राजनीति या महिला हित
असम मंत्रिमंडल ने बाल विवाह को समाप्त करने के लिए असम मुस्लिम विवाह एवं तलाक पंजीकरण अधिनियम, 1935 को रद्द करने की मंजूरी दे दी है।
राजनीति या महिला हित |
असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा-इस अधिनियम में विवाह पंजीकरण की अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल थे। भले ही दूल्हा/दुल्हन 18 और 21 वर्ष की कानूनी उम्र तक न पहुंचे हों। जैसा कि कानूनन जरूरी है।
यह अधिनियम ब्रिटिशकाल में बनाया गया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में अनिवार्य करने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दिए थे। इसे मुसलमानों के खिलाफ बताया जा रहा है। विपक्ष का आरोप है कि विधानसभा में इस बाबत कोई विधेयक या अध्यादेश न लाने के पीछे भाजपा की साजिश है।
अपने समुदाय का पक्ष रखते हुए लोग कह रहे हैं कि यह मुसलमानों के विवाह और तलाक का एकमात्र पंजीकरण तंत्र है, जो संविधान के तहत वैध है। इस अधिनियम के तहत 94 सरकारी काजी मुसलमानों की शादी और तलाक का पंजीकरण कर रहे थे, जिसे निरस्त कर दिया गया।
इन काजियों के पुनर्वास के लिए सरकार दो लाख रुपये का एकमुश्त मुआवजा देने की बात भी कही है। 2011 की जनगणना के मुताबिक असम में 34% मुसलमान हैं, तकरीबन 1.06 करोड़। कुछ समय पहले ही राज्य सरकार ने बाल विवाह के विरुद्ध कार्रवाई करते हुए करीब चार हजार लोगों को गिरफ्तार भी किया है।
सरमा विभिन्न मौकों पर स्पष्ट कह चुके हैं कि उनकी सरकार समान नागरिक संहिता लाने की दिशा में काम कर रही है।
बहुविवाह पर रोक लगाने के लिए विधेयक पर भी वहां तेजी से काम हो रहा है। वे इसे फौजदारी अपराध बनाने का प्रयास कर रहे हैं। बाल विवाह और बहुविवाह स्वस्थ समाज के नासूर हैं। मगर इस तरह की परंपराओं से राजनीति को दूर रखकर निपटना चाहिए।
दरअसल, सरकारी काजियों पर सख्ती करके भीबाल विवाह रोके जा सकते थे परंतु भाजपा देश भर में समान नागरिक संहिता लागू करने का सपना नहीं छोड़ना चाहती। भाजपा नीत राज्य सरकारें भी इस योजना पर काम शुरू कर चुकी हैं।
हो न हो, यह उसी तरफ बढ़ रहा सरमा सरकार का कदम हो। रूढ़ियों को तोड़ना यूं भी बहुत कठिन होता है। नियम-कायदों को लागू करने में हमेशा अड़चनें आती हैं, विरोध किया जाता है। मगर सुधार तो जारी रहेंगे।
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