सीरिया में रूस विरोधी जेहाद
पश्चिम एशिया में इस्रइल और हिजबुल्ला के बीच युद्ध विराम के तुरंत बाद सीरिया में युद्ध का एक नया मोर्चा खुल गया है। सीरिया पश्चिम एशिया में संभवत एकमात्र धर्मनिरपेक्ष देश है जो अरब-इस्लामी देशों की आंखों की किरकिरी बना हुआ है।
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लंबे समय तक वहां दुनिया भर के जेहादी संगठन राष्ट्रपति बशर-अल-असद की सरकार के खिलाफ मुहिम चलाते रहे हैं। आतंकवादी संगठन आईएस, अल कायदा और अल-नुसरा सहित अनेक जेहादी संगठनों ने सीरिया में बड़े पैमाने पर खून-खराबा किया। राष्ट्रपति असद की सरकार रूस और ईरान के समर्थन से देश में अपना शासन बनाए रखने में सफल रही। एक समय ऐसा था जब दुनिया भर के जेहादी समर्थक लड़ाकू सीरिया कूच कर रहे थे। यूरोप से भी अनेक गुमराह युवा सीरिया के जेहाद में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। अमेरिका सहित पश्चिमी देशों ने आईएस जैसे आतंकवादी संगठनों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई में भाग लिया था। लेकिन उन्होंने असद सरकार के खिलाफ सैन्य अभियान चला रहे फ्री सीरियन आर्मी और अल-नुसरा जैसे संगठनों को सहायता दी थी। इस्रइल भी असद सरकार को अपने लिए खतरा मानता है। यही कारण है कि उसने भी असद विरोधी संगठनों को मदद दी।
नवीनतम घटनाक्रम में तुर्की समर्थक आतंकवादी संगठन हयात तहरीर अल-शाम (एसटीएस) के विद्रोहियों ने सीरिया के दो शहरों अलेप्पो और अल्दीव पर धाबा बोल दिया। यह हमला इतना आकस्मिक और बड़े पैमाने पर था कि सरकारी सेनाएं लड़खड़ा गई। दो-तीन दिनों में ही आतंकवादियों ने सीरिया के दूसरे सबसे बड़े शहर अलेप्पो पर कब्जा कर लिया। सीरिया की सेना के सामने पीछे हटकर नये सुरक्षा मोर्चा कायम करने के अलावा और कोई चारा नहीं था। आतंकवादियों ने अलेप्पो में राष्ट्रपति असद और अन्य राष्ट्रीय नेताओं की प्रतिमाओं को ध्वस्त कर दिया। ऐसे ही दृश्य कुछ दिन पहले बांग्लादेश में देखने को मिले थे जब इस्लामी उग्रवादियों की भीड़ ने राष्ट्रपति बंगबंधु शेख मुजीबुर्ररहमान की प्रतिमाओं को तोड़ा था।
सीरिया की घटनाक्रम में तुर्की के राष्ट्रपति एदरेगन की भूमिका सबसे अधिक संदिग्ध है। वास्तव में एचटीएस की सैनिक सफलता के पीछे तुर्की का सक्रिय सहयोग है। सीरिया में तुर्की के सीमावर्ती इलाकों में सीरिया की सेनाओं और उसके समर्थक सशस्त्र गुटों की मौजूदगी है। कुछ वर्ष पूर्व रूस और तुर्की के बीच यह सहमति बनी थी कि वह यथास्थिति कायम रखेंगे। एसटीएस के हमले से जाहिर है कि तुर्की ने इस समझौते को तोड़ा है तथा वह असद सरकार को अस्थिर बनाने की साजिश में शामिल है।
कुछ विश्लेषकों के अनुसार इस प्रकरण में अमेरिका, फ्रांस, इस्रइल और यूक्रेन की भी हिस्सेदारी है। रूस ने तुर्की पर समझौता तोड़ने का आरोप लगाया है। रूस की ओर से सीरिया की मदद के लिए युद्ध विमान भेजे गए हैं। रूस की वायु सेवा अलेप्पो और अल्दीव में विद्रोहियों के मोचरे पर बमबारी कर रही है। इससे आतंकवादियों को जान-माल का नुकसान होगा और उनकी बढ़त रु केगी। लेकिन जमीनी मोर्चे पर सरकारी सेनाओं के लिए अलेप्पो पर दोबारा कब्जा करना मुश्किल होगा। रूस भी इस समय यूक्रेन युद्ध में उलझा है। उसके लिए भी आसान नहीं होगा कि वह अपने सैन्य संसाधन बड़ी मात्रा में सीरिया भेजे।
फिलहाल, प्रारंभिक झटके के बाद सीरिया की सेना फिर लामबंद हो रही है। उसने नए सुरक्षा मोर्चे काम किए हैं तथा जवाबी हमले की तैयारी में है। कुल मिलाकर, हालात राष्ट्रपति असद के प्रतिकूल हैं। उनकी सरकार को हिजबुल्लाह का सक्रिय समर्थन हासिल था। पिछले एक वर्ष में हिज्बुल्लाह की ताकत काफी कम हुई है। गाजा में हमास और लेबनान में हिजबुल्लाह इस्रइली हमलों के कारण संगठित सैन्य ताकत नहीं रहे हैं। ईरान भी सीरिया की मदद करने की बजाय आत्मरक्षा की कवायद में है। पश्चिम एशिया में सुन्नी और शिया देशों की टकराव का यह ज्वलंत उदाहरण है। इसकी परिणति एक धर्मनिरपेक्ष देश के पतन के रूप में सामने आ सकती है।
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