सांच को आंच नहीं
शेयर धोखाधड़ी के मामले में पूर्व सेबी प्रमुख माधबी बुच के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने का आदेश विशेष अदालत ने दिया है।
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अदालत ने इसे प्रथम दृष्टि नियामक चूक व मिलीभगत का सबूत माना और निष्पक्ष जांच की आवश्यकता बताई। याचिका में बुच के अतिरिक्त पांच अन्य अधिकारियों के खिलाफ बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में कंपनी लिस्टिंग में अनियमितताओं का दावा किया गया है।
नियामक प्राधीकरणों, खासकर सेबी की मिलीभगत से कंपनी को स्टॉक एक्सचेंज में धोखाधड़ी से सूचीबद्ध करने को कॉरपोरेट धोखाधड़ी बताया है। सेबी की पहली महिला प्रमुख बुच को अमेरिका स्थित शॉर्ट-सेलर हिंडेनबर्ग द्वारा हितों के टकराव के आरोप लगाए गए थे। बुच दंपति पर फंड संरचनाओं का हिस्सा रही संस्थाओं में निवेश का भी आरोप है, जिसमें अडानी समूह द्वारा भी निवेश किया गया था।
बुच का कहना था, यह निवेश उनके नियामक में शामिल होने से पहले किया गया था। हालांकि सेबी ने इस आदेश को चुनौती देने के लिए उचित कदम उठाने की बात की है। साथ ही बुच का समर्थन करते हुए याचिकाकर्ता को तुच्छ व आदतन मुकदमाकर्ता ठहराया। इस दरम्यान स्वयं हिंडनबर्ग अपना कारोबार बंद करने की घोषणा भी कर चुकी है। बुच द्वारा तमाम सराहनीय सकारात्मक कदम उठाये जाने के बावजूद उनके तीन साल के कार्यकाल के दरम्यान कर्मचारियों में जबरदस्त रोष भी नजर आया।
खुदरा निवेशकों को बाजार की तरफ आकषिर्त करने में सफल रही बुच ने निवेश सलाहकारों के लिए नियमों को आसान बनाने व राइट्स इश्यू को तेजी देने सरीखा काम कर दिखाया। इसके बावजूद उन पर लगे आरोपों की अनदेखी नहीं की जा सकती। विपक्षी दलों के भारी विरोध के बावजूद सरकार ने न सिर्फ पक्षपाती रवैया बनाये रखा बल्कि चिकने घड़े की तरह आरोपों को झाड़ती रही। यूं भी मोदी सरकार का काम करने का रवैया ऐसा है, जो अपने चहेते अधिकारियों के बचाव को लेकर अड़ियलपन दिखाने में कोई लिहाज नहीं करती।
बेशक सरकार को जांच का आासन देते हुए नियामक प्राधीकरणों की गरिमा बनाए रखने के प्रति गंभीर नजर चाहिए। अदालती कार्रवाई का सामना करके बुच को अपना पक्ष रखना चाहिए। सफलताओं के झंडे गाड़ने के बावजूद सेबी जैसे सम्मानित नियामक पर एक शख्स की वजह से बिला-वजह पड़ने वाले छींटों से बचाने के प्रति सरकार पहले ही प्रतिबद्धता दर्शा सकती थी।
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