तेलंगाना में सत्ता परिवर्तन

Last Updated 09 Dec 2023 01:22:27 PM IST

रेवंत रेड्डी के शपथ ग्रहण करने के साथ तेलंगाना में सत्ता परिवर्तन मुकम्मल हो गया। इस नवगठित राज्य की जनता ने के चंद्रशेखर राव के राज के खिलाफ और कांग्रेस के पक्ष में स्पष्ट जनादेश दिया है।


तेलंगाना में सत्ता परिवर्तन

इस जनादेश का अर्थ इसलिए और भी बढ़ जाता है कि चंद्रशेखर राव, सिर्फ तेलंगाना के पहले मुख्यमंत्री ही नहीं थे, वह ऐसे नेता भी थे जिनका नाम इस राज्य के गठन के आंदोलन के नेतृत्व के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ था। कहने की जरूरत नहीं है कि इसी इतिहास के बल पर राव की पार्टी का पूरे दो कार्यकाल तक इस नवगठित राज्य में निर्विवाद बोलबाला बना रहा था। लेकिन, इस बार चुनाव में कांग्रेस ने उसे, उसके काफी हद तक जनमानस में यह बैठाने के बावजूद कि तेलंगाना का गठन कांग्रेस ने अनिच्छा से बल्कि मजबूरी में ही किया था, सत्ता से बाहर कर दिया।

राज्य के गठन में नेतृत्वकारी भूमिका की चंद्रशेखर राव की यूएसपी भी उन्हें हैट्रिक जड़ने का मौका नहीं दिला पाई। इसके बावजूद, इससे यह नतीजा निकालना मुश्किल है कि तेलंगाना की पहचान का मुद्दा अब बिल्कुल बेअसर हो गया है।

भाजपा, जो कुछ ही महीनों पहले तक राव की बीआरएस (पहले टीआरएस) के लिए मुख्य चुनौती बनकर उभरती दिखाई देती थी, जिस तरह अपने वोट तथा सीटों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी के बावजूद, बहुत पीछे तीसरे स्थान पर ही रह गई है और कांग्रेस उसे पीछे छोड़ते हुए सत्ता में पहुंच गई है, उसके पीछे एक तत्व कांग्रेस के इसके दावे का भी रहा लगता है कि तेलंगाना का गठन उसके ही हाथों से हुआ था।

तेलंगाना के इस चुनाव ने एक बार फिर भाजपा की हिन्दुत्व की राजनीति के प्रति आम तौर पर दक्षिण भारतीय मानस की असहजता को रेखांकित किया है। दूसरी ओर, कर्नाटक के बाद अब तेलंगाना में कांग्रेस की निर्णायक जीत ने कम से कम दक्षिणी भारत में तो कांग्रेस के पुनरोदय का स्पष्ट संकेत दे ही दिया है।

रेवंत रेड्डी की गिनती कांग्रेस के नये और लड़ाकू नेताओं में होती है। इसी चक्र में उत्तर के तीन राज्यों में जीती भाजपा की दुविधा के विपरीत जितनी त्वरित गति से उन्हें मुख्यमंत्री पद संभलवाया गया है, यह राज्य में उनकी किसी हद तक निर्विवाद हैसियत का तो इशारा करता ही है, कांग्रेस में अपेक्षाकृत नये और लड़ाकू नेताओं के लिए ज्यादा जगह बनने का भी इशारा करता है। कह सकते हैं कि यह देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के लिए एक शुभ लक्षण है।



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