ट्रैफिक महाजाम में किसका दोष
दिल्ली-एनसीआर समेत देश के बड़े महानगरों के बाशिंदों को ट्रैफिक जाम से जूझने में लगभग हर रोज मशक्कत करनी पड़ती है।
ट्रैफिक महाजाम में किसका दोष |
उस पर किसान सड़कों पर उतर आएं, राजनैतिक रैलियां हो रही हों या फिर किसी तरह के विरोध-प्रदर्शन चल रहे हों तो वाहन चालकों व यात्रियों के लिए बड़ी मुश्किल आ जाती है। प्रशासन द्वारा प्रमुख सड़कों को बंद करना या अचानक यातायात को मोड़ देना यात्रियों व चालकोें के लिए भारी दिक्कत पैदा कर देती है।
मुआवजा व अन्य मांगों को लेकर संसद की तरफ कूच करने वाले किसानों को नोएडा-दिल्ली बॉर्डर पर रोकने के कारण गुरुवार को भारी जाम लगा। घंटों वाहन सड़कों पर फंसे रहे। सड़कों पर वाहनों का बोझ लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
प्रशासन इससे जूझने के जो भी फौरी प्रबंधन करता है, वे कारगर नहीं होते। अक्सर आनन-फानन बैरीकेडिंग करके सड़कें बंद कर दी जाती हैं, जिससे वाहन चालकों को खासी दिक्कतें होती हैं। इस तह की तैयारियां पहले से क्यों नहीं की जातीं।
अपनी पीठ थपथपाने के लिए जिस तरह पुलिस व ट्रैफ्रिक व्यवस्था वक्त-वक्त पर सोशल मीडिया का उपयोग करती है। उसी तर्ज पर कोई रास्ता निकाला जाए, जिससे घंटों में जाम में फंसे रहने वालों को राहत मिल सके। ये जाम चालकों में तनाव, चिंता व गुस्सा बढ़ाते हैं। चिकित्सक कहते हैं कि लगातार ट्रैफिक जाम झेलने वालों में वायु प्रदूषण के कारण उच्च रक्तचाप, धमनियों में सूजन, फेफड़ों का कैंसर, अस्थमा होने की आशंका बढ़ जाती है।
जहां तक आर्थिक क्षति की बात है तो एक अध्ययन के अनुसार अकेले बेंगलुरु को सालाना बीस हजार करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहलाने वाली सड़कों के फैलते जाल से जहां यातायात सुचारू होता जा रहा है वहीं प्रमुख सड़कों व मुख्य चौराहों में प्रतिदिन लगने वाला जाम यातायात व्यवस्था की धज्जियां उड़ा रहा है।
उबर की एक रपट के अनुसार भारी जाम के कारण दिल्ली, मुंबई, कोलकाता व बेंगलुरु को तकरीबन 1.45 लाख करोड़ रुपए का साल भर में नुकसान हुआ। जाम में फंसे वाहन जो फ्यूल फूंकते हैं, उससे आर्थिक व पर्यावरण दोनों को भारी नुकसान होता है। यह मामूली दिक्कत नहीं है, इसका समाधान निकालना सरकार व प्रसाशन की जिम्मेदारी है।
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