देर से आया फैसला

Last Updated 24 Feb 2024 11:45:40 AM IST

मणिपुर उच्च न्यायालय ने मार्च 2023 में दिये अपने ही फैसले के उस पैरा को हटाने का आदेश दिया है, जिसमें मेइती समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल करने के लिए राज्य सरकार को कहा था।


देर से आया फैसला

अदालत ने कहा यह पैरा सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा इस मामले में रखे गए रुख के विपरीत है। क्योंकि यह राष्ट्रपति का एकमात्र विशेषाधिकार है। मेतई समुदाय को एसटी का दर्जा दिए जाने के इस फैसले के बाद पुनर्विचार याचिका लगाई गई थी। राज्य की 53 फीसद आबदी मेतई की है जो हिंदू हैं और जो घाटी में रहते हैं। मणिपुर की राजधानी इंफाल में ही 57 फीसद आबादी रहती है। बाकी की 43 फीसद पहाड़ी इलाकों में आबादी रहती है।

गौरतलब है कि मेततई को एसटी सूची में शामिल करने के फैसले के बाद कुकी आदिवासियों वाले इलाके चुरीचंदपुर तनाव की शुरुआत होकर राज्य भर में हिंसक आंदोलन फैल गया था, जो इस फैसले का विरोध कर रहे थे। इन हिंसक झड़पों में अब तक दो सौ से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी हैं। सैकड़ों बुरी तरह घायल हैं, जिनमें ज्यादातर कुकी बताए जाते हैं। इस दरम्यान लगातार हिंसा, बवाल व बंद के चलते राज्य की शांति व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित रही। अब भी पूर्वोत्तर के इस राज्य में खूनी हिंसा जारी है।

लोक सभा चुनाव करीब आने के कारण सरकार को चेतने की जरूरत पड़ी। जैसा कि अब अदालत ने कहा कि यह फैसला कानून की गलत धारणा के तहत पारित किया गया था और अदालतें एसटी सूची में संशोधन या परिवर्तन नहीं कर सकती। देखा जाए तो इसका असल खामियाजा नागरिकों ने भुगता है। राज्य कई महीनों से अशांत है।

मेतई व कुकी के दरम्यान कभी रिश्ते सामान्य नहीं रहे हैं, उनमें हमेशा झड़पें होती रहती हैं, लेकिन इस दरम्यान विद्रोही स्थानीय पुलिस से भी भिड़े और सरकारी दफ्तरों व सार्वजनिक संपत्ति को बहुत नुकसान पहुंचाया। विरोध करना जनता का अधिकार है। यह सरकार की नेक नियति पर है कि वह फौरी तौर पर निर्णय ले। हुड़दंगियों व अराजक तत्वों को काबू करते हुए शांतिपूर्ण तरीके से मध्यस्थता की जानी चाहिए थी। देर से ही सही पर अंतत: अदालत ने खुद के फैसले को पलट कर राज्य में शांति बहाली का महती कदम उठाया।



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