पूंजीपतियों की बढ़त
अरबपतियों की संख्या के मामले में अब भारत तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। हुरुन ग्लोबल रिच लिस्ट के मुताबिक देश में 284 अरबपति हैं। इस साल इसमें देश में 13 नये अरबपति शामिल हुए।
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रिपोर्ट के अनुसार देश के 284 अरबपतियों की कुल संपत्ति 10 फीसद बढ़कर 98 लाख करोड़ रुपये या देश की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद का एक-तिहाई हो गई है। भारत ने प्रत्येक अरबपति की औसत संपत्ति के मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया।
बीते साल 175 अरबपतियों की संपत्ति में वृद्धि हुई है, जबकि 109 की कुल नेटवर्थ में कमी आई या वह स्थिर है। गौतम अडाणी की संपत्ति में वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक इजाफा हुआ, जो तकरीबन एक लाख करोड़ रुपये बताई जा रही है। मुंबई में सबसे अधिक 90 अरबपति हैं। इनमें भी शीर्ष दस में पांच अरबपति देश के अरबपतियों की राजधानी यानी मुंबई से हैं। दो राजधानी दिल्ली से व बेंगलूर, पुणो व अहमदाबाद से एक-एक हैं।
पूंजीपतियों की औसत दौलत 34,514 करोड़ रुपये व उम्र 68 साल आंकी गई है। सूची में 22 महिलाओं के नाम भी शामिल हैं। हालांकि अमेरिका की तुलना में भारत व चीन काफी पीछे हैं। जहां 870 अरबपति हैं। देश में अरबपतियों की दौलत सालाना 10 फीसद बढ़ी, जबकि अमेरिका में यह बढ़त 27 फीसद रही। दुनिया में कुल 3,442 अरबपति हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के शीर्ष पर पहुंचने व पारिवारिक कारोबार में तेजी आने का अप्रत्यक्ष लाभ कुछ हद तक सबसे पिछली कतार में बैठे वर्ग तक पहुंचने की भी उम्मीद की जाती है। ये कारोबार फार्मास्यूटिकल्स, एजूकेशन, टेकनॉलाजी, फूड डिलीवरी आदि में विशेष तौर पर कारगर हैं।
जाहिरा तौर पर इन सबमें आम आदमी को रोजगार के अवसर बढ़ते ही जाने की संभावनाओं से मना नहीं किया जा सकता। हालांकि धन विभाजन तथा मुनाफाखोरी के दृष्टिकोण से इसकी आलोचना की जानी भी गलत नहीं है। क्योंकि अरबपतियों के बढ़ते जाने के बावजूद दुनिया से गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी पर लगाम कसने के जमीनी स्तर के प्रयास नाममात्र हुए हैं।
संयुक्त तौर पर एक ट्रिलियन डॉलर वाले सभी भारतीय अरबपतियों का दायित्व है कि वे अपने मुनाफे को बांटने के मार्ग प्रशस्त करने में उदारता दिखाएं ताकि इस संपन्नता से समूचा देश लाभान्वित हो सके।
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