सीरिया में असद के बाद के हालात
सीरिया की राजधानी दमिश्क पर तुर्की समर्थक आतंकवादी संगठन हयात तहरीर अल शाम (एचटीएस - HTS) के विद्रोहियों के कब्जे के बाद राष्ट्रपति बसर को देश छोड़कर रस भागना पड़ा और इस तरह असर परिवार के 5 दशकों के धर्मनिरपेक्ष लेकिन अधिनायकवादी सत्ता का अंत हो गया।
सीरिया में असद के बाद के हालात |
सीरिया में लंबे समय से दुनिया भर के जेहादी संगठन असद के खिलाफ मुहिम चला रहे थे। ‘अरब स्प्रिंग’ के दौरान मार्च 2011 में राष्ट्रपति असद की इस्तीफे की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ लेकिन उनकी सरकार ने बड़ी क्रूरता के साथ इस विरोध प्रदशर्नों को दबा दिया था। विश्व नेता और मानवाधिकार समूहों ने असद सरकार की इस कार्रवाई की निंदा की थी। इस घटना के बाद राष्ट्रपति असद की सरकार दबाव में आ गई और उसे घरेलू मोच्रे पर अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
रूस और ईरान के सहयोग से असद सत्ता में बने रहे। ‘अरब स्प्रिंग’ लोकतंत्र समर्थक विद्रोह की एक श्रृंखला थी, जिसके प्रभाव में कई मुस्लिम देश आए थे। लेकिन सीरिया की नवीनतम घटना को ‘अरब स्प्रिंग’ कहना अभी मुश्किल है। इसकी एक वजह तो यह की एचटीएस की जड़ें अल कायदा जैसे जेहादी और आतंकी संगठन से निकली है। हालांकि एचटीएस अल कायदा की तरफ वैश्विक जेहाद छोड़ने का दावा नहीं करता। वह दावा करता है कि उसका विश्वास लैंगिक समानता और धार्मिंक-जातीय अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करना है।
राष्ट्रपति बशर-अल असद की सरकार का पतन और अबु मोहम्मद अल जुलानी के नेतृत्व वाले एचटीएस जैसी इस्लामी ताकतों का उदय पश्चिम एशिया के भू राजनीति की स्थितियों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालने वाला है। इस पूरे घटनाक्रम से यह जाहरि है कि राष्ट्रपति असद की सत्ता को गिराने में तुर्की, फ्रांस, अमेरिका और इस्रइल की हिस्सेदारी है और इस क्षेत्र में इनकी विजय हुई है और रूस तथा ईरान की पराजय हुई है। भारत पर भी इस घटनाक्रम का असर पड़ सकता है।
भारत और सीरिया के बीच पुराने रिश्ते रहे हैं। भारत ने सीरिया पर लगाए प्रतिबंधों का कभी समर्थन नहीं किया तो दूसरी ओर सीरिया ने कश्मीर के मुद्दे पर हमेशा भारत का समर्थन किया है। अब आगे देखना है कि एचटीएस के नेतृत्व वाली नई सरकार का भारत सहित विदेशी मोर्चे पर क्या रु ख रहता है। विदेश मंत्रालय ने शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण और समावेशी राजनीतिक प्रक्रिया का आह्वान किया है।
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