किसानों के पंजाब बंद की कीमत
किसानों के पंजाब बंद के चलते रेल-बस यातायात समेत जनजीवन बुरी तरह प्रभावित रहा तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रहे। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की कनूनी गारंटी की मांग को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन कर रहे कुछ किसानों ने अमृतसर के गोल्डन गेट पर भी धरना दिया।
किसानों के पंजाब बंद की कीमत |
हालांकि आंदोलनकारी पहले ही स्पष्ट कर चुके थे कि बंद के दरम्यान इमरजेंसी सुविधाएं यथावत चलती रहेंगी परंतु पेट्रोल पंप, परिवहन, रेल सेवाओं को बंद रखने की ऐलान किया। बंद की पूर्व सूचना के चलते रेलवे ने शताब्दी व वंदे भारत जैसी डेढ़ सौ से ज्यादा ट्रेनों को रद्द कर दिया था। बंद को विभिन्न धार्मिक-सामाजिक संगठनों का समर्थन प्राप्त है। अनुमानों के अनुसार देश की बड़ी आबादी किसान है या कृषि कार्यों के भरोसे जीवनयापन कर रही है।
भारतीय आर्थिक सव्रेक्षण 2020-21 के अनुसार भारतीय कार्यबल के पचास फीसद रोजगार कृषि आधारित हैं। इनमें छोटे किसानों का हिस्सा 86 प्रतिशत है जिन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ नहीं मिल सकता। नब्बे फीसद किसानों को अपनी उपज मजबूरन खुले बाजार में बेचनी पड़ती है। हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उप्र के थोड़े से किसानों की बनिस्बत अन्य राज्यों के किसानों का रुख भांपते हुए सरकार अपना रुख लचीला करती नहीं नजर आ रही। मानती है कि यह कांग्रेस की राजनीति का हिस्सा है। दूसरे, आम चुनाव में किसानों के गुस्से का कोई असर न देख सरकार ने भी अड़ियल रुख अपना लिया लगता है।
किसानों का आरोप है कि नये कानूनों ने उनकी आर्थिक सुरक्षा में सेंध लगाई है। वे कृषि क्षेत्र में कॉरपोरेट के हस्तक्षेप को लेकर भी आशंकित हैं। हालांकि मुफ्त बिजली, कर्जमाफी जैसी बातें अतिश्योक्ति प्रतीत होती हैं। सरकार को किसानों तथा उपज के बीमा को लेकर स्थाई सहूलियत देने पर जोर देना चाहिए। समृद्ध किसानों को छोटे/मझोले किसानों व कृषि श्रमिकों की जरूरियात समेत उनकी समस्याओं को भी समझना चाहिए। उनकी बात सुनना सरकार का कर्त्तव्य है।
मगर जिस आक्रोश और गुस्से के भाव से किसान बार-बार जनजीवन अस्त-व्यस्त करते हैं, उसे उचित नहीं कहा जा सकता। बंद, विरोध-प्रदर्शनों से आम नागरिक प्रभावित होता है। किसान अनजाने में उनकी संवेदना खो रहे हैं। यह उनका बड़ा नुकसान है, जिसका उन्हें भान तक नहीं है। उसकी दिक्कतों का आंदोलनकारियों को ख्याल रखना चाहिए।
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