धीमी प्रगति से निराश न हों

Last Updated 24 Feb 2024 11:49:02 AM IST

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का हल निकालने के लिए 21वें दौर की वार्ता में बस बातचीत हुई।


धीमी प्रगति से निराश न हों

सरकार की तरफ से इसके आयोजन एवं नतीजों की जिन शब्दावली में जानकारी दी गई, उसमें गतिरोध के समाधान का कोई संकेत नहीं मिला। सिवाए इसके कि दोनों देश सीमावर्त्ती इलाके में ‘शांति और स्थिरता’ बनाए रखने पर सहमत हुए। एक विचार यह हो सकता है कि सीमा विवाद इतना जटिल होता है कि इसमें सहसा किसी बड़ी प्रगति की उम्मीद नहीं की जा सकती। और जब मेज की दूसरी तरफ चीन जैसा हठी देश हो तो सफलता धीमी गति से एवं किस्तों में ही मिलने की उम्मीद करनी चाहिए।

पर जिस बात को भारत और चीन चार साल पहले हुए गलवान सैन्य संघर्ष के बाद से परस्पर कहते आ रहे हैं, उसमें यह बात भी शामिल थी कि गतिरोध का हल बातचीत से निकले। भारत तभी से कहता रहा है कि सीमा पर जहां-तहां तैनात चीनी सैनिक वापस जाएं, वे एलसीए से दूर रहें और इस तरह ही सरजमीं पर शांति बनाई जाए। भारत ने तब ही स्पष्ट कर दिया था कि सीमा पर तनाव रहते द्विपक्षीय संबंध सुचारू नहीं रह सकते। इसके बाद ही चीन नरम पड़ा था।

दोनों पक्षों ने 2021 में पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी तट तथा गोगरा क्षेत्र से सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पूरी की थी। अब बुधवार को भारत-चीन कोर कमांडर स्तर की 21वें दौर की हुई बातचीत में डेपसांग और डेमचोक से चीनी सैनिकों की वापसी के साथ पूर्ण वापसी पर बात होनी थी। जो नहीं हुई। इसका नतीजा यह हुआ है कि किसी स्थिति से निपटने के लिए भारतीय सैनिकों की उच्च स्तर की अभियानगत तैयारी बरकरार है।

यह तनावपूर्ण स्थिति ही है। चीन को दादागिरी से बाज आने के लिए रक्षा सचिव ने अमेरिका तक से भी जरूरत मुताबिक सहयोग लेने की बात कर पहली बार सैन्य गठबंधन को जाहिर कर दिया है। यह कभी नहीं कहा गया था कि चीन साझा खतरा है, भले इसे इशारों में कहा गया और इसको ध्यान में रख कर अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया आदि देशों का संगठन क्वाड भी बनाया गया। चीन के साथ व्यवहार में अमेरिका को स्पष्ट इंट्री देना भारत के छूटते धीरज का प्रमाण है। यह तो युद्ध की स्थिति होगी और समय से पहले मानी जाएगी। वैसे भारत को यह मालूम है कि ऐसा अंतिम कदम कब उठाया जाता है। फिलहाल वार्ता जारी रखा जाए।



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