भंडारण ढांचे पर ध्यान
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बात पर अफसोस जताया है कि भंडारण के बुनियादी ढांचे की देश में कमी के कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता रहा है।
भंडारण ढांचे पर ध्यान |
पिछली सरकारों ने इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया लेकिन आज प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) के माध्यम से इस समस्या का समाधान किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी शनिवार को 11 राज्यों के पैक्स में अनाज भंडारण के लिए 11 गोदामों के उद्घाटन अवसर पर एक सभा को संबोधित कर रहे थे।
ये गोदाम सहकारी क्षेत्र में सरकार की दुनिया की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना का हिस्सा हैं। यह योजना देश में उत्पादित शत-प्रतिशत अनाज के भंडारण की क्षमता तैयार करेगी। योजना के तहत 1.25 लाख करोड़ रुपये के निवेश से अनाज भंडारण ढांचा तैयार किया जाएगा।
कहा जा रहा है कि इस पहल से नाबार्ड एनसीडीसी की मदद से पैक्स गोदामों को खाद्यान्न आपूर्ति श्रृंखला के साथ निर्बाध रूप से जोड़ा जा सकेगा। सरकार का प्रयास है कि इस योजना को कार्यान्वित करके 700 लाख टन भंडारण क्षमता बनाई जाए।
इस विशाल भंडारण क्षमता निर्माण से किसान अपनी उपज को गोदामों में रखवाने, इसके बदले संस्थागत ऋण लेने और अपनी उपज के अच्छे दाम हासिल करने में सक्षम होंगे। अभी अनाज की सरकारी खरीद करने वाले एफसीआई जैसे केंद्र और राज्यों के संस्थान के पास ही गोदाम की ढांचागत सुविधाएं हैं, लेकिन एक तो ये पुरानी पड़ गई हैं, और उस पर अपर्याप्त हैं, इसलिए अनाज की सरकारी खरीद में सीमितता का सामना करना पड़ता है।
अब जो भंडारण सुविधा तैयार हो रही है, वह इस मायने में भिन्न है कि किसान अपने तई सहकारी स्तर की भंडारण गोदाम में अपनी उपज का भंडारण कर सकेंगे। अभी निजी उद्यमियों के गोदामों में उपज खासकर सब्जी आदि रखते जरूर हैं, पर उन्हें काफी ज्यादा शुल्क देना पड़ता है, और लागत बढ़ जाती है, जो लाभ घटाती है।
कंप्यूटरीकृत होने के कारण भंडारण का कार्य अब आसान हो जाएगा।
किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के माध्यम से किसानों को उद्यमी बनाने का जो मंसूबा सरकार ने बांधा है, उसमें भी भंडारण ढांचा तैयार होने से मदद मिलेगी।
दरअसल, भंडारण की सुविधाएं समुचित न होने से खाद्यान्नों ही नहीं, बल्कि सब्जी-फल आदि कृषि उत्पादों के अतिरेकी उत्पादन की दिशा में किसानों को बेतहाशा नुकसान होता है। वे असहाय हो जाते हैं, और सरकार चाहकर भी नाकाफी भंडारण के चलते उन्हें राहत नहीं दे पाती।
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