वैश्विकी : यूक्रेन युद्ध के 1000 दिन
यूक्रेन युद्ध के 1000 दिन पूरे होने के बाद भी किसी पक्ष को निर्णायक जीत हासिल नहीं हुई है। इस बीच परमाणु युद्ध या विश्व युद्ध होने की आशंका फिर व्यक्त की जा रही है।
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करीब तीन वर्ष पूर्व युद्ध के शुरू होने पर यह संभावना व्यक्त की जा रही थी कि अपनी सैनिक शक्ति के बलबूते रूस कुछ ही सप्ताह में जीत हासिल कर लेगा। राष्ट्रपति पुतिन ने अपने सामने यूक्रेन में सत्ता बदल करने तथा उसे तटस्थ नीति पर अमल करने के लिए बाध्य करने का लक्ष्य रखा था।
प्रारंभिक दौर में ही यह स्पष्ट हो गया था कि युद्ध से जान-माल का भारी नुकसान हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय जनमत के दबाव में रूस ने अपने विशेष सैन्य अभियान को सीमित रखा। राष्ट्रपति पुतिन को आशा थी कि यूक्रेन और उसके यूक्रेन और उसके पश्चिमी सहयोगी देश शक्ति प्रदर्शन को देखते हुए शांति वार्ता के लिए तैयार हो जाएंगे। उसी दौर में शांति वार्ता की पहल भी हुई तथा संकट के समाधान का रास्ता भी प्रशस्त होने लगा।
लेकिन उसी समय ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और पश्चिमी देशों ने गौर-जिम्मेदाराना रवैया अपनाते हुए राष्ट्रपति जेलेंस्की को युद्ध जारी रखने के लिए उकसाया। राष्ट्रपति जेलेंस्की भी इस गलतफहमी का शिकार हुए कि पश्चिमी देशों की आर्थिक और सैनिक मदद के जरिये वह रूस का मुकाबला कर सकते हैं।
राष्ट्रपति पुतिन को जब इस बात का अहसास हुआ कि अमेरिका और सैन्य संगठन नाटो के देश यूक्रेन की आड़ में रूस के विरुद्ध अप्रत्यक्ष युद्ध छेड़ रहे हैं तो उन्होंने पहली बार परमाणु युद्ध की चेतावनी दी। उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और शी जिनपिंग ने पुतिन को संयम बरतने की सलाह दी। उसके बाद लंबे समय तक पुतिन ने परमाणु हथियारों का उपयोग करने की चेतावनी देने से परहेज किया। लेकिन हाल में उनकी ओर से एक बार फिर ऐसी धमकी दी गई।
चिंताजनक बात यह है कि रूस ने अपनी चेतावनी को वास्तविक साबित करने के लिए मध्यम दूरी तक मार करने वाले बैलिस्टिक मिसाइल का इस्तेमाल किया। ऐसे मिसाइलों का इस्तेमाल परमाणु हमलों के लिए किया जाता है।
इतना ही नहीं राष्ट्रपति पुतिन ने यह भी कहा कि यूक्रेन को सक्रिय सैन्य सहयोग प्रदान करने वाले देशों को भी निशाना बनाया जा सकता है। पुतिन की ओर से नाटो देशों को यह अब तक की सबसे गंभीर चेतावनी है। पूर्व में राष्ट्रपति पुतिन की ऐसी धमकियों को नाटो देश बंदरघुड़की की संज्ञा दे रहे हैं लेकिन इस बार पुतिन के बयान को नजरअंदाज करना घातक सिद्ध हो सकता है। यह भी गौर करने वाली बात है कि भारत और चीन की ओर से पुतिन को इस बार अभी तक कोई सलाह नहीं दी गई है। जाहिर है कि मोदी और जिनपिंग हालात की संवेदनशीलता समझ रहे हैं।
एक चिंताजनक पहलू यह भी है कि यूक्रेन के हालात ऐसे समय बिगड़ रहे हैं जब अमेरिका में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया चल रही है। ऐसा लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति का पदभार संभालने से पहले कुछ शक्तियां हालात बिगाड़ने पर आमादा हैं। अमेरिका और पश्चिमी देशों के कुछ विश्लेषक बाइडेन प्रशासन पर जोर दे रहे हैं कि वह राष्ट्रपति पद छोड़ने से पहले ऐसी परिस्थितियां बना दें ताकि यूक्रेन युद्ध जारी रख सके। यूक्रेन को अमेरिका ने अंदर तक मार करने वाले मिसाइलों का उपयोग करने की छूट देना भी किसी रणनीति का हिस्सा है।
यदि हालात ज्यादा बिगड़ते हैं तो ट्रंप के लिए भी मुश्किल होगा कि वह युद्ध को समाप्त करने के लिए कोई कारगर प्रयास करें। वैसे इस बात की संभावना है कि राष्ट्रपति पुतिन व्हाइट हाउस में ट्रंप के आने का इंतजार करेंगे। लेकिन जाने-अनजाने किसी हादसे की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। यदि ऐसी कोई अनहोनी होती है तो यूरोप में एक महायुद्ध छिड़ सकता है।
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