मोदी और कांग्रेस
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का समापन करते हुए राज्य सभा में अपनी सरकार द्वारा किए गए कायरे की फेहरिस्त पुरानी तर्ज पर एक बार फिर प्रस्तुत की कि किस तरह उनकी आर्थिक नीति आगे बढ़ रही है और किस तरह उनकी सरकार के प्रयासों से 25 करोड़ लोग गरीबों की सीमा लांघकर मध्यवर्गीय दहलीज पर पहुंचे हैं।
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उनके भाषण का एक प्रमुख स्वर वही था जो प्राय: सुनाई पड़ता है। कांग्रेस पर हमला करते हुए उन्होंने फिर कहा कि उनकी प्राथमिकता परिवार है जबकि भाजपा की प्राथमिकता राष्ट्र है। कांग्रेस की कोई भी नीतियां परिवार विशेष को केंद्र में रखकर बनती हैं तो उनकी नीतियां राष्ट्र को केंद्र में रखकर बनती है।
मोदी के अनुसार कांग्रेस का राज अत्यधिक धीमी आर्थिक प्रगति का राज था, जबकि एनडीए का वर्तमान शासन तीव्र आर्थिक प्रगति का है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की शासन तुष्टिकरण का शासन था जबकि एनडीए का शासन संतुष्टीकरण का है। यूं तो मोदी के भाषण में कुछ भी नया नहीं था। कांग्रेस के परिवारवाद का जो आरोप लगाते रहे हैं, उसकी ही पुनर्पुष्टि थी। विशेष बात यह थी कि उनके प्रभावी वक्तव्य के आगे कांग्रेस की निरीहता ही उजागर हो रही थी।
अगर कांग्रेस का गांधी परिवार की पृष्ठभूमि और उसके गौरवशाली अतीत का मूल्यांकन करें तो मोदी का प्रहार कहीं से भी अतिवादी प्रतीत नहीं होता है। कल्पना करिए कि अगर सोनिया गांधी राजीव गांधी की पत्नी और इंदिरा गांधी की बहू नहीं होती तो क्या सचमुच में उनमें वह राजनीतिक क्षमता और भारतीय समाज को समझने की प्रतिभा थी कि वह कांग्रेस जैसी विशाल पार्टी की अध्यक्ष बनती।
उससे आगे क्या राहुल गांधी सचमुच उतने क्षमतावान राजनीतिज्ञ हैं, जितना कांग्रेस के शीर्ष नेता के रूप में अथवा विपक्षी दल के रूप में होना चाहिए। जाहिर है उनकी हैसियत परिवार प्रदत्त हैसियत है जो प्राय: कांग्रेस को दुविधा में डालती रहती है। मोदी के प्रहारों से कांग्रेस तभी बच सकती है जब वह अपने भीतर गुणात्मक और रचनात्मक परिवर्तन करे अन्यथा परिवारवाद का जो हथियार मोदी के हाथ में है वह हमेशा चलता रहेगा और कांग्रेस हमेशा बैकफुट पर रहेगी।
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