Waqf Amendment Bill : केन्द्र सरकार का पक्षपाती रवैया खत्म हो

Last Updated 19 Apr 2025 01:20:18 PM IST

वक्फ संशोधन कानून (Waqf Amendment Bill) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दरम्यान सरकार ने आश्वासन दिया कि सेंटर वक्फ काउंसिल और वक्फ बोर्ड में किसी गैर-मुस्लिम की नियुक्ति नहीं की जाएगी।


पक्षपाती रवैया खत्म हो

मौजूदा वक्फ संपत्तियों पर किसी तरह की कार्रवाई न करने तथा वक्फ संशोधन कानून, 2025 के कुछ प्रावधानों पर फिलहाल अमल न करने की बात भी की।

अदालत ने सरकार को जवाब देने के लिए सात दिन का वक्त दिया है। अगले आदेश तक वक्फ, जिसमें वक्फ बाय यूजर भी शामिल है, में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। न ही संबंधित कलेक्टर इनमें कोई बदलाव करेगा।

1995 के अधिनियम के तहत जिन वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण हुआ है, उनको अगली सुनवाई तक गैर-अनूसूचित न करने का स्पष्ट निर्देश भी दिया गया है।

अदालत में वक्फ कानून की वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि जैन, सिख व अन्य अल्पसंख्यकों के धर्म पर ऐसे कानून लागू नहीं होते। जैसा कि नये कानून के अनुसार वही शख्स अपनी संपत्ति दान कर सकता है, जो कम से कम पांच साल से मुसलमान हो यानी इस्लाम अपना चुका हो।

दान की जाने वाली संपत्ति का मालिकाना हक भी रखता हो। शीर्ष अदालत ने सरकार से तल्ख सवाल किया कि क्या वह हिन्दुओं के धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमान या गैर- हिन्दुओं को शामिल करने जा रही है? इस कानून के पारित होने के बाद हुई हिंसा की भी निंदा की।

हरियाणा, महाराष्ट्र, मप्र, असम, छत्तीसगढ़ व राजस्थान जैसे भाजपा शासित राज्यों में अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई हैं। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के अनुसार वक्फ के पास देश भर में 8.7 लाख संपत्तियां हैं जिनकी अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये है। कोई भी चल/अचल संपत्ति वक्फ होती है, जिसे अल्लाह के नाम पर मुसलमान धार्मिक या परोपकार के मकसद से दान करता है। अल्लाह ही हमेशा उसका मालिक होता है। इस तरह का चलन मंदिरों से लेकर अन्य धर्मो में भी है।

मंदिरों के पास बगैर कागजात वाली संपत्ति कम नहीं हैं। इसलिए सरकार को कानून बनाते हुए सभी धार्मिक स्थलों के अधिकार क्षेत्र वाली चल/अचल संपत्ति पर यह कानून लागू करना चाहिए था। पूर्वाग्रहों से भरे पक्षपात करने वाली मोदी सरकार को इससे बचना चाहिए था। वक्फ की आड़ में संप्रदाय विशेष को लेकर टिप्पणियां या नया कानून बनाने की जल्दबाजी देश की अखंडता पर प्रहार कर सकती है।



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