कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न, एक सही कदम

Last Updated 25 Jan 2024 01:43:33 PM IST

भारत सरकार ने अंतत: बिहार के जननायक पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को उनकी शताब्दी जयंती पर मरणोपरांत भारत रत्न से नवाज दिया।


कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न, एक सही कदम

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे अपना सौभाग्य बताया कि कपरूरी ठाकुर जैसे विराट व्यक्तित्व वाले व्यक्ति को देश का सर्वोच्च सम्मान प्रदान करने का अवसर उनकी सरकार को प्राप्त हुआ। प्रधानमंत्री के अनुसार निम्न वगरे को ऊपर उठाने की श्री ठाकुर की अविचलित प्रतिबद्धता और उनके दूरदृष्टिपूर्ण तथा दूरगामी प्रभाव वाले नेतृत्व ने भारत के सामाजिक, राजनीतिक परिदृश्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।

यह सम्मान उनके अप्रतिम योगदान का ही सम्मान नहीं है, बल्कि यह हमें अधिक न्यायपूर्ण और अधिक समतापूर्ण समाज की स्थापना के प्रयासों के लिए भी प्रेरित करता है। कपरूरी ठाकुर उत्तर भारत के वह पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने मंडल आयोग के गठन से पूर्व 1978 में पिछड़ी, अतिपिछड़ी तथा अति निचली जातियों के लिए सरकारी सेवाओं में 26 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था लागू की थी। उनके इस कदम का कथित सवर्ण जातियों के प्रभुत्व वाले बिहार में उग्र विरोध भी हुआ था।

लेकिन कपरूरी ठाकुर ने कभी भी डगमगाहट नहीं दिखाई। पिछड़ों और अतिपिछड़ों के उत्थान के प्रयासों के चलते ‘जननायक’ की उपाधि प्राप्त करने वाले कपरूरी ठाकुर की पिछड़ों की राजनीति में बिहार में भारी परिवर्तन पैदा किया। बिहार सहित अन्य राज्यों में भी भारी बदलाव की लहर पैदा की। लालू यादव और नीतीश कुमार जैसे पिछड़ी जातियों से आने वाले नेताओं की बिहार में मजबूत सत्ताएं स्थापित हुई तो इसकी पृष्ठभूमि में कपरूरी ठाकुर के प्रयासों और संघर्ष का बड़ा योगदान है।

निचली जातियों में समानता के आग्रहों के स्फुरण के लिए कपरूरी ठाकुर को भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित करना वस्तुत: समता और समानता के अति आवश्यक संघर्ष को सम्मानित करना है।

यहां इस सम्मान का महत्त्व इसलिए और बढ़ जाता है कि कपरूरी ठाकुर आज के कथित जननेताओं के विपरीत पूरी तरह आचार-निष्ठ नेता थे और सरलता और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे। उनकी ईमानदारी के अनेक किस्से बिहार के सार्वजनिक जीवन में प्रचलित हैं। इसलिए आज बिहार का और बिहार से बाहर भी शायद ही ऐसा कोई हो जिसने इस सम्मान पर प्रसन्नता व्यक्त न की हो। जहां तक इस सम्मान पर राजनीति होने या इसको मोदी सरकार का राजनीतिक कदम मानने का प्रश्न है, तो यह बहस खुली हुई है, जो आगे कुछ दिनों तक जारी रहेगी।



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