नए वर्ष की चुनौतियां
इस समय देश के सामने चुनौतियों का अंबार लगा है जिनमें से कुछ भू-राजनीतिक परिस्थितियों से उत्पन्न हैं तो कुछ वे हैं जो भारतीय समाज की जटिल अंत:प्रक्रियाओं से उत्पन्न हुई हैं और जिनके लिए अभी तक ठीक तरह से न बनाई जा सकी आैंर न अपनाई जा सकी नीतियां हैं।
नए वर्ष की चुनौतियां |
जाति, धर्म आदि से संबंधित ऐसी ही समस्याएं हैं जो सही समाधान न पाकर देश की महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और आर्थिक प्रगति जैसी वास्तविक समस्याओं को और अधिक जटिल बना देती हैं। बहरहाल, नए वर्ष की शुरुआत में जो अपरिहार्य घटना चुनौती और संभावना के रूप में निकट भविष्य में आने वाली हैं और जिस पर इस समय देश की हर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक ताकतों का ध्यान लगा हुआ है वे हैं आगामी आम चुनाव।
भारतीय समाज अंतत: आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर किस तरह आगे बढ़ता है यह यथार्थ रूप से लोक सभा के चुनाव के परिणाम आ जाने के बाद ही निर्धारित हो सकेगा। इस समय का माहौल चुनाव विश्लेषक भाजपा के पक्ष में बता रहे हैं। अगर अनुमानत: यह मान लिया जाए कि अगली सरकार भी मोदी के नेतृत्व में बनेगी तो कुछ चुनौतियां बहुत स्पष्ट होंगी जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषण में उठाते रहे हैं। यह चुनौती है भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती से आगे बढ़ाना।
निश्चित तौर पर भारत को अपनी विकास दर कम-से-कम 7 फीसद के आसपास रखनी ही होगी ताकि देश की व्यवस्था सामान्यत: चलती रहे। इस चुनौती को पूरा करने के लिए दूसरी सबसे बड़ी चुनौती होगी महंगाई पर नियंत्रण रखने की। इधर खाद्य पदाथरे की कीमत जिस तरह से बढ़ी है उसने लोगों के समक्ष वास्तविक संकट पैदा किए हैं। इसका समाधान कुछ लोगों के खाते में हर माह कुछ निश्चित राशि पहुंचाकर नहीं की जा सकती बल्कि संरचनात्मक तौर पर उन्हें मजबूती देकर ही किया जा सकता है।
इसी से जुड़ी चुनौती मानव संसाधन की है। यानी अपनी मानव शक्ति को कौशल युक्त बनाना और कौशल के अनुसार समुचित रोजगार उपलब्ध कराना। केवल कुछ को रोजगार उपलब्ध कराके पीठ नहीं थपथपाई जा सकती। आगे चलकर इसके दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं। अंतिम चुनौती यह है कि इन सारी चुनौतियों पर ठीक से विचार करने के लिए देश में संवाद का माहौल बनाया जाए और देश के सर्वोच्च सम्मान मंच संसद को गरिमा प्रदान की जाए। वहां तू-तू-मैं-मैं के स्थान पर सही अथरे में बहस का वातावरण बनाया जाए जिससे देश सचमुच लाभान्वित हो सके।
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