरक्षा को लेकर पूरी तरह निश्चिंत हो सकती हैं. चूंकि, ऐसे स्थानों का अभाव है, इसलिए ऐसे ज्यादातर स्थानों पर वे किसी पुरु ष सहयोगी या मित्र के साथ जाना पसंद करती है, जहां उन्हें प्रेमी जोड़े या रोमियो-जूलियट की तरह मान लिये जाने का पूरा खतरा है.
दूसरी बात यह है कि दिल्ली के निर्भया हादसे के बाद से देश में महिलाओं की सुरक्षा व सम्मान की गारंटी देने वाले अनेक कानून बनाए गए हैं. यदि उन कानूनों का ही उचित पालन कराया जाए, किसी नये कानून, प्रबंध या एंटी-रोमियो दस्ते की जरूरत ही न पड़े? एक अहम सवाल व्यक्ति की निजता या निजी स्वतंत्रता का है, जिसके एंटी रोमियो जैसे अभियान से सबसे ज्यादा बाधित होने का खतरा है. हो सकता है कि सरकार के निर्देशों के बावजूद एंटी रोमियो दस्तों का सबसे प्रिय काम मॉरल पुलिसिंग और इसके नाम पर अवैध वसूली करना बन जाए. अतीत में ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिसकी वजह से मॉरल पुलिसिंग को हमेशा कोसा जाता रहा है.
पश्चिम के उलट हमें यह देखना होगा कि भारतीय संस्कृति में प्रेम एक अछूत चीज नहीं है. हमारे देश में राधा-कृष्ण के प्रेम को मान्यता दी गई है. अटूट प्रेम की अनेक गाथाएं इस देश की लोक-संस्कृति में रची-बसी हैं. इसीलिए सीमा से बाहर जाकर प्रेम के सार्वजनिक प्रदशर्न पर किसी को भी ऐतराज हो सकता है. इसीलिए आधुनिकता और स्वतंत्रता के नाम पर होने वाले हुड़दंग अक्सर एंटी रोमियो जैसे अभियानों को स्वत: ही न्योता दे डालते हैं.
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