कार्रवाई का वक्त
लोकसेवकों का भ्रष्टाचार क्या शात और स्वीकार्य परिपाटी बनता जा रहा है।
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देश की पहली लोकपाल समिति की जो स्थिति हो गई है उससे तो बेहद चिंतनीय परिदृश्य उभरता है। पहली लोकपाल समिति के गठन और पहले लोकपाल की नियुक्ति को मंजूरी मिलने के पिछले चार सालों में भी अब तक भ्रष्टाचार विरोधी इस शीर्ष संस्था ने भ्रष्टाचार के आरोपी एक भी व्यक्ति पर मुकदमा नहीं चलाया है।
संसद की एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में अब तक किसी पर भी मुकदमा न चलने का खुलासा किया है। समिति ने रिपोर्ट में लोकपाल के प्रदर्शन को संतोषजनक नहीं पाते हुए गंभीर टिप्पणियां की हैं। संसद में पेश संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि लोकपाल द्वारा कई शिकायतों का निपटारा सिर्फ इस आधार पर किया जा रहा है कि वे निर्धारित प्रारूप में नहीं हैं। समिति ने लोकपाल से अनुरोध किया है कि वे वास्तविक शिकायतों को खारिज न करें।
पिछले साल मई से खाली पड़े लोकपाल के अध्यक्ष के पद को नहीं भरे जाने के बारे में समिति ने सरकार से जवाब मांगा है। लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में पारित हुआ था। मार्च, 2019 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष को देश के पहले लोकपाल के रूप में शपथ दिलाई थी।
इसी महीने लोकपाल समिति भी गठित की गई थी। लोकपाल का नेतृत्व एक अध्यक्ष करता है और इसमें आठ सदस्यों (चार न्यायिक और शेष गैर-न्यायिक) का प्रावधान है। संसद की स्थायी समिति ने लोकपाल द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि बड़ी संख्या में शिकायतों का निपटारा सिर्फ इस आधार पर किया जा रहा है कि वे निर्धारित प्रारूप में नहीं हैं।
लोकपाल का गठन सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कानूनी और संस्थागत तंत्र को मजबूत करने के लिए किया गया था। इसकी स्थापना स्वच्छ और उत्तरदायी शासन को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। उम्मीद लगाई गई थी कि इसकी स्थापना के बाद राजनीति, शासन और प्रशासन में शुचिता आएगी और देश में कुछ बेहतर होगा। इससे पहले कि जनता का मोहभंग हो लोकपाल को भ्रष्टाचारियों पर शिंकजा कसना ही होगा।
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