आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम

Last Updated 10 Aug 2011 12:14:55 AM IST

कम संसाधनों और कम बजट के बाबजूद अपना देश अंतरिक्ष में कीर्तिमान बना रहा है.


2011 की छमाही तक दो उपग्रह छोड़े जा चुके हैं.  गत 15 जुलाई को स्वदेश निर्मित अत्याधुनिक संचार उपग्रह जीसैट-12 को श्री हरिकोटा से प्रक्षेपित करने में सफलता मिली. इससे टेली मेडिसन व टेली एजूकेशन सहित तमाम संचार सेवाओं के लिए ट्रांस्पोंडरों की उपलब्धता बढ़ाने में मदद मिलेगी. इसके माध्यम से डीटीएच, वी सैट परिचालन के क्षेत्र में बढ़ रही मांग पूरी होगी. अब हमारे पास पास 187 ट्रांस्पोंडर हो जाएंगें लेकिन अभी भी हम इसरो द्वारा 2012 तक लक्षित 500 ट्रांस्पोंडरों से पीछे हैं.
अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में हम उल्लेखनीय प्रगति कर रहे हैं, लेकिन आत्मनिर्भर होने की चुनौतियां बनी हुई हैं.

गत वर्ष इसरो ने जीसैट-8 का प्रक्षेपण फ्रैंच गुयाना अंतरिक्ष केंंद्र से किया था. पर्यावरण संबधी अध्ययनों के लिहाज से मेगा-ट्रापिक्स उपग्रह के लिए फ्रांस से संयुक्त उपक्रम पर विचार चल रहा है. क्रायोजेनिक तकनीकी में पूर्ण सफलता न मिलने के कारण भारत इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है, जबकि प्रयोगशाला स्तर पर क्रायोजेनिक इंजन का सफलता पूर्वक परीक्षण किया जा चुका है. लेकिन स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन की सहायता से लॉंच किए गए प्रक्षेपण यान 'जीएसएलवी" की असफलता के बाद इस पर सवालिया निशान लगा है.  

1962 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के निर्देशन में राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समीति  का गठन हुआ था. भारत अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में कम संसाधनों और कम बजट में जिस तरह बेहतरीन प्रर्दशन कर रहा है वह उल्लेखनीय है. आज हम चांद ही नहीं, मंगल पर भी पहुंचने का सपना देख रहे हैं. प्रक्षेपित उपग्रहों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर हम संचार, मौसम, शिक्षा, टेली मेडिसिन, आपदा प्रबंधन एवं कृषि क्षेत्र में फसल अनुमान, भूमिगत जल रुाोतों की खोज, संभावित मत्स्य क्षेत्र की खोज के साथ पर्यावरण पर निगाह रख रहे हैं.

जीसैट-12 पृथ्वी के सबसे करीबी बिंदु 284 किलो मीटर, दूरस्थ बिंदु 21000 किलोमीटर की दीर्घवृत्ताकार कक्षा में भेजा गया है. इंसेट प्रणाली  को जीसैट द्वारा मजबूत बनाया जा रहा है ताकि दूरस्थ शिक्षा व चिकित्सा ही नहीं बल्कि ग्राम संसाधन केंद्र को भी उन्नत बनाया जा सके. जीसैट 12 को इंसैट 2 ई और इंसैट 4 ए के साथ स्थापित किया जाएगा.

गौरतलब है कि 2010 में जीएसएलवी के दो अभियान विफल हो गए थे. जीएसएलवी एफ 6 संचार उपग्रह जीसैट- 5 पी को लेकर जाने वाले इस यान में प्रक्षेपण के महज एक मिनट बाद ही विस्फोट हो गया था और यह बंगाल की खाड़ी में गिर गया था. इसी तरह जीएसएलवी-डी 3 जीसैट-4 अभियान भी अप्रैल 2010 में विफल हो गया था. इस कारण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के आगामी कार्यक्रमों पर भले ही संदेह जताया गया हो, लेकिन इसरो के पीएसएलवी सी-16 ने 20 अप्रैल 2011 को रिर्सोस सेट-2 एवं अन्य छोटे उपकरणों को निर्धारित कक्षाओं में सफलता पूर्वक स्थापित किया. रिर्सोस सैट-2 ऐसा आधुनिक सेंसिग उपग्रह है जिससे प्राकृतिक संसाधनों के अध्ययन और प्रबंधन में मदद मिलेगी. 15 जुलाई 2011 को जीसैट -12 के सफल प्रक्षेपण के बाद अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत का वर्चस्व बढ़ा है.

इसरों के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन ने कहा है कि भारत की अंतरिक्ष योजना भविष्य में मानवयुक्त अंतरिक्ष यान भेजने की है. लेकिन इस तरह के अभियान की सफलता सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारे परीक्षण किए जाने हैं. भारत वर्ष 2016 में नासा के चंद्र मिशन का हिस्सा बन सकता है और इसरो चंद्रमा के आगे के अध्ययन के लिए अमेरिकी जेट प्रणोदन प्रयोगशाला से साझेदारी भी कर सकता है. देश का चंद्रयान 2 मिशन का कार्य प्रगति पर है.

उपग्रह के प्रक्षेपण में भारत कारोबारी छलांग पहले ही लगा चुका है. 23 अप्रैल 2007 को भारत के उपग्रहीय प्रक्षेपण यान ने इटली के खगोल उपग्रह एंजिल का सफलता पूर्वक प्रक्षेपण किया. यह पहला सफल कारोबारी प्रक्षेपण था जिसके बाद भारत दुनिया के पांच देशों अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन के विशिष्ट क्लब में शामिल हो गया था. अब तक के 19 अभियानों में यह 17 वां सफल अभियान था. पीएसएलवी से अब तक 47 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया जा चुका है, जिनमें 26 भारतीय और 21 विदेशी हैं. इन प्रक्षेपणों द्वारा भारत व्यावसायिक दृष्टिकोण से विदेशी उपग्रहों को भी प्रक्षेपित करने वाली सूची में शामिल हो चुका है. कुछ साल पहले तक फ्रांस की एरियन स्पेस कंपनी की मदद से भारत अपने उपग्रह छोड़ता था लेकिन अब वह ग्राहक के बजाय साझेदारी के स्तर पर पहुंच गया है.  

मून मिशन की सफलता के बाद इसरो का लोहा दुनिया मान चुकी है. चांद पर पानी की खोज का श्रेय हमारे चंद्रयान 1 को ही मिला. दूर संवेदी उपग्रह प्रणाली आईआरएस 1 सी एवं आईआरएस 1 डी को विश्व के सर्वश्रेष्ठ असैनिक दूर संवेदी उपग्रहों में गिना जाता है. अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने भारत दौरे के दौरान मुम्बई में सेंट जेवियर्स कॉलेज के छात्रों से कहा था कि भारत और अमेरिका अंतरिक्ष क्षेत्र में संयुक्त प्रयास से नए आयाम स्थापित कर सकते हैं. भविष्य में इसरो उन ताकतों को टक्कर देगा जो साधनों की बहुलता के चलते प्रगति कर रहे हैं क्योंकि भारत के पास प्रतिभाओं की बहुलता है.

शशांक द्विवेदी
लेखक


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