मंदिर-मस्जिदों का सद्भाव से निकलेगा हल

Last Updated 14 Dec 2024 01:34:24 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सभी अदालतों को निर्देश दिया कि जब तक वह उपासना स्थल अधिनियम 91 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई और उसका निपटारा नहीं कर देता तब तक कोई और मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता।


सर्वेक्षण का आदेश भी पारित नहीं किया जा सकता। पिछले दो-चार वर्षो से विशेषकर निचली अदालतों में इस आशय की याचिकाओं की झड़ी लग गई है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने हिन्दुओं के पवित्र मंदिरों को ध्वस्त करके मस्जिदों का निर्माण किया था। इसलिए इन्हें हटा दिया जाना चाहिए।

अदालत में इस तरह के अनेक मुकदमे लंबित हैं, जिनमें वाराणसी का ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि शाही मस्जिद और हाल ही में संभल की मुगलकालीन मस्जिद सहित अनेक मामले शामिल हैं। राम जन्मभूमि आंदोलन जब शिखर पर था तब सुप्रीम कोर्ट ने उपासना स्थल अधिनियम 91 पारित किया था। इसमें अयोध्या के राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद को छोड़कर देश के अन्य धार्मिंक स्थलों के स्वरूप को 15 अगस्त 1947 की स्थिति में बनाए रखने का प्रावधान है।

इस अधिनियम को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने इसे अनुचित बताते हुए कहा है कि यह धर्म के पालन करने के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और के.वी. विनाथन की विशेष पीठ उपासना स्थल अधिनियम 1991 की वैद्यता परिधि और दायरे की जांच कर रही है।

जब से देश में तीर्थ स्थान के धार्मिंक चरित्र का पता लगाने के लिए निकली अदालतों द्वारा आदेश पारित किया जा रहे हैं तब से देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहे हैं। संभल में सव्रे के दौरान उपजी हिंसा में चार लोग मारे गए और करीब 20-25 लोग घायल हो गए।

वास्तव में मंदिर मस्जिद विवाद में मुख्य मुद्दा यह है कि हिंदुओं का आहत इतिहास बोध जो मुसलमान को अक्रांता मानता है, अपने मंदिरों का ध्वंसकर्ता मानता है उसे कैसे राहत दी जाए। यह नहीं लगता कि इस तरह की समस्या का समाधान कानून के पास है। जब तक ऐसे मामलों में दोनों पक्षों के बीच कोई अत्यधिक सौहार्दपूर्ण वातावरण नहीं बनेगा तब तक इसका कोई स्थाई समाधान दिखाई नहीं देता।



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment