प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नई संभावनाएं
बीते 17 नवम्बर को प्रकाशित बैंक ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट के मुताबिक भारत पर विदेशी निवेशकों और विदेशी संस्थागत निवेशकों का भरोसा बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है.
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नई संभावनाएं |
स्थिति यह है कि शेयरों में विदेशी संस्थागत निवेशकों की हिस्सेदारी पिछले पांच वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है. गौरतलब है कि इन दिनों प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) से संबंधित कई वैश्विक अध्ययन रिपोर्टों में यह तथ्य उभरकर आ रहा है कि भारत में अब एफडीआई बढ़ेगा.
उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ऑस्ट्रेलिया में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन तथा म्यांमार में आयोजित 12वें भारत-आसियान सम्मेलन में भारत के आर्थिक, औद्योगिक और कारोबारी माहौल में सुधार लाने के लिए उठाए गए रणनीतिक कदमों का जो प्रभावी परिदृश्य प्रस्तुत किया गया, उससे एफडीआई की नई संभावनाएं दिखाई दे रही हैं. ऐसा ही प्रभावी संदेश प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा के समय \'मेक इन इंडिया\' के नारे के रूप में दुनिया भर में पहुंचा है. पिछले तीन महीनों में विदेश यात्राओं के दौरान मोदी ने विदेशी निवेशकों को भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र में एफडीआई लाने का जो न्योता दिया है, उसके सार्थक परिणाम आने की संभावनाएं दिख रही हैं.
वस्तुत: इस समय देश को बुनियादी ढांचा निर्माण और उच्च विकास दर प्राप्त करने के लिए विदेशी निवेश की भारी दरकार भी है. लेकिन पिछले कुछ वर्षो से विदेशी निवेशक भारत से लगातार दूरी बनाए हुए हैं. देश में एफडीआई का प्रवाह 2013-14 के दौरान 24.3 अरब डॉलर रहा है. भारत में एफडीआई कितना निराशाजनक है, इसका अनुमान इससे लगा सकते हैं कि वर्ष 2008-09 की वैश्विक मंदी के दौरान भी भारत में 40.4 अरब डॉलर का एफडीआई आया था. विश्व बैंक की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013-14 में जहां चीन को कुल वैश्विक एफडीआई प्रवाह का करीब आठ फीसद प्राप्त हुआ है, वहीं भारत के पास इसका केवल 0.8 फीसद ही आ पाया है.
विडंबना ही है कि विदेशी निवेश को आकर्षित करने वाले कई महत्वपूर्ण आधार भारत के पास हैं, पर यहां एफडीआई बहुत कम है. भारत के पास विशाल शहरी और ग्रामीण बाजार, दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ मध्यवर्ग, अंग्रेजी बोलने वाली नई पीढ़ी के साथ-साथ विदेशी निवेश पर अधिक रिटर्न जैसे सकारात्मक पहलू मौजूद हैं. इतना ही नहीं, क्रयशक्ति क्षमता यानी परचेजिंग पॉवर पैरिटी (पीपीपी) के आधार पर अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. भारत के पास आईटी, सॉफ्टवेयर, बीपीओ, फार्मा, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल्स एवं धातु क्षेत्र में दुनिया की जानी-मानी कंपनियां हैं, आर्थिक व वित्तीय क्षेत्र की शानदार संस्थाएं हैं.
इन अनुकूलताओं के बावजूद एफडीआई का प्रवाह न बढ़ पाने की तीन प्रमुख वजहें रही हैं. एक, भारत में प्रभावी नेतृत्व और मजबूत केंद्र सरकार का अभाव रहा है. देश का व्यावसायिक वातावरण उन विदेशी निवेशकों के लिए जटिल रहा है जो नीतिगत स्थिरता चाहते हैं. दो, भारत में कारोबार में आसानी की कमी रही है. मसलन सरकारी नीति का स्पष्ट न होना, भूमि अधिग्रहण से संबंधित मसले, पर्यावरण मंजूरी मिलने में देरी. ईधन की आपूर्ति के लिए लिंकेज और परियोजनाओं के तीव्र क्रियान्वयन के लिए प्रशासनिक तंत्र की कमजोरियां. विश्व बैंक के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट \'डूइंग बिजनेस 2015\' के अनुसार कारोबार करने में आसानी के लिहाज से 189 देशों की सूची में भारत 142वें पायदान पर है. तीन, भारत की टैक्स व्यवस्था जटिल बनी हुई है. भारत दुनिया के ऊंची टैक्स दरों वाले देशों में शामिल हैं.
