आतंकवाद और मानवाधिकार
आतंकवाद विश्व में नागरिकों के मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन करता है। आतंकवादी कृत्यों व आतंकवाद की अनदेखी करना, उनसे सहानुभूति रखना मानवाधिकारों के प्रति बड़ा अन्याय है।
आतंकवाद और मानवाधिकार |
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अरुण कुमार मिश्रा ने ये बातें कही। वे भारत मंडपम में मानवाधिकार दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में ऐसे आदर्श शामिल हैं, जो हमारे मूल्यों के अनुरूप हैं।
असमानता में नाटकीय वृद्धि और जलवायु, जैवविविधता व प्रदूषण के तिगुने संकट पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। न्यायमूर्ति ने कहा नयी डिजिटल प्रौद्यौगिकी ने लोगों के रहने के तरीकों को बदल दिया है। इंटरनेट उपयोगी है मगर उसका स्याह पक्ष भी है।
वह घृणा फैलाने वाली सामग्री के जरिए निजता का उल्लघंन कर रहा है तथा भ्रामक सूचनाओं से लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं कमजोर हो रही हैं। यह सच है कि वर्ग विशेष तथा सरकार के विरोधियों का रवैया आतंकवादियों के पक्ष में स्पष्ट होता है। वे उनका बेवजह महिमामंडन ही नहीं करते बल्कि उनसे सहानुभूति जता कर पीड़ितों का मखौल भी उड़ाते हैं।
मानवाधिकारों की आड़ लेकर आतंकवाद को प्रश्रय देना गुनाहगारों का हैसलाफजाई करने वाला साबित होता है। यह गलत नहीं है कि वे पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं और उनके इससे निहित स्वार्थ होते हैं। बम विस्फोटों, आतंक, जानलेवा हमले व दहशतगर्दी को मानवाधिकारों के दायरे में नहीं लाया जा सकता। जलवायु परिवर्तन, जैवविविधताओं व प्रदूषण जनता के जीवन में दुारियां पैदा करते जा रहे हैं। भ्रामक सूचनाओं के जरिए जनता को दिग्भ्रमित करने वालों से निपटना चुनौती बनता जा रहा है।
आतंकवादी किन मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं, जो उन पर होने वाले अन्याय पर स्यापा किया जाए। प्रतिरोध, राजनैतिक विरोध या वैचारिक असहमति के लिए सभ्य समाज में ढेरों तरीके मौजूद हैं। आतंकवादी गतिविधियां सोची-समझी रणनीति व साजिश का नतीजा होती हैं। अधिकारों की बात करने वाले अपने फर्ज से पीछे नहीं हटते। आतंक का कोई विचार नहीं होता, जिसका महिमामंडन किया जाए और प्रश्रय देने के प्रयास कर उनके हौसले बढ़ाने का काम किया जाए।
Tweet |