आरजी कर अस्पताल में रेप के बाद हत्या के मामले में न्याय पर सवाल
पश्चिम बंगाल के आरजी कर अस्पताल में रेप के बाद हत्या के मामले में मुख्य आरोपी संजय रॉय को निचली अदालत ने दोषी करार दिया है। यह फैसला बीते साल नवम्बर में शुरू हुई सुनवाई के लगभग दो महीने बाद और इस अपराध के 162 दिन बाद सुनाया है।
न्याय पर सवाल |
संजय को भारतीय न्याय संहिता की धारा 64, 66 व 103 (1) के तहत रेप व हत्या का दोषी पाया गया। सत्र न्यायाधीश ने कहा कि उसे बोलने का मौका दिया जाएगा। संजय का दावा है, उसे फंसाया गया है। मृतका के मां-बाप ने उसे दोषी ठहराए जाने से खुशी व्यक्त की। मगर दोहराया कि वह अकेला नहीं था, उसके साथ और भी लोग थे, जिन्हें सजा मिलने तक संघर्ष जारी रखेंगे। 9 अगस्त को अस्पताल के आपातकालीन विभाग की चौथी मंजिल में पीड़िता का शव बरामद किया गया था।
मामले में साक्ष्यों के आधार पर सीबीआई ने सिविक वालंटियर संजय रॉय को मुख्य आरोपी बनाया। इस वीभत्स घटना से पूरे देश में आक्रोश फैल गया। चिकित्साकर्मियों व डॉक्टरों समेत आम लोगों ने लंबे समय तक विरोध-प्रदर्शन भी किए। अदालत के अनुसार उसे मृत्युदंड या आजीवन कारावास मिल सकती है। जैसा कि मृतका के पिता ने कहा, अभी बहुत से सवालों के जवाब बाकी हैं क्योंकि जांच के दौरान खुलासा हुआ था कि घटना जितनी वीभत्स थी, उसमें अन्य लोग भी शामिल थे।
हालांकि अस्पताल से जुड़े तमाम अन्य घोटालों व आर्थिक घपलों का भी खुलासा हुआ जिन पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर दोषियों का पक्ष लेने जैसे गंभीर आरोपों के बाद अस्पताल प्रबंधन में मामूली फेरबदल करने सरीखी कवायद भले ही हुई मगर समस्याओं के समाधान का प्रयास होता नहीं नजर आया। तमाम कड़े कानूनों के बाद भी देश में महिलाएं प्रति दिन असुरक्षा भरे माहौल से जूझने को मजबूर हैं।
बड़ी-बड़ी बातों के अतिरिक्त उन्हें कुछ नहीं मिलता। दोषी को कड़ी-से-कड़ी सजा होना त्वरित न्याय के प्रतिमान गढ़ने वाला साबित हो सकता है। मगर बाकी दोषियों पर हाथ डालने में कोताही क्यों हो रही है। सबसे नीचे के आरोपी पर कड़ी कार्रवाई कर लीपापोती की आदतों का प्रतिफलन है, गंभीर अपराधों में संलिप्त दोषियों का छुट्टा घूमते रहना। बात यहां रात्रि पाली में काम करने वाली महिलाओं तक सीमित नहीं है। यह हर नागरिक की सुरक्षा से जुड़ा मसला है। आपराधिक प्रवृत्ति वालों के प्रति पक्षपाती रवैया न्याय प्रणाली पर सवालिया चिन्ह लगाते हैं। जिससे बचना आवश्यक है।
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