सरकार ने नहीं बनवाया प्रेमचंद का स्मारक

Last Updated 31 Jul 2011 10:56:46 AM IST

मुंशी प्रेमचंद को अपने साहित्य की अनमोल विरासत छोड़कर गए 75 बरस हो गए हैं, लेकिन आज भी उनके नाम पर स्मारक नहीं बन सका.


आम हिन्दुस्तानी की भाषा में कहानी और उपन्यासों की रचना कर गरीबों में आशा का संचार करने वाले प्रेमचंद आज भी उनकी याद के सरमाए को सही तरह से सहेजने की एक भी संजीदा कोशिश नहीं की गई.

हिन्दी साहित्य के अमिट हस्ताक्षर मुंशी प्रेमचंद की आज यानि 31 जुलाई को 131 वीं जयंती है.

साहित्यप्रेमियों को शिकायत है कि महान कथाकार का निधन हुए लगभग 75 वर्ष गुजर गए, इस दौरान कई सरकारें आई और चली गई, लेकिन किसी को भी आम आदमी के सरोकारों से जुड़े इस साहित्यकार के सम्मान में स्मारक बनवाने की सुध नहीं आई.

दिल्ली विविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर और प्रेमचंद के पौत्र आलोक राय ने ‘भाषा’ से कहा, ‘‘बड़े-बड़े वादे होते हैं बड़ी-बड़ी योजनाएं बनती हैं लेकिन आखिर में होता कुछ नहीं. मेरे पिताजी इससे आहत रहे हैं और मैं समझता हूं कि यह ठीक ही है, क्योंकि स्मारक के नाम पर भारी राजनीति होती हैं.’’

उन्होंने बताया ‘‘मेरे पिता और चाचा ने लमही स्थित अपना घर सरकार के हवाले कर दिया था लेकिन वह जगह अभी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पडी हुई है. पिछली बार जब मैं वहां गया था तो वहां ताला लगा हुआ था जिसके चलते हम लोग घर के अन्दर नहीं जा सके. अब यह जगह किसके हवाले है, इसका मुझे भी पता नहीं.’’   

सरकारी उपेक्षा के बारे में पूछे जाने पर आलोक कहते हैं कि जनस्मृति में उनकी जो जगह है वह पर्याप्त हैं. ईंट-गारे का स्मारक तो टूट जाएगा, समाप्त हो जाएगा लेकिन वह सदैव लोगों के मन में जिंदा रहेंगे.

गरीब परिवार में जन्म लेने वाले प्रेमचंद का बचपन काफी तकलीफ में गुजरा. हिन्दी और उर्दू भाषा में लेखन करने वाले प्रेमचंद की लेखनी किसी प्रमाणपत्र की मोहताज नहीं रही है.

प्रेमचंद की लेखन शैली के बारे में दिल्ली विविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर सुधीश पचौरी ने बताया ‘‘कहानी लिखने की उनकी शैली जितनी गजब की रही है, वहां आज तक कोई भी नहीं पहुंच पाया है. उनकी कहानी पहली पंक्ति से लेकर आखरी पंक्ति तक बांधे रखती है.’’

आज के हिन्दी लेखकों से उनकी शिकायतें हैं कि उन्होंने प्रेमचंद से कुछ नहीं सीखा.

पचौरी कहते हैं ‘‘कहानी ऐसी हो जिसका चरित्र और कथानक स्वभाविक और पक्का लगे. इस मामले में प्रेमचंद सौ फीसदी खरे उतरते हैं.’’

उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित लमही गांव में 31 जुलाई 1880 को मुंशी प्रेमचंद का जन्म हुआ था. उनके माता-पिता का नाम मुंशी अजबलाल और आनंदी था. प्रेमचंद ने कई कहानी, उपन्यास और नाटकों की रचना की.

पचौरी ने बताया कि प्रेमचंद अपनी हरेक कहानी के जरिए सामाजिक पूंजी का निर्माण करते हैं. कहानियों में ऐसा लगता है कि कुछ अच्छा होगा, न्याय होगा, जो आज की कहानियों में नहीं है.

उन्होंने कहा कि केवल फणीर नाथ रेणु ही एकमात्र ऐसे साहित्यकार हैं जिन्हें मैं उनके करीब पाता हूं.

आलोक राय ने कहा कि उनके जन्म से 10 साल पहले ही प्रेमचंद का निधन हो गया था. उनकी सारी रचनाएं वह बेहद पसंद करते हैं और उपन्यास में उन्हें ‘गोदान’ सबसे अच्छा लगा.

प्रेमचंद का 56 वर्ष की आयु में 8 अक्तूबर 1936 को वाराणसी में निधन हुआ. 
 



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