संसदीय चर्चाओं में शिष्टाचार और अनुशासन के मानकों में गिरावट वाकई चिंता का सबब
उपराष्ट्रपति एवं राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा है कि संसदीय चर्चाओं में शिष्टाचार और अनुशासन के मानकों में गिरावट चिंता का विषय है।
वाकई चिंता का सबब |
भारतीय संविधान अंगीकार करने के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में लोक सभा और राज्य सभा की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने संविधान सभा की शानदार कार्यपण्राली की चर्चा की। सदन में रणनीति के तहत होने वाले शोरगुल को लोकतांत्रिक संस्स्थाओं के लिए उन्होंने खतरा बताया।
कहा, दल धर्म को देश के ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता दूसरी बार खतरे में पड़ जाएगी और शायद हमारे लिए खो ही जाए। हम भारत के लोग-संविधान के शुरुआती शब्दों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि संसद जनता की आवाज के रूप में काम करती है। आपातकाल की चर्चा करते हुए उन्होंने उसे सबसे काला दौर बताया। पिछले कुछ सालों से भाजपा लगातार अपातकाल को लेकर कांग्रेस पर निशाना बनाने का काम कर रही है। उपराष्ट्रपति द्वारा अपनी पार्टी की वही रीति दोहराई जाती लगी।
हालांकि पंथ को लेकर किया गया उनका तंज परोक्ष रूप से भाजपा पर किया गया निशाना लग रहा है। धर्म की राजनीति करने वाली देश की सबसे बड़ी पार्टी इस वक्त सत्तानशीं है और धर्मनिरपेक्षता का माखौल उड़ाने से बाज नजर नहीं आती। यूं भी संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति का किसी दल का प्रत्यक्ष पक्षपात करते शोभा नहीं देता। शायद इसीलिए धड़खड़ ने अपनी बात स्पष्ट रूप से रखने में कोई कोताही नहीं बरती।
जैसा कि उन्होंने इंगित किया कि कमजोर होते विपक्ष की रणनीति संसदीय कार्यपण्राली को शांतिपूर्ण तरीके से चलने में व्यवधान उत्पन्न करने और जानबूझ कर अनुशासनहीनता करने वाली होती जा रही है। वे न सिर्फ संसद के भीतर उपद्रव करते हैं, बल्कि सदन की गरिमा से भी बेपरवाह रहते हैं।
हम दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं, इसलिए प्रत्येक सांसद का दायित्व है कि जनप्रतिनिधि के तौर पर अपनी भूमिका निभाते हुए गरिमापूर्ण बर्ताव करे। अब संसदीय कार्यवाही का लाइव प्रसारण भी होता है जिसे आम जनता समेत दुनिया के तमाम देश देखते हैं। सरकार या सरकारी कामकाज के प्रति विरोध दर्ज कराने के भद्र तरीके भी हमारी पण्राली का हिस्सा हैं, जिनके प्रति सदन के हर सम्मानित सदस्य को जिम्मेदार नजर आना चाहिए।
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