दूर की सोचें राहुल गांधी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी दोनों के प्रति अब समान रूप से हमलावर हो गए हैं।
दूर की सोचें राहुल गांधी |
दिल्ली में एक चुनाव सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अरविंद केजरीवाल ने साफ-सुथरी राजनीति की बात की थी, लेकिन उनकी सरकार में सबसे बड़ा शराब घोटाला (आबकारी घोटाला) हो गया और वह ‘शीश महल’ में रहने लगे। इसी तरह उन्होंने भाजपा, मोदी और आरएसएस पर एक बार फिर देश में नफरत की राजनीति करने का आरोप लगाया।
सच तो यह कि राहुल गांधी को अपनी नीतियों को लेकर स्पष्ट होना चाहिए और यह समझ बनानी चाहिए कि उन्हें कब किसका और किस मुद्दे पर विरोध करना है। केजरीवाल पर उनका हमला लगभग वैसा ही है, जैसा भाजपा के होते हैं। तो क्या यह माना जाना चाहिए कि जो भाजपा का शत्रु है वह राहुल गांधी का भी शत्रु है।
यह हास्यास्पद स्थिति है कि केजरीवाल के मामले में राहुल गांधी भाजपा की लाइन ले रहे हैं। जब केजरीवाल जेल में थे तो वह उनकी रिहाई की मांग कर रहे थे और जब दिल्ली के चुनाव में उनकी पार्टी के साथ गठबंधन या समझौता नहीं हुआ तो उन पर तीखा हमला कर रहे हैं। अब राहुल गांधी को यह तय करना चाहिए कि ऐसा करके वह किसको फायदा पहुंचा रहे हैं और किसे नुकसान पहुंचा रहे हैं।
दूसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अब उनकी मोहब्बत की दुकान वाला जुमला अर्थहीन हो चुका है। जब उनकी मोहब्बत की दुकान उनके गठबंधन ‘इंडिया’ यानी विपक्षी दलों के गठबंधन के साझेदारी को ही मोहब्बत नहीं दे पा रही है तो बाकी किसे देगी। शायद उनकी मोहब्बत सिर्फ उनके लिए है जो आंख मूंदकर उनके साथ आ जाए और जो उनका अपना ही क्यों ना हो, अगर उनके विरोध में आता है तो वहां उनकी मोहब्बत की दुकान बंद हो जाती है।
दरअसल, जरूरत इस बात की है कि कांग्रेस अपने छोटे-छोटे दली स्वार्थ से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एजेंडा तैयार करे और उसी के अनुसार अपने राजनीतिक दोस्त और दुश्मन को तय करे। अन्यथा इस समय राहुल गांधी जो कर रहे हैं उससे उनके दोस्त भी दुश्मन होते चले जाएंगे और इसकी भारी कीमत उनकी पार्टी कांग्रेस को चुकानी पड़ेगी?
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