कुलपतियों ने लिखा राहुल गांधी को ओपन पत्र

Last Updated 08 May 2024 01:33:37 PM IST

देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के पूर्व तथा वर्तमान कुलपतियों समेत तकरीबन दो सौ शिक्षाविद् ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ चिट्ठी लिखी है जिसमें उनके एक बयान के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है।


सच का सामना

इस खुली चिट्ठी में विश्वविद्यालय के प्रमुख पद की नियुक्ति प्रक्रिया पर कांग्रेस नेता पर झूठ फैलाने का आरोप है। राहुल के दावों को खारिज करते हुए उन्होंने दावा किया कि कुलपतियों के चयन की प्रक्रिया  पारदर्शी है जिसमें योग्यता, विद्वत विशिष्टता और निष्ठा के मूल्य समाहित हैं। यह विवाद राहुल के आरोप के बाद पैदा हुआ। उनके अनुसार शैक्षणिक संस्थानों में नियुक्ति में हिन्दूवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्धता प्रमुख आधार है।

यह विवाद ऐसे वक्त पैदा हुआ है, जब लोक सभा के चुनाव चल रहे हैं। कहना गलत नहीं है कि कुलपतियों की नियुक्ति सत्ताधारी दलों के हितों पर ही केंद्रित रही है। कुलपति ही नहीं, शिक्षकों के चयन में भी वैचारिक झुकाव को प्राथमिकता दी जाती है। फिर भी शैक्षणिक संस्धानों के उच्च पदों पर बैठे लोगों से उम्मीद की जाती है कि निजी राय को सार्वजनिक करने से बचें। मोदी सरकार के सत्ता में आने से पूर्व आरोप लगते थे कि वामपंथी विचारधारा वालों को तरजीह दी जाती है।

चुनाव के दरम्यान राजनीतिक दल और राजनेता एक-दूसरे पर कटाक्ष करने से नहीं चूकते। यह लोकतंत्र है, यहां सारा इख्तियार जनता जनार्दन के हाथ में होता है। बावजूद इसके समझदारी यही है कि सार्वजनिक रूप से कमर के नीचे वार करने से बचा जाए। जब तक हाथ में किसी तरह के साक्ष्य न हों, आरोप-प्रत्यारोप से बचने का प्रयास होना चाहिए। बीते हफ्ते ही एक नामी निजी विश्वविद्यालय के छात्रों का प्रदर्शन मखौल बन गया।

हमारे शिक्षण संस्थान अपना स्तर उठाने की बजाय बेतुके कारणों से चर्चा का केंद्र बन रहे हैं। यदि संस्थानों के शीर्ष पदाधिकारी अपने सम्मान की रक्षा के लिए उचित कदम नहीं उठाएंगे तो छात्रों के समक्ष बेहतरीन उदाहरण पेश करने में असफल कहलाएंगे परंतु अपवादस्वरूप इन आरोपों में तनिक भी सच्चाई है और इन उच्च और सम्मानित पदों के बंटवारे में पक्षपात हुआ है, तो यह नौजवानों को गलत संदेश देने वाला साबित हो सकता है। बेहतर होता कि शिक्षाविद विश्व की विश्वविद्यालय क्रम-सूची में आने के प्रयास करते नजर आते, नकि अपनी निष्ठा किसी दल विशेष या राजनेता में जताने की मशक्कत में एकजुट होते।



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