Train Accident : सुरक्षित यात्रा की जवाबदेही
हमारी रेल जैसे हादसों का एक सिलसिला बनती जा रही है। एक महीने में दूसरी सबसे बड़ी रेल दुर्घटना (Train Accident) होगी और चार महीने में कुल तीन-तीन तो क्या कहा जाएगा।
सुरक्षित यात्रा की जवाबदेही |
रविवार की रात आंध्र प्रदेश में दो ट्रेनों की टक्कर और उसमें 14 यात्रियों के मरने और 50 से अधिक लोगों के घायल होने की खबर है। इसके पहले, दो जून को बालासोर में तीन ट्रेनों की भिड़ंत में सबसे अधिक 296 यात्री मरे थे और 1200 घायल हुए थे। 11 अक्टूबर को बक्सर में 5 यात्रियों की-बाद में इलाज के दौरान एक महिला की-मौत हो गई थी तथा 100 घायल हुए थे। और अब विजयवाड़ा की टक्कर में चार महीने में जानमाल की दूसरी बड़ी क्षति हुई है।
इससे भारतीय रेलवे और इसे देख रहे मंत्री अिन वैष्णव समेत पूरी नरेन्द्र मोदी सरकार जनता के निशाने पर आ गई है। घटनाक्रमों को देखें तो रेलवे औसतन हर महीने किसी-न-किसी हादसों का शिकार रहा है- चलती ट्रेन में आगलगी हो, पटरी से उतरने, कुचल कर मरने और सिगनल पार करने से हुई टक्कर की घटनाएं। इनसे लगता है कि रेलवे में कमांड और कार्यपण्राली में सतर्कता और जवाबदेही को लेकर एक आपराधिक शिथिलता है। इसमें सुधार पण्राली गैरहाजिर लगती है।
उसकी ओर किसी का ध्यान जाता नहीं दिख रहा है। दुर्घटनाएं जिनमें मानवीय क्षति न भी हो, उसकी बारम्बरता यही जाहिर करती है। विजयवाड़ा में लोको पायलट के सिगनल को ओवर शूट कर जाने यानी उसे पार कर जाने को वजह बताई जा रही है। बालासोर इसका भयंकर दुष्परिणाम है।
इसके बाद 25 जून को एक मालगाड़ी सिगनल पार कर पीछे से दूसरी मालगाड़ी से पश्चिम बंगाल के ओंडाग्राम स्टेशन पर टकरा जाती है। इतनी घोर लापरवाही। यह ठीक है कि रेलयात्रियों में प्रतिदिन 40 हजार के इजाफे के साथ रेलवे पर प्रतिदिन 10,378 ट्रेनें और 7332 मालगाड़ियां के परिचालन का दबाव है।
फिर कम घंटों में ज्यादा दूरी तय करने के लिए नई रेलगाड़ियां भी चलाई जा रही हैं। रेल-परिपथ से लेकर डिब्बों तक का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। पर इसके साथ सफर को सुरक्षित बनाना उतना ही बेहद जरूरी है। इसकी नैतिक जवाबदेही रेलवे की है। इसी आधार पर इस्तीफा देने का लालबहादुर शास्त्री से शुरू हुए रिवाज का अंतिम उदाहरण नीतीश कुमार ही है। अब यह दकियानूसी बात हो गई है। पर जबावदेही की बात हमेशा ताजा रहेगी।
Tweet |