आस्था से न देखें इतिहास को

Last Updated 11 Dec 2011 12:27:57 AM IST

अभी बजरंग दल के एक नेता ने अपने भाषण में कहा कि औरंगजेब संस्कृत के किसी ग्रंथ को देखते ही उसे जलवा देता था.


दुख होता है कि हिंदी क्षेत्र के इस तरह के नेता अपने देश के इतिहास को नहीं पढ़ते हैं. इतिहास की घटनाओं को नितांत काल्पनिक शायद इसलिए बनाकर देखा जाता है कि तथ्यों को तोड़ मरोड़कर अपने संगठन की राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा सके. औरंगजेब खास तौर से निशाना बनाया जाता है ताकि उसके बहाने मुसलमान को लांछित किया जा सके. इसी क्रम में उस मुसलमान सेनापति का भी उदाहरण दिया गया जिसने बिहार के बौद्ध शिक्षा संस्थानों को जलवा दिया था. हालांकि वे यह भूल गए कि बोधि वृक्ष को जिस शशांक ने कटवा कर जलवाया था, वह मुसलमान नहीं था. बोधगया के जिस मंदिर पर बौद्ध विरोधी समाज ने आज भी कब्जा कर रखा है, वे भी मुसलमान नहीं थे.

विनय कटियार को औरंगजेब संबंधी बयान देने के पहले साहित्याचार्य जितेन्द्र चन्द्र भारतीय शास्त्री जैसे अनेक ब्राह्मण काव्यशास्त्रियों द्वारा लिखे संस्कृत साहित्य ग्रंथ पढ़ लेने चाहिए थे. 17 वीं सदी के सबसे बड़े संस्कृत काव्यशास्त्री पंडितराज जगन्नाथ औरंगजेब के दरबारी थे. वहीं उन्होंने पीयूष लहरी, गंगालहरी, अमृत लहरी, करुणालहरी, लक्ष्मी लहरी, प्राणाभरण चित्र, मीमांसा खंडन जैसे मीमांसा ग्रंथों के अलावा विख्यात काव्य सिद्धांत ग्रंथ रसगंगाधर लिखा था. ये ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए थे और औरंगजेब इन ग्रंथों से खुश था. उसने इन्हें जलवाया नहीं. पंडितराज ने औरंगजेब के आश्रय में रहते हुए उसी की बहन, से शादी की थी जिसका नाम उन्होंने तन्वगी रखा था और उस पर संस्कृत में ही कविता लिखी थी- लवंगी कुरंगी दृगांगी करोनु. जाहिर है कि औरंगजेब ने अपनी बहन की शादी संस्कृत काव्यशास्त्री से पसंद की होगी.

औरंगजेब वह अकेला बादशाह था जो अपने भरण-पोषण के लिए राजकोष से एक पैसा नहीं लेता था. अपनी सिली टोपियां बेच कर ही काम चलाता था. यह भी सच है कि एक दिन रोटियां बनाते हुए उसकी बेगम का हाथ जला तो किसी रसोइए की मांग पर औरंगजेब ने इतने पैसे न होने के कारण इनकार कर दिया था. जहां तक सवाल उसकी निरंकुशता का है, हमें नहीं भूलना चाहिए कि राजस्थान के रजवाड़ों का अत्याचारी चरित्र क्या था जिन्होंने पन्नाधाई जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को अंजाम दिया था. औरंगजेब ने कोई हिंदू मंदिर तोड़ा लेकिन हषर्वर्धन ने तो कई हिंदू मंदिर तोड़े और लूटे थे.

औरंगजेब मुस्लिम बादशाह था लेकिन सिर्फ उसके मुसलमान होने के कारण ही उस पर गलत आरोप लगाना दुनिया की मनुष्यता के साथ विासघात है. औरंगजेब के विरुद्ध शिवाजी ने जुझारू संघर्ष किया था. उसने एक बड़े सेनापति शाइस्ता खां को मार डाला था और एक बड़े शहर सूरत को लूट लिया. इसके बावजूद औरंगजेब ने शिवाजी को अपने दरबार में मंसबदारी देने का वायदा किया था, जिसे शिवाजी ने स्वीकार भी किया था. भले ही यह शिवाजी की उम्मीद से कम था लेकिन उनकी अस्वीकृति के बावजूद उसने शिवाजी की हत्या नहीं कराई थी. राजा मानसिंह जैसे राजपूत उसकी सेना में सेनापति थे.

इस्लाम की परम्परा के अनुसार वह दरबार में भी शाही पोशाक नहीं पहनता था क्योंकि हजरत मुहम्मद भी कभी कोई शाही पोशाक नहीं पहनते थे. इतिहास में दर्ज यह तथ्य क्यों भुला दिया जाता है कि उसने हिंदू मंदिरों को जमीनें दान की थी, जिसके दस्तावेज आज भी देखे जा सकते हैं. उसने वाराणसी के जिस मंदिर को तुड़वाया था, उसकी वजह धार्मिक नहीं. जिन दिनों औरंगजेब वाराणसी में था, उससे एक हिंदू राजा ने ही शिकायत की थी कि मंदिर में पूजा करने गई उसकी रानी से पुजारियों ने बलात्कार किया. औरंगजेब ने पुजारियों को कठोर दंड देने के बाद वह मंदिर इसलिए तुड़वाया कि वह नापाक हो गया था. औरंगजेब को हिंदुओं की नजर में गिराने के लिए उसकी तस्वीर बड़े पैमाने पर खराब की गई. अगर वह स्वेच्छाचारी था तो अनेक गैरमुस्लिम राजे-महाराजे भी स्वेच्छाचारी थे. जरूरत है इतिहास के प्रति तार्किक दृष्टिकोण की न कि आस्था के अनुसार उसे देखने की.

मुद्राराक्षस
लेखक


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