इसरो में नासा की रुचि
अमेरिकी विशेषज्ञों ने भारत से प्रौद्योगिकी साझा करने में रुचि दिखाई है। जटिल रॉकेट मिशन में शामिल अमेरिकी वैज्ञानिकों ने चंद्रयान 3 को विकसित करने की गतिविधियों को देखने के बाद अंतरिक्ष गतिविधियों को साझा करने में उत्सुक हैं।
इसरो में नासा की रुचि |
इसरो के अध्यक्ष एस.सोमनाथ ने रामेश्वरम में आयोजित कार्यक्रम में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा, वक्त बदल रहा है। भारत बेहतरीन उपकरण व रॉकेट बनाने में सक्षम है। यही कारण है कि अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोला गया है। भारत को शक्तिशाली राष्ट्र कहते हुए सोमनाथ ने ज्ञान तथा बुद्धिमता के स्तर के लिहाज से सर्वश्रेष्ठ देशों में से बताया। नासा-जेपीएल से कुछ वैज्ञानिक आए, जिन्हें चंद्रयान के विषय में बताया गया।
सोमनाथ के अनुसार अमेरिकी अंतरिक्ष विशेषज्ञों ने उच्च तकनीक को समझा और पूछा कि इसे अमेरिका को क्यों नहीं बेच देते। भारत ने 23 अगस्त को चंद्रयान 3 के लैंडर ने चंद्रमा की सतह के दक्षिणी ध्रुव को सफलतापूर्वक छुआ, जिससे वह अमेरिका, चीन व तत्कालीन सोवियत संघ के बाद चंद्रमा पर उतरने वाला चौथा देश बन गया। 14 दिन तक चांद पर विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने महत्त्वपूर्ण डेटा एकत्र किया, जिसके नतीजों ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को चकित कर दिया।
पहली बार दुनिया को पता चाल कि चांद की चट्टानों व मिट्टी में सल्फर मौजूद है। चांद की सतह पर दो मुख्य चट्टानों, गहरी ज्वालामुखीय चट्टान व चमकीली उच्च भूमि चट्टान के विषय में भी पहली बार खुलासा हुआ। इसमें कुछ संदेह होने की संभावना से मना नहीं किया जा सकता। मगर वैज्ञानिकों के समूहों ने इस पर खासा उत्साह दिखाया है। कम खर्च में जिस तरह इसरो ने इस अभियान को सफल बनाया, वह सारी दुनिया के लिए उदाहरण बन गया है।
चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतरने के फामरूले को लेकर अंतरिक्ष वैज्ञानिकों में खासी रुचि है। इस उपलब्धि ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों, विभिन्न देशों की सरकारों की रुचि बढ़ाई। साथ ही भारतीय जनमानस में भी नई चेतना जगाने का काम किया है।
सोमनाथ ने छात्रों को आमंत्रित करते हुए नए रॉकेट व उपग्रह बनाने के लिए उत्साहित किया। नि:संदेह हमें अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के बल पर दुनिया में अपना परचम लहराने में ही नहीं कामयाबी मिली है बल्कि नए वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों व अनुसंधानकर्ताओं के लिए भी मार्ग प्रशस्त हो चुका है।
Tweet |