किसानों को चोट पहुंचाना न्यायोचित नहीं
हरियाणा में सुरक्षाकर्मियों ने शंभू बॉर्डर पर बहुस्तरीय अवरोधों के करीब पहुंचे किसानों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे।
किसानों को चोट पहुंचाना न्यायोचित नहीं |
न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानून की गारंटी समेत अन्य तमाम मांगों के लिए केंद्र पर दबाव बनाने के लिए किसानों के विभिन्न संगठन यह प्रदर्शन कर रहे थे। झड़प के बाद कुछ संगठनों ने प्रदर्शन स्थगित कर दिया मगर कुछ विरोध की रणनीति को लेकर पशोपेश में हैं। पहले ही दिल्ली को निकले किसानों के जत्थों को रोक दिया गया था। मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है, जिसमें केंद्र, पंजाब व हरियाणा सरकार से शंभू बॉर्डर समेत अन्य हाई-वे खोलने के निर्देश देने की मांग की गई है। भीड़ के अनियंत्रित होने पर उन्होंने धुएं के गोले प्रयोग किए।
हरियाणा के खाप नेताओं ने भी विरोध मार्च में शामिल होने का निर्णय लिया है। हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा विभाजित है। उसके विभिन्न समूहों में गुटबाजी के चलते उनके निर्णय प्रभावित हो रहे हैं। चूंकि प्रधानमंत्री हरियाणा जा रहे हैं, ऐसे में सुरक्षा एजेंसियों से विशेष सतर्कता बरतने की उम्मीद लाजमी है। किसानों को चोट पहुंचाना कभी भी न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। मगर पुलिस का आरोप है कि उन्होंने लोहे की छड़ों व रस्सियों के मार्फत लोहे की सुरक्षा जालियों को हटाना चालू कर दिया था।
पूर्व में हमने देखा है, किसानों ने इन व्यवधानों से निपटने की भरपूर और बड़े स्तर पर तैयारियां की थीं। उन्होंने क्रेन व ट्रैक्टरों के आगे लोहे की मोटी-मोटी मजबूत छड़ें लगवाई थीं, जो विरोध-प्रदर्शन का उचित तरीका नहीं कहा जा सकता। हालांकि तीन सौ दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे किसानों के प्रति सरकार का रवैया भी सामान्य नहीं है। किसानों के प्रति सहिष्णुताभाव प्रदर्शित करते हुए सरकार को विशेषज्ञों के दल के साथ विस्तारपूर्वक बातचीत करानी चाहिए।
घायल किसानों के इलाज में किसी तरह असावधानी अक्षम्य मानी जाएगी। हकीकत में समर्थन मूल्य को लेकर देश भर के किसान उतने उग्र नहीं हैं। जितने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के इर्द-गिर्द के किसान संगठनों ने नाराजगी दिखाई है। समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी के साथ ही ऋण माफी, पेंशन व सस्ती बिजली की मांग के प्रति सरकार को सलीके से जवाब देने चाहिए। क्योंकि बात केवल बड़े किसानों की नहीं है, इसमें छोटे-मझोले किसान भी शामिल है। जिनकी जिन्दगी पूरी तरह कृषि पर ही आधारित है। बड़े व समृद्ध किसानों पर होने वाली सख्ती की मार से कमजोर किसानों को बचाना सरकार की जिम्मेदारी है।
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