प्रसंगवश : भारत-निर्माण की चुनौतियां
उत्तर प्रदेश के हालिया चुनाव में भाजपा की अभूतपूर्व सफलता के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी ही प्रमुख कारण मानी जा रही है.
प्रसंगवश : भारत-निर्माण की चुनौतियां |
संदेह नहीं कि तमाम आलोचनाओं और शंकाओं के बीच इन दोनों ने जिस तरह भाजपा को समाज की मुख्यधारा से जोड़ा और विजय दिलाई उसमें इनके साहस, राजनैतिक कौशल और सक्रिय जन संपर्क की विशेष भूमिका रही.
राजनीति के किसी भी पंडित ने सपने में भी ऐसे समर्थन की बात नहीं सोची थी. चुनाव परिणाम का स्पष्ट संदेश है कि भारत के सबसे बड़े प्रदेश ‘उत्तर प्रदेश’ के बिगड़ते हालात काबू में लाने के लिए कठोर फैसले लेने होंगे. भाजपा मुख्यालय में अपने अभिनंदन समारोह में जनता को धन्यवाद देते हुए मोदी ने बड़ी ही सदाशयता से जो कहा वह राष्ट्रीय नेता के रूप में उनके बढ़ते कद-काठी के अनुरूप तो था ही उनके वैचारिक परिदृश्य में आ रहे कुछ महत्त्वपूर्ण बदलाव को भी रेखांकित करता है. मोदी ने बड़ी संजीदगी से कहा कि फल आने पर वृक्ष की डाल झुक जाती है. अत: अब भाजपा की जिम्मेदारी बढ़ गई है, और उसे नम्र होना चाहिए. प्रसन्नता के चरम आवेग के मौके पर मोदी की यह सीख निश्चय ही काबिले तारीफ है.
अपनी बात को आगे बढ़ते हुए उन्होंने यह भी कहा कि सरकार बहुमत से चुनी जरूर जाती है, पर चलती है सर्वमत से. उसे अपने सहयोगी ही नहीं बल्कि उनकी भी, जो सामने होते हैं अर्थात प्रतिस्पर्धी, सुधि लेनी चाहिए. सरकार उनके लिए ही नहीं होती है जिन्होंने वोट दिया था. वह सबके लिए होती है, और सबकी होती है. मोदी ने भारतीय समाज की आर्थिक स्थिति पर विचार करते हुए यह भी जोड़ा कि उन्हें पता है कि मध्य वर्ग के ऊपर आज अपेक्षाकृत अधिक भार है, जो कम होना चाहिए. पर इसके लिए गरीबों की हालत सुधारनी होगी. इसलिए गरीबों की जनतांत्रिक भागीदारी बढ़ाना भी सरकार की वरीयताओं में ऊपर होगा. उनको सशक्त बना कर ही मध्य वर्ग का भार कम किया जा सकेगा.
उन्होंने महिलाओं की भागीदारी और उन्हें सशक्त बनाने की जरूरत पर भी जोर दिया. एक नये भारत के निर्माण का आह्वान किया. युवा वर्ग, पैंतीस साल की आयु के नीचे की उम्र का, मोदी की दृष्टि में बहुत महत्त्व का है. यदि उसे मुख्यधारा में लाकर उत्पादक कार्यों में शामिल किया जा सके तो देश के निर्माण का काम गति पकड़ेगा.
कहना होगा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की पिछली सरकार के दस साल के नेतृत्व की पृष्ठभूमि में मोदी जैसा मुखर, स्पष्ट वक्ता और कर्मठ नेता देश का एक नया चित्र बनाने में कामयाब हो रहा है. उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि वे सही अथरे में जन नेता हैं. उनके काम का एजेंडा भी गरीबों से सीधे जुड़ने वाला है. बहुतों को लगता है कि मोदी पूरी लगन से देश निर्माण के काम में तो लगे हैं पर सालों साल इतना गड़बड़ पहले हो चुका है कि उसे ठीक करना आसान नहीं है. उसे सुधारने में समय लगेगा. पर जन-धन खाता खुलना, नोटबंदी, गरीबों को गैस सिलिंडर देना कुछ ऐसे आधारभूत सुधारों ने मोदी को विस्तृत भारतीय समाज में अपार लोकप्रियता दी और उनके नेतृत्व को साख प्रदान की.
लगभग तीन वर्ष के अब तक के शासन में केंद्र में भाजपा की सरकार ने स्वच्छ शासन की दिशा में कई कदम उठाए हैं. उसकी ईमानदार छवि भी बनी है. यह अनुभव यूपीए की सरकार के जमाने के कई अनुभवों का ठीक उलट है, जो मोदी की राजनैतिक स्थिति को और भी मजबूत करता है. मोदी के ‘न्यू इंडिया’ के खाके को नजदीक से देख कर डिकोड करें तो उसका निहितार्थ समझ में आ सकेगा. मोदी उत्साहित हैं. पर इसे भी नहीं नकारा जा सकता कि उनकी बातों में दम है.
मोदी की वरीयताओं को देखते हुए मोदी का धन्यवाद भाषण एक प्रस्थान विंदु सरीखा लगता है. प्राय: वे भारत को अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर स्थापित करने को उद्यत रहते थे. इस बार की तकरीर में वह देश और देश के संसाधनों और उपलब्धि की संभावनाओं पर विचार करते नजर आए. इससे सुधार की आशा बंधती है और लगता है कि ‘अच्छे दिन आएंगे’ का सपना हकीकत में बदल सकेगा.
यदि आम जनता की दृष्टि से देखें तो न्यू इंडिया के लिए हमें देश की मूलभूत व्यवस्थाओं की ओर ध्यान देना होगा. इस संदर्भ में हमारे सामने शिक्षा, स्वास्थ्य, नागरिक सुविधाएं और ग्रामीण विकास जैसे कई प्रमुख विचारणीय विषय उपस्थित होते हैं. उन पर विचार पहले भी होता रहा है पर प्राय: ये विषय उपेक्षित से ही रहे हैं. इसलिए इन पर जितनी शीघ्रता से ध्यान देकर काम किया जा सके शुरू करना जरूरी होगा.
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