छात्रों की चुनौतियां
मेडिकल छात्रों में मानसिक सेहत संबंधी समस्याओं और आत्महत्या करने से जुड़ी चिंताओं का समाधान करने के लिए राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) ने राष्ट्ऱीय कार्यबल गठित किया है।
छात्रों की चुनौतियां |
बल छात्रों के समक्ष चुनौतियों के कारकों का विश्लेषण करेगा। बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए रणनीतियों का भी प्रस्ताव करेगा। पिछले दिनों देखने में आया है कि मेडिकल छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य चिंता का विषय है। ये छात्र अवसादग्रस्त होते जा रहे हैं और लगातार आत्महत्या कर रहे हैं।
इसके समाधान के लिए रैगिंग रोधी समिति द्वारा राष्ट्रीय कार्यबल का गठन किया गया है। यह मेडिकल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या करने से जुड़े आंकड़ों तथा रिपोर्टों का अध्ययन करेगा। मेडिकल छात्रों पर पाठय़क्रम का भारी बोझ होता है जैसा कि लगभग सभी उच्चतम शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों पर रहता है।
बनिस्बत मेडिकल की पढ़ाई बहुत मंहगी और जटिल साबित होती है। अब पढ़ाई में प्रतिस्पर्धा ही नहीं रह गई है, बल्कि बेहतरीन पैकेज पाने का भारी दबाव भी होता है। प्रवेश परीक्षा में असफल होने पर ही छात्र निराश हो जाते हैं। पढ़ाई के बोझ के चलते उनके मानसिक स्वास्थ्य को लेकर गंभीर लापरवाही हो रही है।
देश में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या कर रहा है, जो अपने आपमें बेहद भयावह दृश्य है। बीते तीन सालों में 35 हजार 950 छात्रों ने अपनी जान लीं। अकेले 2022 में तेरह हजार छात्रों ने आत्महत्याएं की हैं। इसे लेकर जिस तरह की चिंता की जानी चाहिए, वह नजर नहीं आ रही।
आशंका की जा सकती है कि मरने वाले सभी छात्रों पर पढ़ाई का बोझ न हावी हो बल्कि कुछ घरेलू कारणों, असफल प्रेम या किसी अन्य तरह की कुंठाओं के चलते, आर्थिक दिक्कतों या क्रोधवश वे अपना जीवन समाप्त करने को विवश हुए हों। हमें नहीं भूलना चाहिए कि युवावस्था काफी जटिल होती है।
चूंकि अपने समाज में सबसे वड़ा वर्ग नौजवानों का ही है, इसलिए उनकी मानसिक सेहत के प्रति तनिक भी लापरवाही भविष्य में मुश्किल खड़ी कर सकतीैहै। इसे चुनौती की तरह लिया जाना चाहिए। यह कदम सराहनीय है।
मगर शिक्षा, स्वास्थ्य विभाग को मिल-जुलकर इसी तर्ज पर देश भर के छात्रों के उचित मार्गदर्शन के प्रति जागरूक होना चाहिए ताकि स्थिति का अध्ययन करने के साथ ही छात्रों की मानसिक सेहत के सुधार का काम भी किया जा सके।
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