चली गई शारदा

Last Updated 07 Nov 2024 12:56:52 PM IST

पांच नवम्बर की देर रात जब भोजपुरी कोकिला एवं गायकी की समृद्ध परंपरा कही जानी वाली शारदा सिन्हा के न रहने की खबर आई तो संसार चलते-चलते अचानक से ठहर गया।


संपूर्ण मैथिली-भोजपुरी समाज के अलावा समूचे संसार के लिए शारदा सिन्हा का विसर्जन गहरा आघात है। पूर्वाचल की बगिया से कोयल के उड़ जाने जैसा है स्वर कोकिला शारदा सिन्हा का नर दुनिया को अलविदा कह देना। संगीत की दुनिया में शारदा का न रहना, ‘कोयल बिना न सोभे बगिया’, जैसा माना जाएगा।

आठ भाइयों के बाद वह जन्मीं। जन्म 1 अक्टूबर 1952 को हुआ था। जन्म के दो वर्ष के भीतर ही उन्होंने गाना गुनगुनाना आरंभ कर दिया था। 15 वर्ष में उनकी खनकती आवाज के लोग दीवाने हो गए थे। जब उनकी शादी हुई, तो सास को कतई पसंद नहीं था कि उनकी बहू गाना-बाना गाए। लेकिन नियति को शायद यही पसंद था। भारी विरोध के बाद भी उन्होंने गायन यथावत रखा। जब देश-विदेश से प्रशंसाएं मिलने लगीं तो सास ने भी कह दिया, बहू तुम अच्छा गाती हो, गाती रहो।

जब लीन होकर पूरे मदहोश में वह गाती थीं तो लगता था कि उनके कंठ में स्वयं सरस्वती बैठी हुई हैं। शारदा सिन्हा के दो बच्चे हैं, जिनमें एक बेटा अंशुमन सिन्हा और एक बेटी वंदना। शारदा के पति ब्रज किशोर सिन्हा का निधन भी इसी वर्ष हुआ। उनके जाने के बाद से वह पूरी तरह टूट गई थीं।

सलमान खान और भाग्यश्री अभिनीत फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ में गाया गाना..‘कहे तोसे ये तोहरी सजनिया’ ..इतना फेमस हुआ कि उन्हें रातोंरात बड़ा फिल्मी सिंगर बना दिया। शारदा सिन्हा को राजनीति के ऑफर भी बहुतेरे मिले। लेकिन शारदा सभी ऑफरों को ठुकराती गई।

कई मर्तबा उन्होंने कहा भी कि उन्हें राजनीति बिल्कुल पसंद नहीं। छठ के गानों के अलावा भी उन्होंने विभिन्न भाषाओं में एक से एक हिट गाने दिए। शारदा का जन्म बिहार के जिले सुपौल के हुलास गांव में हुआ था। विवाह बेगूसराय में हुआ। वह गायिका के साथ-साथ प्रोफेसर भी रहीं।

बीएड की पढ़ाई के अलावा म्यूजिक स्ट्रीम में पीएचडी करके समस्तीपुर के एक कॉलेज में प्रोफेसर बनीं। कॉलेज से रिटायर होने के बाद भी उन्होंने संगीत की फ्री शिक्षा देना जारी रखा। उनके न रहने से एक युग का अंत हुआ है। उनकी जगह कोई नहीं ले सकता। उनकी मीठी, मधुर, सुरीली आवाज श्रोताओं के कानों में सदा गुंजेगी।



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