मिजोरम में जेडपीएम
मिजोरम (Mizoram) में अपना दूसरा विधानसभा चुनाव लड़ते हुए जोरम पीपल्स मूवमेंट (जेडपीएम - ZPM) ने सत्ताधारी मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ - MNF) को करारी शिकस्त दी।
मिजोरम में जेडपीएम |
सोमवार को घोषित 40 सदस्यीय विधानसभा में जेडपीएम ने बहुमत के आंकड़े 21 से छह सीटें ज्यादा जीतीं। एमएनएफ को दस सीटें मिल सकीं जबकि एमएनएफ की गठबंधन सरकार में सहयोगी रही भाजपा को दो और कांग्रेस को एक सीट मिली। मिजोरम में पहली बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी (आप) का खाता भी नहीं खुल सका।
आप चार सीटों पर चुनाव लड़ी थी। कांग्रेस का एक सीट पर सिमटना और एमएनएफ के मुख्यमंत्री रहे जोरमथंगा का चुनाव हार जाना बताता है कि मिजोरम की जनता बदलाव चाहती है। इसकी ताकीद नये-नवेले गठबंधन जेडपीएम का दो तिहाई बहुमत से जीत जाना है। मणिपुर में हिंसा की छाया मिजोरम चुनाव पर भी पड़ी है।
राज्य में 95 प्रतिशत ईसाई आबादी है, जिसके दबाव में एनडीए की घटक एमएनएफ को पहले एनडीए से बाहर आना पड़ा और अब जनता ने उसे सत्ता से भी बेदखल कर दिया है। जेडपीएम के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार लालदुहोमा पूर्व आईपीएस हैं, और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के के सुरक्षा अधिकारी के तौर पर सेवा दे चुके हैं।
जेडपीएम की जीत के साथ ही राज्य में 35 साल बाद सीएम पद पर तीसरा नया चेहरा दिखेगा। अब तक जोरमथंगा (एमएनएफ) और ललथनहवला (कांग्रेस) के बीच ही सत्ता का हस्तांतरण होता रहा है। जोरमथंगा आईजोल ईस्ट-प्रथम सीट पर लालथनसांगा (जेडपीएम) से 2,101 मतों से हारे जबकि उनकी सरकार के 9 मंत्री भी चुनाव हारे हैं।
उनकी सरकार में 12 मंत्री थे। लालदुहोमा ऐसे पहले सांसद थे जिन्हें दल-बदल विरोधी कानून के तहत सांसदी से अयोग्य घोषित किया गया था। लालदुहोमा ने 1984 में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए।
उसी वर्ष सांसद चुने गए लेकिन 1986 में सीएम ललथनहवला के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में उन्हें पार्टी छोड़नी पड़ी। बाद में वे एमएनएफ में रहे और 2019 में जेडपीएम का गठन किया। राज्य में ढांचागत विकास, भ्रष्टाचार तथा बेरोजगारी से मुक्ति मुख्य चुनावी मुद्दे थे।
लालदुहोमा को इन चुनौतियों से पार पाते हुए जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना है। बेशक, वे इस लिहाज से सफल हो सकते हैं, लेकिन एमएनएफ की भांति एनडीए का घटक बनने पर उन्हें आसानी रहेगी।
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