लेकिन अब नई सरकार द्वारा आर्थिक सुधारों और इंफ्रास्ट्रक्चर तथा अन्य क्षेत्रों में उठाए जा रहे कदम विदेशी निवेश के लिए उत्साह पैदा कर रहे हैं. भारत को बेहतर और आसान कारोबारी देश बनाने के लिए मोदी सरकार ने बीमा तथा रक्षा क्षेत्र में 49 फीसद एफडीआई की स्वीकृति दी है. रेलवे के बुनियादी ढांचे में 100 फीसद एफडीआई की स्वीकृति दी गई है. इनके अलावा सड़क, जहाजरानी, नागरिक उड्डयन समेत 10 क्षेत्रों की 20 परियोजनाओं में 100 फीसद एफडीआई की स्वीकृति दी गई है. पुराने और बेकार कानूनों को समाप्त करने के लिए सरकार आगे बढ़ी है. सरकार ने 287 ऐसे पुराने कानूनों की पहचान की है, जिन्हें संसद के शीतकालीन सत्र में रद्द कर दिया जाएगा. प्रवासी भारतीयों ने भी भारत में बड़ी मात्रा में एफडीआई के संकेत दिए हैं. इन सब कारणों से भारत में विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है.
देश में एफडीआई बढ़ने के इन सकारात्मक पहलुओं के अलावा एक और वैश्विक पहलू चीन के आर्थिक मॉडल में आ रहे बदलाव के कारण भी दिखाई दे रहा है. दुनिया का कारखाना कहा जाने वाला चीन अब सेवा क्षेत्र की ओर रुख करना चाहता है जहां बहुत अधिक विदेशी निवेश की आवश्यकता नहीं होती. इतना ही नहीं, चीन की आबादी बहुत तेजी से उम्रदराज हो रही है और कामकाजी युवा आबादी तेजी से कम हो रही है. ऐसे में अगले एक दशक में चीन में विदेशी पूंजी निवेश की दर में कमी आने की उम्मीद की जा रही है. इसकी बदौलत आगामी वर्षो में दुनिया भर में बहुत बड़ी मात्रा में सस्ती विदेशी पू़ंजी उपलब्ध होगी. भारत कम ब्याज दर वाले इस दौर का बड़ा लाभ ले सकता है, विशेष रूप से भारत के बुनियादी ढांचे और विनिर्माण क्षेत्र को नए वैश्विक निवेश का बड़ा लाभ मिल सकता है.
निसंदेह विदेशी निवेशकों के कदम तेजी से भारत की ओर मोड़ने तथा देश की विभिन्न परियोजनाओं में एफडीआई की आवक को ऊंचाई देने के लिए हमें देश में आर्थिक, औद्योगिक और कारोबारी सुधारों को अमली जामा पहनाना होगा. औद्योगिक विकास और निवेश बढ़ाने के अभियान को सफल बनाने के लिए उद्योगों की अड़चनें दूर करना सबसे पहली जरूरत है. प्रधानमंत्री ने उद्योगों को इंस्पेक्टर राज से बचाने के लिए जो घोषणाएं की हैं, वे शीघ्र कार्यान्वित होनी चाहिए. वस्तुत: अब समय आ गया है कि सरकार औद्योगिक परिदृश्य सुधारे और उद्योगों में जान फूंकने के लिए नीतिगत फैसले ले.
उदाहरण के तौर पर कोयले के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं कि क्या निर्णय होने जा रहा है? कोल इंडिया का कहना है कि वह एक भी नए ब्लॉक का काम हाथ में नहीं ले सकती क्योंकि इसके लिए उसके पास मानव संसाधन की भारी कमी है. इसी तरह गैस कीमतों का फैसला भी बार-बार टलता जा रहा है. ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय नहीं होने से बिजली से लेकर उर्वरक जैसे कई क्षेत्रों के उद्योगों का भविष्य अधर में है. जमीन अधिग्रहण और श्रम जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए सिंगल विंडो मंजूरी के साथ बेहतर अवसंरचना और आसान नियमों की जरूरत है. उद्योगों के लिए ब्याज दरों में कटौती से औद्योगिक उत्पादन सुधारने में मदद मिल सकती है.
कारोबार और उद्योगों के चमकीले विकास का सपना साकार करने के लिए सरकार को ऐसी रणनीति पर काम करना होगा, जिसके तहत गैर जरूरी कानून शीघ्रतापूर्वक हटाए जाएं. ऐसा होने पर देश की ढांचागत परियोजनाओं के लिए एफडीआई हेतु विदेशी निवेशक आगे बढ़ेंगे और उससे रोजगार अवसर बढ़ने के साथ देश के आर्थिक विकास को गति भी मिलेगी.
(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)
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