मीडिया : डिकोडिंग मोदी
जब से यूपी का परिणाम आया है, तभी से हर चैनल मोदी को ‘डिकोड’ यानी उनके निहितार्थ पकड़ने की कोशिश कर रहा है.
मीडिया : डिकोडिंग मोदी |
एक चैनल लाइन लगाता है : डिकोडिंग मोदी. कुछ लोग परेशान हैं कि अब तक मोदी ‘सबका साथ सबका विकास’ करते थे. अब यूपी के चुनाव में उनको कौन सा ‘नया इंडिया’ दिख गया? एक चैनल पर दो पत्रकार, एक समाजशास्त्री और एकाध ऐसे ही ज्ञानी बैठे मोदी को ‘डिकोड’ करने में लगे रहे. मोदी थे कि डिकोड हो के नहीं हो रहे थे! ऐसी ही एक चरचा में एक प्रवक्ता ने बताया कि मोदी ने अब तक ‘तिरानबे योजनाएं’ शुरू की हैं. उज्ज्वला योजना, जन धन योजना, बिजलीकरण योजना, शौचालय योजना, स्वच्छ भारत योजना, मुद्रा लोन योजना..ये योजना वह योजना हद से हद आप पांच-सात योजनाएं याद रख सकते हैं, लेकिन तिरानवें योजनाएं कोई कैसे याद रखे? इस तरह ‘ईवेंट टू ईवेंट’ करना आप में एक जादू पैदा करता है, जिसे उत्तर आधुनिक सांस्कृतिक पदावली में ‘हाइपर रीयल’ कहा जाता है,जो एक प्रकार के ‘छलना संसार’ को बनाता है. हम उसके जादू में बंध जाते हैं. या तो उसके मायालोक में बंद हो जाते हैं या उसको राक्षस समझकर उससे बचने के लिए उसे श्राप देने लगते हैं या उसका लीला का गायन करने लगते हैं! दोनों ही स्थिति में हम बनाई जा रही ‘माया’ या ‘छलना’ को नहीं काट पाते.
मोदी की लीला को ‘डिकोड’ करने की पहली शर्त है कि हम मोदी से निरी घृणा करने की जगह उनके रचे ‘मायालोक’ को पहले ध्यान से पढ़ें. उनके उन विशेषणों को पढ़ें जिनके लिए वे जाने जाते हैं! पौने तीन साल से ‘परिश्रम की पराकाष्ठा’ (उन्हीं के शब्द) करने वाले मोदी ने अपने काम से अपनी लीला से अपने अनेक विशेषण चिह्न सिरजे हैं, जिनको जानना मोदी को पढ़ने में सहायक हो सकता है. हम देखें कि वे किन बातों के लिए जाने जाते हैं? हमारे अनुसार वे निम्न बातों के लिए जाने जाते हैं :
मोदी साहसी, हिम्मती, दबंग हैं और कठोर से कठोर फैसला ले सकते हैं. चुनौती को अवसर में बदलने में माहिर हैं. अच्छे वक्ता हैं. आम आदमी की भाषा में बात करते हैं. जनता उनकी हिम्मत और ईमानदारी और वक्तृता की फैन है. वे अपने विपक्षियों को व्यंग्यवाणों से बींध डालते हैं. उनको उपहास का विषय बना डालते हैं. उनकी टक्कर का न कोई वक्ता है, न नेता हैं. वे सबसे बड़े कम्युनिकेटर हैं. इस खेल में वे ‘चुनौती विहीन’ हैं. वे सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं. परिश्रम की पराकाष्ठा करते हैं. अक्सर ‘अचानकता’ पैदा करते हैं. इस तरह अपने आलोचकों को व्यर्थ करते चलते हैं. सबको हर समय हिलाते रहते हैं. गेट ‘डिसरप्टर’ हैं! ‘तोड़फोड़’ करने वाले हैं! इसी अर्थ में वे ‘अनिवर्चनीय’ हैं यानी उनका ‘निर्वचन’ करना मुश्किल है. वे छप्पन इंच की छाती वाले हैं. गरीबी में पले हैं. चाय बेचने वाले रहे हैं. हार्ड ‘टास्क मास्टर’ हैं. इसीलिए अपने सांसदों से कह सकते हैं कि ‘न खाली बैठूंगा न बैठने दूंगा.’ वे बहुत कुछ हैं. लीला पुरुष, मायावी, जादूगर, डरावने हैं. उनकी तुलना सिर्फ उनसे से ही की जा सकती है यानी वे अतुलनीय हैं.
हम मानें या न मानें उन के बारे में लिखी ये तमाम बातें उन चरचाओं और लेखों से चुनी गई हैं, जो मोदी की निंदा और स्तुति में देखे सुने गए हैं. मोदी इनसे भी कुछ अतिरिक्त हैं, यह एकदम संभव है. ये सब विशेषण उनको एक विकराल मानी देते हैं, और मिलकर उनके ‘कोड्स’ यानी ‘कूट पदों’ या ‘संहिताओं को बनाते हैं. सबसे बड़ी बात कि वे एक ही वक्त में पीएम हो सकते हैं तो उस समय ‘स्ट्रीट फाइटर’ भी बन सकते हैं, जैसा कि यूपी के चुनाव अभियान में दिखा गया. शायद इसीलिए गली-मुहल्ले की जनता उनको पसंद करती है. उनको ताकत में देखना चाहती है और इस तरह स्वयं को एंपावर बनाती चलती है.
वे विभाजनकारी, हिंदुत्ववादी हैं, संघ के प्रचारक रहे हैं, हिंदू राष्ट्र को बना रहे हैं... ये सब विशेषण उनको ‘आइसोलेट’ नहीं बल्कि ताकतवर बनाते हैं. उनके आलोचक उनको ‘उनके रूप’ में स्वीकार करने की जगह उनको अपनी घृणा से देखते हैं, और परेशान होते हैं. ‘डिकोड’ करने की पहली शर्त यही है कि हम किसी व्यक्ति को उसके मायालोक से अलग करके देखें. उसे असली रूप में पकड़े. लेकिन उनके आलोचकों की घृणा उनको और अधिक मायावी छलिया मानकर चलती है. शक, संदेह, घृणा और सिर्फ निंदा से किसी को ‘डिकोड’ नहीं किया जा सकता. इसलिए डिकोड करने वालों से निवदेन है कि शाप देने से पहले मोदी को मोदी के रूप में समझें. फिर देखें.
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