एक देश-एक चुनाव’ को लागू करने संबंधी विधेयकों को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी
एक देश-एक चुनाव’ को लागू करने संबंधी विधेयकों को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी, मसौदा कानून मौजूदा शीतकालीन सत्र में संसद में पेश किए जाने की संभावना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह फैसला लिया गया।
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सरकार विधेयकों पर व्यापक विचार-विमर्श करने को इच्छुक है। जिन्हें संसदीय समिति को भेजे जाने की संभावना है। सरकार विभिन्न विधानसभाओं के अध्यक्षों से परामर्श करने की इच्छुक है। इसमें विधानसभाओं को भंग करने और एकसाथ चुनाव शब्द को सम्मिलित करने के लिए अनुच्छेद 327 में संशोधन करने से संबंधित प्रावधान भी है।
सिफारिश में कहा गया है, विधेयक को कम से कम 50 फीसद राज्यों से अनुमोदित करने की आवश्यकता नहीं होगी। एक अन्य विधेयक केंद्र शासित प्रदेशों व पुडुचेरी, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर से सबंधित तीन कानूनों के प्रावधानों में संशोधन करने वाला सामान्य विधेयक होगा। अपने देश में एक चुनाव की बात अनूठी नहीं है। क्योंकि आजादी के बाद के वर्षो में भारत में एक ही चुनाव होता था। यानी सभी राज्यों के विधानसभा व लोक सभा चुनाव साथ हुआ करते थे।
मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही विभिन्न मौकों पर देश भर में एक चुनाव कराने की बात करते रहे हैं। हालांकि भारत में एक चुनाव कराना सरकार के लिए आसान नहीं है, परंतु प्रधानमंत्री चाहते हैं राज्यों व केंद्र में साथ में चुनाव हों ताकि संसाधनों व धन का अपव्यय रोका जा सके। अभी साल में कई दफा देश में कहीं-न-कहीं चुनाव हो रहे होते हैं; जिन पर राजनीति होती रहती है, चुनाव आयोग व सुरक्षा तंत्र व्यस्त रहता है। विपक्ष को बार-बार उंगली उठाने का मौका मिलता है।
सरकार की दलील है कि एक देश-एक चुनाव से राजकोष में बचत होगी। आचार संहिताओं के चलते विकास परियोजनाओं में रुकावटें नहीं आएंगी। चुनाव के दौरान काले धन के उपयोग के आरोपों से निपटने में एजेंसियों को सुविधा होगी। हालांकि इसका विरोध करने वाले कहते हैं कि देश भर में जितने संसाधनों की जरूरत होगी, उसके लिए सरकार को बजट बढ़ाना होगा।
देश के तमाम क्षेत्रीय व छोटे दलों के लिए एक साथ चुनाव का भारी नुकसान हो सकता है। जैसा कि हम जानते हैं, विधानसभा व लोक सभा चुनाव के मुद्दे काफी अलग होते हैं। एक ही चुनाव होने पर इनका पैटर्न बदल जाएगा। क्षेत्रीय दलों के लिए बड़ी राजनीतिक पार्टियों से मुकाबला करना दूभर हो सकता है, परंतु जैसा कि 62 दलों में से 32 चुनाव के पक्ष में हैं। 15 ने विरोध किया है। इसलिए सरकार आम सहमति बनाने का भरसक प्रयास करे।
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