सजा पर कोहराम
कैसे सभी चोरों का उपनाम मोदी है’ वाले बयान पर सूरत की सीजेएम अदालत का राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराए जाने के बाद राहुल की सांसदी खत्म कर दी गई है।
सजा पर कोहराम |
अदालत ने राहुल को दो वर्ष की सजा सुनाई है। उन्हें जमानत तो मिल गई लेकिन लोक सभा से उनकी सदस्यता इस फैसले के आलोक में खत्म कर दी गई है। चार साल पहले (2019) में राहुल ने एक भाषण में जो कहा उसे आपत्तिजनक और समुदाय विशेष के लिए अपमानजनक मानते हुए उन्हें सजा दी गई है। अगर अपीलीय अदालत ने राहुल की सजा और दोषसिद्धि पर रोक नहीं लगाई तो उन्हें राहत नहीं मिल सकेगी। उन पर अगले छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकने की रोक तो लग ही चुकी है।
ज्ञातव्य है कि जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धारा (3) के तहत अगर किसी सांसद-विधायक को किसी अपराध में दोषी ठहराया जाता है, और दो साल या अधिक सजा होती है, तो उसकी सदस्यता सजा सुनाए जाने के दिन से खत्म हो जाएगी। रिहाई के 6 साल बाद तक वह चुनाव भी नहीं लड़ पाएगा। देखना है, कांग्रेस की रणनीति क्या होती है? फिलवक्त, राहुल के माफी नहीं मांगने और विपक्षी दलों के राहुल के समर्थन में आने के बाद विपक्षी एकता को नया आयाम मिल सकता है।
मगर एक सवाल यह भी कि क्या अदालत के बेहद सख्त रुख से राहुल की मुश्किलें अभी और बढ़ेंगी। दरअसल, राजनीति में सोच-विचार कर या तोल-मोल कर बोलने की परिपाटी हाल के वर्षो में गायब दिखती है। गिनती के नेता होंगे जो शालीन हैं और अपनी बोली से कभी किसी के निशाने पर नहीं आए हैं। कांग्रेस भले पूरे प्रकरण को भाजपा की प्रतिशोध की भावना बता रही हो और उस पर साजिश रचने का आरोप लगाती हो, किंतु राहुल की टिप्पणी आपत्तिजनक कही जाएगी। किसी जाति या उपजाति के बारे में ऐसी बयानबाजी का कोई मतलब नहीं है।
खासकर देश की सबसे पुरानी पार्टी के सांसद द्वारा। इस कसौटी पर राहुल फेल होते दिखते हैं। खासकर तब जब सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें पूर्व में उनके दिए ‘चौकीदार चोर है’ वाले बयान पर चेताया था। हालांकि उस बयान पर राहुल ने माफी मांगी थी। फिलहाल, कांग्रेस इस फैसले को सियासी नफा-नुकसान के तराजू पर तौलने के मूड में दिखती है। कुल मिलाकर अदालत के फैसले और तदोपरांत सांसदी खत्म होने से सियासी लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है।
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